One Nation One Election: ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ पर बड़ी पहल, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई 18,626 पेज की रिपोर्ट…
One Nation One Election: पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाले एक पैनल ने गुरुवार को राष्ट्रपति द्रौपदी (One Nation One Election) को ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने 18,626 पन्नों की यह रिपोर्ट राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी। पैनल ने राजनीतिक दलों, हितधारकों और विशेषज्ञों के साथ व्यापक चर्चा और 191 दिनों के शोध कार्य के बाद यह रिपोर्ट तैयार की। पैनल का गठन 2 सितंबर 2023 को किया गया था। हालांकि, विपक्ष ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के लिए तैयार नहीं है। इसको लेकर उनके मन में संदेह और आशंकाएं हैं। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘एक देश एक चुनाव’ के पक्ष में हैं।
पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा की जानकारी
इस रिपोर्ट के पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव की जानकारी दी गई है। दूसरे चरण में नगर पालिकाओं (One Nation One Election) और पंचायतों को लोकसभा और विधानसभा से इस तरह जोड़ने को कहा गया है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के 100 दिन के भीतर निकायों के चुनाव करा लिए जाएं। प्रस्तावित रिपोर्ट लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव कराने के लिए एकल यानी सामान्य मतदाता सूची की ओर भी ध्यान आकर्षित करती है। वर्तमान में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए अलग-अलग मतदाता सूची तैयार की जाती है। वहीं, स्थानीय नगर निकायों और पंचायतों के चुनाव के लिए मतदाता सूची राज्य चुनाव आयोग की देखरेख में होती है।
One Nation One Election: फायदे और नुकसान
विशेषज्ञों का कहना है कि इसके पक्ष में तर्क यह है कि बार-बार आचार संहिता लागू करनी पड़ती है, इसलिए नीतिगत (One Nation One Election) फैसले नहीं लेते, इससे छुटकारा मिल जाएगा। इससे बार-बार होने वाले चुनावों में होने वाले भारी खर्च में कमी आएगी। इससे कालेधन और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी। कर्मचारियों और सुरक्षा बलों का समय बचेगा। विरोधियों का तर्क है कि यह विचार देश के संघीय ढांचे के खिलाफ होगा और संसदीय लोकतंत्र के लिए घातक कदम होगा। संवैधानिक समन्वय का अभाव रहेगा। कहा जा रहा है कि पार्टी को केंद्र में ज्यादा फायदा होगा।
‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ के क्या फायदे हैं…
धन की बर्बादी से बचना: पक्ष में यह तर्क दिया गया है कि एक राष्ट्र-एक चुनाव विधेयक के लागू होने से देश में हर साल होने वाले चुनावों पर खर्च होने वाली भारी मात्रा में धन की बचत होगी। आपको बता दें कि 1951-1952 के लोकसभा चुनाव में 11 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये का भारी भरकम खर्च हुआ। पीएम मोदी ने कहा है कि इससे देश के संसाधनों की बचत होगी और विकास की गति धीमी नहीं होगी।
बार-बार चुनाव कराने के झंझट से छुटकारा: चुनाव एक ऐसा चुनाव है जो भारत जैसे बड़े (One Nation One Election) देश में हर साल कहीं न कहीं आयोजित किया जाता है। इन चुनावों के आयोजन में पूरे राज्य की मशीनरी और संसाधनों का उपयोग किया जाता है। लेकिन इस बिल के बनने से बार-बार चुनाव की तैयारियों से छुटकारा मिल जाएगा। पूरे देश में चुनाव के लिए एक ही मतदाता सूची होगी, जिससे सरकार के विकास कार्यों में कोई बाधा नहीं आएगी।
काले धन पर लगेगी लगाम: ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के पक्ष में एक तर्क यह है कि इससे काले धन और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी. विभिन्न राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों पर चुनाव के दौरान काले धन का इस्तेमाल करने का आरोप है। लेकिन कहा जा रहा है कि इस बिल के लागू होने से यह समस्या काफी हद तक हल हो जाएगी।
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