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स्पेस में भारतीय वैज्ञानिक का नाम, नासा की चंद्रा वेधशाला

अंतरिक्ष की दुनिया रहस्यों से भरी हुई है। इन रहस्यों को सुलझाने के लिए अमेरिका,भारत,चीन,जापान,यूके समेत दुनियाभर के देशों की स्पेस एजेंसियां काम कर रही हैं। हालांकि दुनियाभर में स्पेस के मामले में सबसे ज्यादा उपलब्धियां अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के नाम है। लेकिन आज हम आपको नासा की एक ऐसी वेधशाल के बारे में बताने वाले हैं, जिसका नाम भारतीय है। जी हां, जानिए आखिर नासा ने क्यों भारतीय नाम पर वेधशाला का नाम रखा है।

चंद्रा नाम की वेधशाला

स्पेस में नासा की एक चंद्रा एक्स रे वेधशाला या ऑबजर्वेटरी है। जब भी कोई भारतीय इसका पहली बार नाम सुनता है, तो उसे लगता है कि आखिर ये भारतीय नाम क्यों है। जानकारी के लिए बता दें कि इस वेधशाला का चंद्रा या चंद्रमा से किसी तरह का कोई संबंध नहीं है। क्योंकि यह वेधशाला चंद्रमा के अध्ययन के लिए नहीं हैं। बल्कि यह तो असल में एक अमेरिकी वैज्ञानिक के नाम पर रखा गया है, जो कि भारतीय मूल के थे। बता दें कि ये वैज्ञानिक नोबल पुरस्कार से सम्मानित सुब्रमण्यम चंद्रशेखर थे।

वेधशाला

चंद्रा एक्स-रे वेधशाला नासा के “महान वेधशालाओं” के बेड़े का हिस्सा है, जिसमें हबल स्पेस टेलीस्कोप, स्पिटाइज़र स्पेस टेलीस्कोप और अब कक्षा से बाहर हो चुकी कॉम्पटन गामा रे वेधशाला शामिल है। 23 जुलाई, 1999 को अपने प्रक्षेपण के बाद से, चंद्रा एक्स-रे वेधशाला एक्स-रे खगोल विज्ञान के लिए नासा का प्रमुख मिशन रहा है। चंद्रा वेधशाला दुनिया भर के वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड की संरचना और विकास को समझने में मदद करने के लिए विदेशी वातावरण की एक्स-रे तस्वीरें हासिल करती है।

क्या है चंद्रा वेधशाला ?

नासा की चंद्रा एक्स-रे वेधशाला असल में एक दूरबीन या टेलीस्कोप है। इसे खास तौर से ब्रह्मांड के बहुत गर्म इलाकों जैसे विस्फोटित तारों, आकाशगंगाओं के समूहों और ब्लैक होल के आसपास के पदार्थ से निकलने वाले एक्स-रे विकिरण का पता लगाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। एक्स-रे की किरणें पृथ्वी का वायुमंडल अवशोषित कर लेता है। यही कारण है कि चंद्रा को अंतरिक्ष में 139,000 किमी की ऊंचाई पर स्थापित किया गया है।

कैसे काम करता है ये एक्स रे

बता दें कि अंतरिक्ष से आने वाली किरणें कई प्रकार की होती हैं। सभी की आवृतियां अलग अलग होती हैं। इतना ही नहीं इसमें अधोरक्त तरंगों से लेकर, दिखाई देने वाले प्रकाश, पराबैंगनी, एक्स रे, गामा रे और रेडियो तरंगें तक शामिल होती हैं। इनमें हर प्रकार के तरंगों को पकड़ने और समझने के लिए अलग-अलग टेलीस्कोप की जरूरत होती है। पृथ्वी के वायुमंडल से कई किरणें प्रभावित हो जाती हैं, इसलिए कई टेलीस्कोप स्पेस में स्थापित किए जाते हैं।