नेहरू मेमोरियल का नाम क्यों बदला गया?
नेहरू मेमोरियल का इतिहास बेहद दिलचस्प है और यह भारतीय राजनीति में एक अहम स्थान रखता है। यह वही स्थान है, जहां पंडित नेहरू ने अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में समय बिताया था और जहां उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। इसे आजकल नेहरू म्यूजियम के नाम से जाना जाता है, जो पंडित नेहरू की यादों को संजोने के लिए बनाया गया था। यह म्यूजियम दिल्ली के तीन मूर्ति भवन में स्थित है और इसका संचालन नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी सोसाइटी करती है, जो भारतीय संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संस्था है।
हालांकि, मोदी सरकार के शासन में 2019 में इसका नाम बदलकर “प्रधानमंत्री म्यूजियम एंड सोसाइटी” कर दिया गया। सरकार का कहना था कि यह म्यूजियम अब सिर्फ पंडित नेहरू से जुड़ा नहीं होगा, बल्कि इसमें सभी भारतीय प्रधानमंत्रियों की भूमिका को भी दिखाया जाएगा। मोदी सरकार ने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सम्मान देने और हर प्रधानमंत्री की भूमिका को उजागर करने के लिए जरूरी बताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 अप्रैल 2022 को इस म्यूजियम का उद्घाटन किया।
वहीं, कांग्रेस पार्टी ने इस फैसले का विरोध किया। उनका कहना था कि यह कदम पंडित नेहरू की विरासत और उनके योगदान को कमजोर करने की कोशिश है। कांग्रेस के नेताओं का कहना था कि इस तरह के बदलाव से नेहरू की पहचान मिटाई जा रही है, जो कि उनके योगदान का अपमान है।
क्या है नेहरू मेमोरियल का इतिहास ?
तीन मूर्ति भवन का निर्माण ब्रिटिश काल में हुआ था, 1929-30 के आसपास, और यह अंग्रेजों के कमांडर-इन-चीफ का आधिकारिक निवास हुआ करता था। स्वतंत्रता के बाद, अगस्त 1948 में इसे पंडित नेहरू का आधिकारिक निवास बना दिया गया। पंडित नेहरू ने यहां 27 मई 1964 तक 16 सालों तक देश की सेवा की। उनके निधन के बाद, तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन ने 14 नवंबर 1964 को तीन मूर्ति भवन को नेहरू स्मारक संग्रहालय के रूप में राष्ट्र को समर्पित किया।
इसके बाद, 1966 में नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी सोसाइटी की स्थापना की गई, जो आज भी इस संग्रहालय का संचालन करती है। साल 2016 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेहरू मेमोरियल का नाम बदलने की घोषणा की, तो कांग्रेस ने इसका विरोध किया। कांग्रेस का कहना था कि यह कदम पंडित नेहरू की पहचान को मिटाने की कोशिश है। वहीं, सरकार का तर्क था कि यह बदलाव लोकतांत्रिक सफर को और बेहतर तरीके से दर्शाने के लिए जरूरी था, ताकि सभी प्रधानमंत्रियों की भूमिका को सम्मान मिल सके।
नेहरू से जुड़े दस्तावेजों की वापसी की मांग
अब एक नया विवाद यह उत्पन्न हो गया है कि पंडित नेहरू से जुड़ी चिट्ठियां सोनिया गांधी से क्यों नहीं लौटाई गईं? ये चिट्ठियां एडविना माउंटबेटन से पंडित नेहरू के पत्राचार से संबंधित हैं और इन्हें 2008 में सोनिया गांधी ने मंगवाया था। इतिहासकार और नेहरू मेमोरियल के सदस्य रिजवान कादरी ने राहुल गांधी को पत्र लिखकर इन चिट्ठियों को प्रधानमंत्री म्यूजियम और लाइब्रेरी को लौटाने की अपील की है। उन्होंने कहा कि यह चिट्ठियां देश की धरोहर हैं और इन्हें सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
क्या वाकई नेहरू मेमोरियल का नाम बदलने का फैसला सही था?
नेहरू मेमोरियल का नाम बदलने का फैसला एक ऐसा मुद्दा बन चुका है, जिस पर राजनीतिक विवाद अभी भी जारी है। सरकार का कहना है कि इस बदलाव का मकसद लोकतांत्रिक यात्रा को सही तरीके से दर्शाना है, ताकि सभी प्रधानमंत्रियों की भूमिका को समान सम्मान मिल सके। सरकार का तर्क है कि यह बदलाव समय की मांग है और इससे भारत की लोकतांत्रिक यात्रा का हर पहलू सामने आएगा।
वहीं, कांग्रेस और विपक्ष इस कदम का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि नेहरू मेमोरियल का नाम बदलने का यह फैसला पंडित नेहरू के योगदान को नकारने की कोशिश है। उनका मानना है कि नेहरू ने देश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और ऐसे में उनके नाम को इतिहास से मिटाना या कमतर दिखाना देश की आत्मा को चोट पहुंचाने जैसा होगा।
इस विवाद ने नेहरू के योगदान और उनके स्थान को लेकर एक नई बहस शुरू कर दी है, और यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या यह बदलाव वाकई देश की बेहतरी के लिए है या यह सिर्फ राजनीति का हिस्सा बन चुका है।