Kalashnikov Rifle,

मिखाइल कलाश्निकोव: वो शख्स जिसने दुनिया को दी सबसे खतरनाक राइफल ‘एके-47’

AK 47 Inventor Mikhail Kalashnikov: क्या आपने कभी सोचा है कि दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली राइफल, एके-47, किसने बनाई? यह वही राइफल है, जो आज युद्ध के मैदान से लेकर सिविल संघर्ष तक में हर जगह देखने को मिलती है। इस राइफल का श्रेय जाता है रूस के मिखाइल कलाश्निकोव को, जिन्होंने अपनी मेहनत और तकनीकी समझ से इसे बनाया। लंबी बीमारी के बाद दुनिया को AK-47 देने वाले मिखाइल ने 23 दिसंबर, 2013 को दुनिया को अलविदा कहा था। आइए, आज उनके पुण्यतिथि पर जानते हैं मिखाइल कलाश्निकोव और उनके राइफल की कहानी और कैसे ये हथियार पूरी दुनिया में एक ताकत बन गया?

साधारण बचपन, असाधारण सपना

मिखाइल कलाश्निकोव का जन्म हुआ था 10 नवंबर 1919 को रूस में। वह 19 भाई-बहनों में से थे और उनका परिवार गरीबी से जूझ रहा था। बचपन में ही मिखाइल कई गंभीर बीमारियों से जूझे, और डॉक्टरों ने तो उनकी जिंदगी की उम्मीद तक छोड़ दी थी। लेकिन उस छोटे से लड़के ने हार नहीं मानी, और वह बच गया। इस संघर्ष ने मिखाइल को वह ताकत दी, जो उन्हें आगे चलकर दुनिया को एक ऐसा हथियार देने के लिए प्रेरित करेगी, जो कभी न खत्म होने वाली धरोहर बन जाएगा।

बचपन से ही मिखाइल को मशीनों में गहरी रुचि थी। वह हमेशा किसी भी मशीन को खोलकर देखते थे, ताकि वह समझ सकें कि वह कैसे काम करती है। यह शौक उन्हें सेना तक ले गया। हालांकि, उनकी लंबाई कम थी, फिर भी उनका जुनून उन्हें 1938 में रूस की रेड आर्मी में भर्ती करवा ले गया। मिखाइल का पहला काम था दुश्मन की स्थिति पर नजर रखना, लेकिन जल्द ही वह टैंक कमांडर बन गए।

AK 47 Inventor Mikhail Kalashnikov

विश्व युद्ध में हुआ हादसा, और मिखाइल ने बनाई एके-47

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान मिखाइल एक टैंक कमांडर थे। युद्ध के दौरान उन्हें गंभीर चोटें आईं, और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। अस्पताल में कुछ सैनिक अपने हथियारों की खराबी के बारे में शिकायत कर रहे थे। उनका कहना था कि सोवियत संघ के हथियार बहुत कठिन होते हैं, खासकर सर्दियों में जब सैनिक मोटे ग्लव्स पहनते हैं और ट्रिगर तक दबाना मुश्किल हो जाता है।

यहां से मिखाइल के दिमाग में एक आइडिया आया: क्यों न एक ऐसा हथियार बनाया जाए, जिसे बिना किसी विशेष ट्रेनिंग के, आसानी से इस्तेमाल किया जा सके? इस विचार ने मिखाइल के मन में ठान लिया कि वह एक ऐसा हथियार बनाएंगे, जो सबके लिए आसान हो और युद्ध के हर मैदान में कारगर साबित हो।

कैसे बनी एके-47?

1947 में मिखाइल ने अपनी राइफल की पहली डिज़ाइन तैयार की, लेकिन इसे शुरू में कोई खास मान्यता नहीं मिली। लेकिन जब 1949 में रूसी सेना ने इसे ट्राय किया, तो यह चमत्कारी साबित हुई। उनकी राइफल को देखते ही सेना ने इसे अपना हथियार मान लिया और इसे बनाने का आदेश दे दिया। इस राइफल का नाम “ऑटोमेटिक कलाश्निकोव 47” रखा गया।

एके-47: आसान, हल्की और खतरनाक

अब सवाल उठता है कि आखिर एके-47 ऐसी क्यों पॉपुलर हुई और दुनिया भर में इसका इस्तेमाल क्यों हो रहा है? दरअसल, एके-47 के डिजाइन में कुछ खास बातें थीं, जिनकी वजह से यह राइफल युद्ध के मैदान में गेम चेंजर साबित हुई-

हल्का वजन: एके-47 का वजन सिर्फ 4 किलो होता है, यानी कोई भी सैनिक इसे आसानी से चला सकता है।

फास्ट फायरिंग: इससे एक मिनट में 600 गोलियां दागी जा सकती हैं।

आसान इस्तेमाल: इसे चलाना बेहद आसान है। कोई भी सैनिक बिना ट्रेनिंग के इसे चला सकता है।

मजबूती: ये राइफल ऐसी सर्दी, गर्मी, बारिश और धूल में भी काम करती है, जब बाकी हथियार जाम हो जाते हैं।

इसके अलावा, एके-47 में सिर्फ 8 पुर्जे होते हैं, और इसे जोड़ने में ज्यादा समय नहीं लगता। यही वजह है कि यह राइफल इतनी पॉपुलर हो गई, और कई देशों में इसका इस्तेमाल शुरू हो गया।

AK 47 Inventor Mikhail Kalashnikov

दुनिया भर में एके-47 का राज

आज, दुनिया के 50 से ज्यादा देशों में एके-47 का इस्तेमाल हो रहा है। चाहे वह युद्ध का मैदान हो या फिर उग्रवाद, यह राइफल हर जगह मौजूद है। चीन, भारत, मिस्र, इजरायल और नाइजीरिया जैसे देशों में एके-47 का उत्पादन होता है। चीन सबसे बड़ा उत्पादक है, जबकि भारत ने हाल ही में एके-203 राइफल का निर्माण शुरू किया है, जो एके-47 की सीरीज का ही एक हिस्सा है।

मिखाइल कलाश्निकोव की ज़िंदगी भी थी दिलचस्प

मिखाइल ने सेना से रिटायर होने के बाद पढ़ाई पूरी की और टेक्निकल साइंस में डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने कई तकनीकी संस्थानों से जुड़कर अपनी जानकारी और अनुभव को साझा किया। मिखाइल की पत्नी भी एक इंजीनियर थीं और उनके डिजाइन तैयार करने में उन्होंने मिखाइल की काफी मदद की। मिखाइल का एक बेटा भी था, जो हथियार डिजाइन करता था और सैन्य बलों के लिए काम करता था।

मिखाइल कलाश्निकोव का जीवन बड़ा ही प्रेरणादायक था। हालांकि, उन्होंने बहुत बार एके-47 को चलाया था, जिस कारण उनकी सुनने की क्षमता पर असर पड़ा। 23 दिसंबर 2013 को लंबी बीमारी के बाद मिखाइल का निधन हो गया, लेकिन उनकी बनाई राइफल का नाम आज भी दुनिया भर में जीवित है।