मिल्कीपुर उपचुनाव: उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर आगामी उपचुनाव अब सियासी गलियारों में चर्चा का मुख्य विषय बन चुका है। 5 फरवरी को मतदान होगा और 8 फरवरी को मतगणना के बाद यह तय होगा कि इस सीट पर कौन काबिज होगा। यह उपचुनाव खास है क्योंकि इस बार यहां भारतीय जनता पार्टी (BJP) और समाजवादी पार्टी (SP) के बीच न सिर्फ राजनीतिक बल्कि प्रतिष्ठा की भी लड़ाई मची हुई है।
क्यों है खास मिल्कीपुर उपचुनाव ?
बीजेपी इस उपचुनाव में अपनी हार का बदला लेने के लिए पूरी ताकत झोंकने के मूड में है। पिछले साल अयोध्या लोकसभा सीट पर हुई हार के बाद, पार्टी ने इसे अपनी नाक का सवाल बना लिया है। वहीं, समाजवादी पार्टी को भी यह सीट जीतने की पूरी उम्मीद है, खासकर मिल्कीपुर के सियासी समीकरण और यहां की जातीय वोटबैंक को देखते हुए।
मिल्कीपुर विधानसभा सीट इस बार खास इसलिए है क्योंकि यह सीट अयोध्या लोकसभा क्षेत्र में आती है। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को अयोध्या से हार का सामना करना पड़ा था। अब बीजेपी की कोशिश है कि वह इस उपचुनाव में अपनी हार का बदला ले सके। दूसरी तरफ सपा भी यहां अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।
क्या है मिल्कीपुर का सियासी समीकरण?
मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर सियासी समीकरण काफी दिलचस्प है। यहां की जातीय संरचना को देखकर लगता है कि सपा का दबदबा ज्यादा है। इस सीट पर यादव, पासी और मुस्लिम वोटरों की संख्या ज्यादा है, जो सपा के लिए मजबूत स्थिति बनाते हैं।
मिल्कीपुर में 65 हजार यादव, 60 हजार पासी, और 35 हजार मुस्लिम वोटर हैं। इसके अलावा 50 हजार ब्राह्मण, 25 हजार ठाकुर, 50 हजार गैर-पासी दलित, और 8 हजार मौर्य वोटर भी हैं। इस जातीय समीकरण को देखकर सपा को भरोसा है कि उसका ‘PDA’ यानी पासी, दलित, और मुस्लिम वोटों का गठजोड़ इस बार काम करेगा।
जाति/समुदाय | वोटर संख्या |
---|---|
यादव | 65,000 |
पासी | 60,000 |
मुस्लिम | 35,000 |
ब्राह्मण | 50,000 |
ठाकुर | 25,000 |
गैर-पासी दलित | 50,000 |
मौर्य | 8,000 |
चौरासिया | 15,000 |
पाल | 8,000 |
वैश्य | 12,000 |
अन्य जातियाँ | 30,000 |
क्या योगी ने मिल्कीपुर में जीत का प्लान तैयार किया है?
बीजेपी ने मिल्कीपुर उपचुनाव को लेकर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस चुनाव को बहुत गंभीरता से लिया है। पिछले कुछ महीनों में योगी आदित्यनाथ खुद मिल्कीपुर सीट पर कई बार दौरा कर चुके हैं। इसके अलावा, उन्होंने इस चुनाव के लिए छह मंत्रियों की टीम भी बनाई है। ये मंत्री मिल्कीपुर में लोगों से सीधा संपर्क करेंगे और बीजेपी के पक्ष में वोट मांगेंगे।
योगी आदित्यनाथ ने इन मंत्रियों को बूथवार टोली बनाकर प्रचार करने का निर्देश दिया है। मंत्रियों के अलावा बीजेपी के कई और बड़े नेता भी यहां प्रचार करने के लिए भेजे गए हैं। बीजेपी ने अपनी सरकार के रोजगार मेले जैसे कार्यक्रमों के जरिए लोगों के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश की है, ताकि वोटरों में सरकार के प्रति सकारात्मक भावना बनी रहे।
सपा की पूरी ताकत मिल्कीपुर में
समाजवादी पार्टी भी इस उपचुनाव को लेकर बिल्कुल पीछे नहीं है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने खुद मिल्कीपुर चुनाव की जिम्मेदारी अपने हाथ में ली है। उन्होंने सपा के अयोध्या सांसद अवधेश प्रसाद को मिल्कीपुर सीट का प्रभारी बना दिया है। इसके अलावा, शिवपाल यादव, इंद्रजीत सरोज, और माता प्रसाद पांडेय जैसे सपा के बड़े नेताओं को भी इस चुनाव में प्रचार के लिए भेजा गया है।
सपा का मुख्य नारा इस बार संविधान और स्वाभिमान का है। सपा को उम्मीद है कि उनकी पार्टी का ‘PDA’ यानी पासी, दलित और मुस्लिम गठबंधन इस उपचुनाव में काम करेगा और उन्हें सफलता मिलेगी। अखिलेश यादव खुद इस सीट पर प्रचार करेंगे और सपा के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करेंगे।
मिल्कीपुर में किसका पलड़ा भारी?
मिल्कीपुर का जातीय समीकरण इस बार सपा के पक्ष में नजर आता है। इस सीट पर सपा ने पिछले कई चुनावों में जीत हासिल की है। 1967 से लेकर अब तक हुए 8 चुनावों में से सपा ने 6 बार जीत दर्ज की है। सपा के लिए यह सीट एक मजबूत किला रही है। । 2017 में बीजेपी के गोरखनाथ बाबा ने सपा के उम्मीदवार को हराया था, लेकिन 2022 में सपा फिर से जीत गई। अब इस सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं, क्योंकि सपा के उम्मीदवार अवधेश प्रसाद ने अयोध्या लोकसभा सीट से चुनाव जीत लिया है। इसके बाद यह सीट खाली हो गई और उपचुनाव का ऐलान हुआ।
क्या बीजेपी अयोध्या की हार का बदला ले पाएगी?
अब सवाल यह उठता है कि क्या बीजेपी अयोध्या लोकसभा की हार का बदला मिल्कीपुर उपचुनाव में ले पाएगी? मिल्कीपुर का सियासी समीकरण सपा के लिए ज्यादा फायदेमंद नजर आता है, लेकिन बीजेपी की पूरी कोशिश है कि वह इस सीट पर अपनी जीत सुनिश्चित करे।
बीजेपी इस बार पूरी ताकत से सपा को हराने की कोशिश कर रही है, लेकिन मिल्कीपुर के जातीय समीकरण और सपा के मजबूत आधार को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि बीजेपी यहां जीत पाएगी। हालांकि, बीजेपी ने अपनी पूरी चुनावी रणनीति तैयार की है और उम्मीद है कि वह यहां अपनी कड़ी मेहनत से जीत हासिल कर सकती है।
ये भी पढ़ें-
- टैक्सपेयर के लिए खुशखबरी! विवाद से विश्वास योजना की डेडलाइन में मिली और राहत
- 1 अप्रैल से लागू हो रहे इस नियम से बंद हो जाएगी ऑनलाइन रूपए ट्रांसफर में गड़बड़ी, RBI ने जारी किया सर्कुलर
- रसोई के सामान की कीमतों में उथल-पुथल, जानें दिसंबर में क्या हुआ सस्ता और क्या महंगा!
- Income Tax में कटौती की मांग तेज, क्या बजट 2025 में होगा बड़ा उलटफेर?
- मिडल क्लास का दर्द: टैक्स, महंगाई और खर्चों में उलझा, क्या सरकार राहत देगी?
- चीनी वायरस की दहशत में गिरा शेयर बाजार, निवेशकों को 10 लाख करोड़ का झटका
- क्या भारत में गरीबी घट रही है? जानिए असलियत और आंकड़ों के बीच की सच्चाई