Margashirsha Amavasya: मार्गशीर्ष महीने में अमावस्या का दिन अत्यधिक आध्यात्मिक महत्व रखता है। पूर्वजों के सम्मान के लिए समर्पित इस दिन श्रद्धालु पितृ तर्पण करते हैं और ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराते हैं। यह दिन (Margashirsha Amavasya) पारिवारिक शांति और समृद्धि के लिए आशीर्वाद मांगने का भी दिन है। इस दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करने से आध्यात्मिक विकास और वित्तीय स्थिरता बढ़ती है।
बहुत लोग इस दिन (Margashirsha Amavasya) उपवास रखते हैं, ध्यान करते हैं और विष्णु सहस्रनाम का जाप करते हैं। पवित्र नदियों में स्नान करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इससे पाप धुल जाते हैं और सकारात्मक ऊर्जा आती है। मार्गशीर्ष अमावस्या आध्यात्मिक चिंतन और भक्ति के लिए एक शक्तिशाली दिन है।
कब है मार्गशीर्ष अमावस्या?
मार्गशीर्ष महीने में अमावस्या 1 दिसम्बर (Margashirsha Amavasya) रविवार को मनाया जाएगा। वैसे तो मार्गशीर्ष अमावस्या 30 नवंबर को 11:59 बजे ही शुरू हो जाएगी और इसका समापन अगले दिन 1 दिसंबर को दोपहर 01 बजकर 20 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, मार्गशीर्ष अमावस्या 1 दिसंबर को ही मनाया जाएगा।
मार्गशीर्ष अमावस्या प्रारम्भ तिथि – 30 नवम्बर, 11:59 बजे
मार्गशीर्ष अमावस्या समाप्त तिथि- 1 दिसम्बर, 13:20 बजे
मार्गशीर्ष अमावस्या पर करने योग्य उपाय
पितृ तर्पण करें: पूर्वजों का आशीर्वाद पाने के लिए उन्हें जल और तिल अर्पण करें।
दान: जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े या पैसे दान करें, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इससे समृद्धि और आध्यात्मिक योग्यता मिलती है।
उपवास: मन और शरीर को शुद्ध करने और आध्यात्मिक अनुशासन को मजबूत करने के लिए उपवास रखें।
पवित्र स्नान: पापों को शुद्ध करने के लिए पवित्र नदियों में या घर पर गंगा जल मिश्रित पानी से स्नान करें।
भगवान विष्णु की पूजा करें: विष्णु सहस्रनाम का जाप करें और शांति, स्वास्थ्य और धन का आशीर्वाद पाने के लिए प्रार्थना करें।
मार्गशीर्ष अमावस्या पर शनि का ज्योतिषीय प्रभाव
आकाशीय प्रभावों में, शनि (Margashirsha Amavasya) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो इस दिन को विशेष रूप से उन लोगों के लिए सार्थक बनाता है जो इसके हानिकारक प्रभावों और कर्म के बोझ से राहत चाहते हैं। शनि, जिसे अनुशासन और न्याय का ग्रह कहा जाता है, व्यक्ति के कर्म और जीवन यात्रा पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। इस दिन शनि देव को समर्पित विशेष अनुष्ठान उनके प्रभाव को शांत करने और सकारात्मकता को आमंत्रित करने के लिए किए जाते हैं। जो लोग साढ़े साती या शनि दोष जैसी चुनौतीपूर्ण अवधि से गुजर रहे हैं, वे इसे दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने और बाधाओं को कम करने का एक उपयुक्त समय मानते हैं।
मार्गशीर्ष अमावस्या पर शनि के लिए प्रमुख अनुष्ठान
शनि पूजा: शनि देव को सरसों का तेल, काले तिल और लोहा चढ़ाने के साथ-साथ तिल के तेल का दीपक जलाने और “ओम शं शनैश्चराय नमः” जैसे मंत्रों का जाप करने से शनि के प्रभाव को कम करने में मदद मिलती है।
पितृ पूजा: तिल तर्पण और पिंड दान सहित पूर्वज मुक्ति अनुष्ठान, कर्म ऋण को कम करते हैं।
दान: जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े और जरूरी चीजें देना शनि के प्रभाव को दूर करने का एक शक्तिशाली उपाय है। कौवों और जानवरों को भोजन कराने से आशीर्वाद मिलता है।
पवित्र स्नान: गंगा जैसी पवित्र नदियों में डुबकी आत्मा को शुद्ध करती है और अन्य अनुष्ठानों के लाभों को बढ़ाती है।
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