मनमोहन सिंह

मनमोहन सिंह ने अपनी आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही थी ये बात, ‘इतिहास शायद मेरे साथ न्याय करेगा’

भारत के अर्थशास्त्री और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने बीते गुरुवार को अंतिम सांस ली है। भारत की अर्थव्यवस्था में उनके योगदान को देश कभी नहीं भूल सकता है। उन्होंने देश के गिरते अर्थव्यवस्था को जिस तरीके से संभाला था, जो सिर्फ एक अर्थशास्त्री ही कर सकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर उन्होंने 2014 की अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये क्यों कहा था कि ‘इतिहास शायद मेरे साथ न्याय करेगा’ आज हम आपको इसके पीछे की वजह बताएंगे।

राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार

डॉक्टर मनमोहन सिंह ने बीते गुरुवार को आखिरी सांस ली है. गुरुवार को ही तबियत खराब होने के बाद उन्हें दिल्ली एम्स में भर्ती कराया गया था, जहां डॉक्टर्स ने उन्हें मृत घोषित किया है। जानकारी के मुताबिक सुबह राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। डॉ. सिंह के घर पर मीडिया से लेकर उनके शुभ चिंतक पहुंच रहे हैं।

2014 में कही थी ये बात

बता दें कि पूर्व पीएम मनमोहन सिंह देश में दो बार प्रधानमंत्री बने थे। लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान उन्हें काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। बता दें कि देश में उस समय महंगाई बहुत बढ़ी हुई थी और दूसरी तरफ टेलीकॉम, कोयला घोटाले से घिरी उनकी सरकार को आलोचना का सामना करना पड़ा था। इसी माहौल में साल 2014 में बतौर प्रधानमंत्री अपने दूसरे कार्यकाल में डॉ. सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था। उस दौरान उन्होंने अंग्रेजी में कहा था कि ‘मैं ईमानदारी से मानता हूं कि मीडिया या फिर संसद में विपक्ष मेरे बारे में चाहे आज जो भी कहे, पर मुझे भरोसा है कि इतिहास मेरे साथ न्याय करेगा’। इसके आगे उन्होंने कहा था कि मैं भारत सरकार के कैबिनेट में होने वाली सभी चीजों का खुलासा तो नहीं कर सकता हूं, लेकिन मुझे लगता है कि परिस्थितियों और गठबंधन राजनीति की मजबूरियों को ध्यान में रखते हुए मैंने जितना हो सकता था, उतना अच्छा किया है।

dr manmohan singh

 

कई अहम पदों पर रहे मनमोहन सिंह

मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनने से पहले भी सरकार में लंबे समय तक अपनी सेवाएं दी थी। उन्होंने भारत सरकार में कई अहम पदों पर काम किया था। वो 1971 में वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार बने, और इसके बाद 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में अपनी सेवाएं दी थी। इसके अलावा वह रिजर्व बैंक के गवर्नर, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी थे। वहीं 1991 से 1996 तक उन्होंने भारत के वित्त मंत्री के तौर पर कार्य किया था।

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