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MP Lok Sabha Election Phase-1: लोकसभा चुनाव 2024 के प्रथम चरण का मतदान समाप्त, उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में हुई कैद

MP Lok Sabha Election Phase-1: लोकसभा चुनाव 2024 के प्रथम चरण का मतदान समाप्त हो गया है इसमें मध्य प्रदेश की 6 लोकसभा सीटों पर लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है और छह लोकसभा सांसदों की किस्मत को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में लॉक कर दिया हैl

शाम 6:00 बजे तक का वोटिंग प्रतिशत

मध्यप्रदेश की 6 लोकसभा सीटों पर 63.25 फीसदी मतदान

बालाघाट लोकसभा सीट पर 71.08 फीसदी मतदान

छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर 73.82 फीसदी मतदान

जबलपुर लोकसभा सीट पर 56.74 फीसदी मतदान

मंडला लोकसभा सीट पर 68.31 फीसदी मतदान

शहडोल लोकसभा सीट पर 59.91 फीसदी मतदान

सीधी लोकसभा सीट पर 51.24 फीसदी मतदान

छिंदवाड़ा लोकसभा

छिंदवाड़ा लोकसभा के लिए 2024 का यह चुनाव मील का पत्थर साबित होने वाला है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के चुनाव में ही तय कर लिया था कि 2024 के चुनाव में छिंदवाड़ा लोकसभा से कमलनाथ को आउट कर देंगे। और इसकी रणनीति बीते 5 साल से बनाई जा रही थी। बीते 5 सालों में भारतीय जनता पार्टी ने छिंदवाड़ा लोकसभा को राजनीति का अखाड़ा बना दिया था। और लोकसभा चुनाव के ठीक पहले जितनी राजनीतिक हलचल छिंदवाड़ा में हुई उतनी मध्य प्रदेश के दूसरे इलाके में देखने को नहीं मिली । सबसे पहले कमलनाथ ने ही कांग्रेस छोड़ने का शगुफा छोड़ा । इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने कमलनाथ के बेहद करीबी दीपक सक्सेना को भारतीय जनता पार्टी में शामिल कर लिया। और इसके अलावा छिंदवाड़ा के कई दूसरे नेताओं को भारतीय जनता पार्टी में शामिल किया गया। खुद अमित शाह चुनाव प्रचार के अंतिम दिन छिंदवाड़ा में अपनी पूरी ताकत झोंकते हुए नजर आए। और कसर रह गई थी तो बंटी साहू के एमएमएस के मामले में पुलिस ने जो माहौल बनाया उसमें भी कहीं ना कहीं सरकार ही नजर आई । जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र दुबे का कहना है कि कमलनाथ की जडे छिंदवाड़ा में बहुत गहरी है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने इन्हें उखाड़ने की बड़ी कोशिश की है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी की कोशिश से भी अभूतपूर्व रही है । इसलिए यदि छिंदवाड़ा की जनता ने 74 प्रतिशत मतदान किया है। तो किसका भविष्य बनाया है इसके बारे में सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता । कमलनाथ 1980 से लगातार छिंदवाड़ा लोकसभा से नौ बार सांसद रह चुके हैं । उनके अलावा उनकी पत्नी अलका नाथ और नकुलनाथ यहां से सांसद रहे हैं । केवल एक बार कमलनाथ को सुंदरलाल पटवा ने चुनाव हरा दिया था इस बार का चुनाव कमलनाथ के परिवार के लिए राजनीति की नई दिशा और दशा तय करेगा । यदि वे जीत गए तो इस अभेद किले में घुसने की कोशिश भारतीय जनता पार्टी दोबारा नहीं करेगी। और यदि वे हार गए तो छिंदवाड़ा में नई राजनीति का उदय होगा । भारतीय जनता पार्टी ने यहां एक स्थानीय नेता बंटी साहू को मैदान में उतारा है। बंटी साहू इसके पहले कमलनाथ के खिलाफ दो बार विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं । हालांकि उन्हें अब तक जीत हासिल नहीं हुई है । लेकिन एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें पर दाव लगाया है।

मंडला लोकसभा

लोकसभा चुनाव 2024 भारतीय जनता पार्टी के एक बड़े नेता फग्गन सिंह कुलस्ते की किस्मत भी तय करने वाला है। फगन सिंह कुलस्ते मंडला में 1996 से लेकर अब तक लगातार छह बार लोकसभा सांसद रह चुके हैं। केवल 2009 में भी चुनाव हार गए थे इस बार का चुनाव भी फगन सिंह कुलस्ते के लिए सरल नहीं है। क्योंकि विधानसभा चुनाव में कुलस्ते निवास विधानसभा से उम्मीदवार थे। और उन्हें हर का सामना करना पड़ा । वही मंडला लोकसभा की आठ विधानसभा सीटों में पांच विधानसभा सीट कांग्रेस के पास हैं। ऐसी स्थिति में फगन सिंह कुलस्ते को यह चुनाव सरल नहीं है। वहीं उनके खिलाफ ओंकार सिंह मरकाम को चुनाव मैदान में उतर गया है । ओंकार सिंह मरकाम तेज तर्रार युवा नेता हैं । कमलनाथ सरकार के दौरान भी मंत्री भी रहे हैं । और डिंडोरी जिले से विधायक भी चुने गए हैं। मंडला लोकसभा विकास की दृष्टि से भी बहुत ही पिछड़ा इलाका है। यहां बड़े पैमाने पर आदिवासी लोग रहते हैं और इन लोगों के सामने सड़क बिजली पानी जैसी बुनियादी समस्याएं हैं। रोजगार की स्थिति बहुत ही खराब है। और अभी भी इस लोकसभा क्षेत्र के कई इलाकों से लोगों को रोजगार के लिए पलायन करना पड़ता है भौगोलिक नजरिया से यह सीट चार जिलों में आती है जिसमें डिंडोरी मंडला और शिवानी और नरसिंहपुर शामिल है इसलिए इस लोकसभा सीट पर अलग-अलग राजनीतिक दबाव काम करते हैं बीते दिनों में फगन सिंह कुलस्ते की घटती लोकप्रियता इस चुनाव में उन्हें नुकसान पहुंचा सकती है हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने इस लोकसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। और खुद अमित शाह यहां चुनाव प्रचार करने के लिए पहुंचे थे।

जबलपुर लोक सभा

जबलपुर लोकसभा का चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए अब तक का सबसे सरल चुनाव रहा है भारतीय जनता पार्टी ने यहां बिल्कुल नए कार्यकर्ता आशीष दुबे को चुनाव मैदान में उतारा इसकी वजह भारतीय जनता पार्टी की विधानसभा में अभूतपूर्व जीत है । भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा चुनाव में जबलपुर जिले में आठ विधानसभा सीटों में से सात विधानसभा सीटों पर चुनाव जीता था । और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार अच्छे खासे मतों से जीते थे। इसलिए पार्टी ने नए उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतार दिया। इसके पहले जबलपुर से बीते चार चुनाव में राकेश सिंह जबलपुर के संसदीय क्षेत्र से जीतते रहे हैं । भले ही भारतीय जनता पार्टी को जबलपुर में जीत सरल नजर आ रही थी । लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव प्रचार में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जबलपुर में रोड शो करने आए थे। दूसरी तरफ कांग्रेस चुनाव के मैदान में बेहद कमजोर नजर आई । कांग्रेस की ओर से दिनेश यादव चुनाव मैदान में थे । दिनेश यादव जबलपुर शहर के नेता हैं । और ग्रामीण इलाकों में उनका बहुत वर्चस्व नहीं था । वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस का कोई स्टार प्रचारक जबलपुर में प्रचार करने के लिए नहीं आया यहां तक की जबलपुर के ही नेता विवेक तंखा भी चुनाव प्रचार में कहीं नजर नहीं आए। कमलनाथ सरकार में वित्त मंत्री रहे तरुण भनोट भी चुनाव प्रचार से गायब रहे। ऐसी स्थिति में जबलपुर का चुनाव लगभग एकतरफा नजर आ रहा है।

शहडोल लोकसभा

शहडोल लोकसभा में भी आठ विधानसभा क्षेत्र हैं इनमें से सात विधानसभा क्षेत्र भारतीय जनता पार्टी के पास हैं। और केवल एक विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस के पास था । इसी विधानसभा क्षेत्र पुष्पराजगढ़ से कांग्रेस के नेता फुदेलाल मार्को चुनाव मैदान में उतरे। कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने के लिए कांग्रेस के स्टार प्रचारक और सबसे बड़े नेता राहुल गांधी भी शहडोल में प्रचार करने के लिए पहुंचे थे । हालांकि इस सीट पर कांग्रेस को जितना बहुत कठिन है । क्योंकि खुद बुंदेलाल मार्को भी विधानसभा चुनाव में मात्र 44000 वोटो से ही जीते थे । भारतीय जनता पार्टी ने यहां से हिमाद्री सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है। 2019 के चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने हिमाद्री सिंह को ही अपना प्रत्याशी बनाया था। और वचन कर लोकसभा में गई थी । शहडोल लोकसभा 1996 के बाद से अब तक भारतीय जनता पार्टी के पास रही है । केवल 2009 में एक बार यहां कांग्रेस का उम्मीदवार जीत पाया था । हालांकि इस लोकसभा क्षेत्र में भयंकर गरीबी है ज्यादातर लोग आदिवासी हैं । स्थानीय लोगों के पास रोजगार नहीं है पीने के पानी तक के संकट हैं। बड़े पैमाने पर लोग रोजगार की तलाश में पलायन करते हैं । इन समस्याओं के बाद भी जनता भरोसा भारतीय जनता पार्टी पर ही दिखती है । अब देखना है इस बार जनता ने क्या सोचा है।

बालाघाट लोकसभा सीट

बालाघाट लोकसभा सीट में भी जनता ने 71% से अधिक मतदान किया है । यहां बिल्कुल दो नए उम्मीदवार चुनाव मैदान में है। भारतीय जनता पार्टी से भारती पारधि और कांग्रेस से सम्राट सिंह को टिकट मिली है। बालाघाट लोकसभा में आठ विधानसभा क्षेत्र हैं । इनमें से 6 विधानसभा क्षेत्र बालाघाट जिले के हैं। और दो विधानसभा क्षेत्र सिवनी जिले के हैं । लेकिन यहां मुकाबला कांटे का है । क्योंकि चार विधानसभा क्षेत्र पर भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है। और चार विधानसभा क्षेत्र पर कांग्रेस का कब्जा है। बालाघाट लोकसभा में भी पिछले 6 चुनाव भारतीय जनता पार्टी जीती आ रही है । 1998 के बाद से अब तक यहां कभी भारतीय जनता पार्टी नहीं हारी। हालांकि बालाघाट में चुनाव जीतने के बाद उम्मीदवारों को बदलने की परंपरा भारतीय जनता पार्टी अपनाती रही है। इसलिए यहां से 1999 में पहलाद पटेल 2004 में गौरीशंकर बिसेन 2009 में केडी देशमुख 2014 में बुध सिंह भगत और 2019 के चुनाव में ढाल सिंह बिसेन ने जीत हासिल की थी । लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने ढाल सिंह बिसेन को टिकट देने की बजाय एक बहुत छोटा कार्यकर्ता भारती पारदी को लोकसभा का उम्मीदवार बना दिया। कांग्रेस ने सम्राट सिंह सारस्वत पर दाव लगाया है। सम्राट सिंह सारस्वत बालाघाट जिले के जिला पंचायत अध्यक्ष हैं । और उनके इस इलाके में अच्छा जन आधार है। बालाघाट भारत के उन 12 जिलों में शामिल है । जिन्हें नक्सल प्रभावित घोषित किया गया है । और यहां पर बड़े पैमाने पर नक्सली गतिविधियां होती हैं । बालाघाट का बहुत बड़ा इलाका नक्सल समस्या की वजह से विकास की मुख्य धारा से कटा हुआ है। यहां अभी भी लोग बुनियादी सुख सुविधाओं से बहुत दूर हैं। हालांकि बालाघाट में कुछ इलाका धान की अच्छी खेती के लिए जाना जाता है ऐसी स्थिति में बालाघाट की जनता ने किसे अपना नेता चुना है इसका पता 4 जून को ही लगेगा।

सीधी लोकसभा

सीधी लोकसभा के सियासत एकदम सीधी नहीं है । बल्कि यहां मुकाबला तीन लोगों के बीच में है कांग्रेस ने पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल को प्रत्याशी बनाया है। भारतीय जनता पार्टी ने राजेश मिश्रा को चुनाव मैदान में उतारा है। वहीं राज्यसभा सांसद रहे अजय प्रताप सिंह ने भारतीय जनता पार्टी से बगावत करके गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ चुनाव मैदान में जोर आजमाइश की है। 19 अप्रैल को जिन छह लोकसभा सीटों में मध्य प्रदेश में चुनाव हुआ उनमें सबसे कम वोट सीधी लोकसभा में ही पड़ा । और यहां शाम 6:00 बजे की स्थिति में मात्र 51% लोगों ने ही वोट डाला है। सीधी लोकसभा में ज्यादा जोर आजमाइश राजनीतिक चेहरों पर ही है । कमलेश्वर पटेल कुर्मी समाज के नेता हैं । और उनके पिता इंद्रजीत पटेल मध्य प्रदेश सरकार में शिक्षा मंत्री थे। इस परिवार का इस पूरे इलाके में अच्छा जानदार है । वही भारतीय जनता पार्टी की पूर्व सांसद रीति पाठक इस इलाके से दो बार सांसद रह चुके हैं । यहां पर बड़े पैमाने पर ब्राह्मण वोटर है । ब्राह्मण केवल वोटर ही नहीं है बल्कि यहां अच्छी खासी राजनीतिक दखल रखता है । लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने रीति पाठक की जगह है । डॉ राजेश मिश्रा को चुनाव मैदान में उतार दिया । डॉ राजेश मिश्रा को सबसे ज्यादा चुनौती अजय प्रताप सिंह से मिली। क्योंकि अजय प्रताप सिंह इस इलाके के पुराने नेता हैं। उनकी पार्टी में और कार्यकर्ताओं के बीच में अच्छी पकड़ थी । उन्हें उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें उम्मीदवार बनाएगी । लेकिन जब उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया गया तो उन्होंने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से चुनाव लड़ लिया। इसका कितना असर हुआ यह तो परिणाम बताएंगे । लेकिन उन्होंने इस चुनाव को प्रभावित जरूर किया है । सीधी लोकसभा में का एक और चर्चित चेहरा अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह राहुल है हालांकि वे इस चुनाव के दौरान शांत नजर आए । और उन्होंने कमलेश्वर पटेल के पक्ष में ही काम किया।

सीधी लोकसभा क्षेत्र अमीर धरती पर गरीब लोगों की बस्ती है। सीधी में कोयले की खदानें हैं । बड़े पैमाने पर बिजली का उत्पादन होता है । लेकिन सीधी का आदिवासी और ग्रामीण बेहद गरीब है । और यहां बुनियादी समस्याएं मुंह बाए खड़ी रहती हैं । लेकिन यहां भी लंबे समय से 1998 से लगातार भारतीय जनता पार्टी जीती चली आ रही है । केवल 2007 में एक बार यहां कांग्रेस जीती थी। इस बार सीधी की जनता ने किसकी किस्मत बनाई है यह तो परिणाम में पता लगेगा।

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