One Nation One Election: केंद्रीय कैबिनेट ने ‘एक देश, एक चुनाव’ प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। सूत्रों के अनुसार यह बिल मौजूदा शीतकालीन सत्र में संसद में पेश किया जा सकता है। इस बिल के बारे में सभी राजनीतिक दलों से सुझाव लिया जाएगा और फिर इसे संसद में पास कराया जाएगा। ज्ञात हो, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमिटी ने ‘एक देश, एक चुनाव’ पर रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। सूत्रों के मुताबिक, इस प्रस्ताव को केंद्रीय कानून मंत्री ने कैबिनेट में रखा था और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस पर विस्तार से जानकारी दी थी।
‘एक देश, एक चुनाव’ के तहत बनी कमिटी ने क्या कहा ?
‘एक देश, एक चुनाव’ के तहत अब लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने की योजना है। रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि पहले कदम में लोकसभा और राज्यसभा के चुनाव एक साथ होने चाहिए आगे कमिटी ने यह भी कहा है कि लोकसभा और राज्यसभा के चुनाव होने के बाद 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव भी हो जाने चाहिए।
क्या है ‘एक देश, एक चुनाव’ का आईडिया ?
पीएम मोदी लंबे समय से ‘एक देश, एक चुनाव’ के समर्थन में हैं और उनका कहना है कि चुनाव बस तीन-चार महीने के लिए ही होना चाहिए ताकि सारी पार्टिया अपनी पूरी दम से एक बार में सारे चुनाव लड़े और फिर इसके बाद अपना पूरा ध्यान राजनीति छोड़ काम पर लगाएं। इसके साथ ही चुनावों में खर्च कम होना चाहिए और प्रशासन पर ज्यादा दबाव नहीं पड़ना चाहिए। ‘एक देश, एक चुनाव’ का मतलब है कि भारत में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ आयोजित किए जाएं।
देश में पहले भी रही है ऐसी व्यवस्था
‘एक देश एक चुनाव’ भारत के लिए कोई नया विचार नहीं है। आज़ादी के बाद से लेकर 1967 तक, लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होते थे। 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा दोनों के चुनाव एक ही समय पर हुए थे। लेकिन राज्यों के पुनर्गठन और अन्य कारणों की वजह से बाद में ये चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।
एक देश एक चुनाव के पीछे पीएम मोदी का विज़न
- • ‘एक देश एक चुनाव’ से जनता को बार-बार चुनावों के झंझट से छुटकारा मिलेगा।
- • हर चुनाव पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, जिन्हें बचाया जा सकता है।
- • यह विचार देश में राजनीतिक स्थिरता लाने में मदद कर सकता है।
- • चुनावों के कारण नीतियों में बार-बार बदलाव की समस्या भी कम हो जाएगी।
- • सरकारें चुनावी मोड में जाने के बजाय विकास कार्यों पर ज्यादा ध्यान दे पाएंगी।
- • प्रशासन को भी इसका फायदा होगा और गवर्नेंस में सुधार होगा।
- • पॉलिसी पैरालिसिस जैसी स्थिति से निजात मिलेगी, जिससे अधिकारियों का समय और ऊर्जा बच सकेगी।
- • इससे सरकारी खजाने पर बोझ भी कम होगा और आर्थिक विकास में तेजी आएगी
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