ओडिशा में ज्योतिष पीठ उत्तराखंड के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने केंद्र सरकार से अपील की है कि गाय को जानवरों की श्रेणी से बाहर किया जाए। उनका कहना है कि भारत की संस्कृति और परंपरा में गाय को माता का दर्जा दिया गया है, और इसे जानवर कहना सनातन धर्म का अपमान है। शंकराचार्य ओडिशा में गौ प्रतिष्ठा ध्वज स्थापना भारत यात्रा के तहत पहुंचे हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य गायों के संरक्षण और सेवा के लिए कानून बनवाना है।
गौ माता की सेवा का संकल्प
शंकराचार्य ने लिंगराज मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद मीडिया से बातचीत की। उन्होंने स्पष्ट कहा कि यह यात्रा सरकार से एक ऐसा कानून बनवाने के लिए है जो गोमाता के संरक्षण और संवर्द्धन को सुनिश्चित करे। उनका मानना है कि गाय का महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक भी है। गाय को जानवरों की श्रेणी में रखना न केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि पूरे भारतीय समाज के लिए अपमानजनक है।
गाय को देवी के रूप में पूजा जाता है
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा, “भारत की सभ्यता में गाय को देवी के रूप में पूजा जाता है। ऐसे में, सरकार की लिस्ट में गाय को जानवर कहना हमारे लिए गहरी चोट है।” उन्होंने आगे कहा कि इस बात को समझना जरूरी है कि गाय केवल एक पशु नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। गाय को माता की उपाधि देकर उसकी विशेषता को मान्यता दी गई है, और यह परंपरा आगे बढ़ाना जरूरी है।
कानून बनने से होगा बदलाव
उन्होंने इस कानून की जरूरत पर जोर देते हुए कहा, “यदि यह कानून अस्तित्व में आ जाता है और लोग इसके महत्व को समझते हैं, तो उनका सोचने का नजरिया भी बदलेगा।” शंकराचार्य का मानना है कि समाज में गाय के प्रति जागरूकता बढ़ाने से इसके संरक्षण में मदद मिलेगी। वह लंबे समय से गो संरक्षण और संवर्द्धन के लिए विभिन्न राज्यों में यात्राएं कर रहे हैं, ताकि लोग गायों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझ सकें।
संस्कृति को जीवित रखने की आवश्यकता
इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि गायों की सुरक्षा और उनके प्रति संवेदनशीलता को बढ़ावा देने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए। शंकराचार्य की यह यात्रा एक बड़े आंदोलन की ओर इशारा कर रही है, जिसमें वे लोगों को गायों के प्रति सम्मान और संरक्षण के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उनका मानना है कि केवल कानून बनाना ही काफी नहीं है, बल्कि समाज में इसके प्रति जागरूकता और बदलाव भी लाना आवश्यक है।
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