Mustachioed Ram: कहां विराजे हैं मूछों वाले राम? जानिए इस मंदिर की पूरी कहानी
Mustachioed Ram : चिड़ावा (झुंझुनूं)। अयोध्या में राम जन्मभूमि में नए भव्य मंदिर में आज राम नवमी पर पहली बार उत्सव मनाया जा रहा है। इस ऐतिहासिक क्षण पर हम भी एक ऐतिहासिक राम मंदिर के इतिहास पर नजर डालते है जिसमें मूंछों वाले राम विराजते हैं। झुंझुनूं जिले के चिड़ावा शहर के विवेकानंद चौक में स्थित है ये राम मंदिर, जिसे यहां के महंत रहे गौलोकवासी केवलदास बाबा के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर का पुख्ता इतिहास तो किसी को नहीं पता लेकिन वर्तमान महंत जयराम स्वामी बताते हैं कि पूर्व महंतों के बताए अनुसार सबसे पहले यहां तकरीबन 250 साल से भी अधिक समय पहले डालमिया परिवार ने मंदिर परिसर में सभा मंडप और तिबारा निर्माण कर भगवान राम,जानकी और लक्ष्मण जी के साथ ही हनुमानजी के विग्रह स्थापित किए। लेकिन उस समय भी यहां शिवालय स्थापित था। शिवालय संत-महात्माओं ने तप करने के दौरान यहां स्थापित किया बताते हैं।
मूंछों वाले राम-लक्ष्मण की नयनाभिराम छवि
मंदिर परिसर में सबसे अद्भुत और आश्चर्यजनक नजारा सभा मंडप में विराजे राम-लक्ष्मण की मूर्तियों में दिखता है। यहां भगवान राम और लक्ष्मण के मूछें हैं। मूंछों में भगवान का स्वरूप काफी अद्भुत और मनोरम लगता है। हालांकि मूर्तियों के मूंछों के पीछे क्या कहानी रही है, इसकी कोई जानकारी नहीं लगी है। लेकिन इसके पीछे कुछ वजह जरूर रही होगी।
यहां विराजे हैं दक्षिण मुखी हनुमान
वहीं इस मंदिर की सबसे विशेष बात ये है कि भगवान के सभामण्डप में बिल्कुल सामने मंदिर के चौक के मध्य में मंडप में हनुमानजी महाराज की तीन मूर्तियां विराजित हैं। खास बात ये है कि यहां हनुमान जी का मुख दक्षिण दिशा में राम दरबार की ओर है। ऐसे में दक्षिण मुखी हनुमान के पूजन का विशेष महत्व के चलते राम और राम भक्त हनुमान के दर्शनों को बड़ी संख्या श्रद्धालु प्रतिदिन यहां आते हैं।
संतों ने स्थापित किया शिवालय
मंदिर से भी पुराने शिवालय की स्थापना महायोगी तपस्वियों द्वारा मंदिर से भी सैकड़ों वर्षों पहले हुई बताई जाती है। शिवालय का कई बार जीर्णोद्धार हो चुका है। यहां चतुर्मुखी शिवलिंग स्थापित है। शिव परिवार भी इनके साथ विराजमान है।
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संत ने कराया था धर्मशाला का निर्माण
इस मंदिर में सैकड़ों साल पहले केवल सभामण्डप, तिबारा और शिवालय ही स्थापित था। फिर यहां महंत हरिदास जी ने यहां का कायाकल्प किया। उन्होंने इस पूरे परिसर की चार दिवारी करवाई। उन्होंने यहां धर्मशाला का निर्माण भी करवाया। इसके बाद ये मंदिर खूब ख्यात हुआ। धर्मशाला को आज भी हरिदास सेवा सदन के नाम से जाना जाता है। विवाह व अन्य मांगलिक आयोजनों में ये धर्मशाला क्षेत्र के लोगों के खूब काम आती हैं।
मंदिर का हुआ पुनर्निर्माण-
मंदिर प्राचीन समय में काफी अद्भुत था। लेकिन कालांतर में ये जीर्णशीर्ण हो गया। इसके बाद 1995 में बालकृष्ण अडूकिया ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। मंदिर में स्थापत्य कला का नजारा देखने को मिलता है। यहां सभा मंडप और मंदिर के चौक से अंदर आने वाले द्वार की छटा निराली है। भगवान के सभा मंडप में गर्भगृह के एक तरफ हनुमान जी और दूसरी तरफ राम दरबार की मनमोहक तस्वीर नीलकंठ पुजारी द्वारा बनाई गई है।
प्राचीन छतरी है आकर्षण का केंद्र-
मंदिर में मुख्य प्रवेश द्वार में अंदर आते ही बांयी तरफ ऊपर बनी है एक अद्भुत छतरी भी आकर्षण का केंद्र है। यहां छतरी पर काफी सुंदर चित्रकारी की हुई है। ये छतरी सैकड़ों साल पहले यहां महंत रहे किसी संत की समाधि के ऊपर बनवाई हुई है। छतरी में छह खंभे हैं। आस्था, श्रद्धा, भक्ति और विश्वास के महासंगम इस धर्म स्थल पर एक बार अवश्य पधारें। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि दिल से मांगी गई मुराद यहां अवश्य पूरी होगी।