Jammu & Kashmir Elections: दिल्ली में कश्मीरी पंडितों की मिल रही वोटिंग की विशेष सुविधा
Jammu & Kashmir Elections: जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव के पहले चरण में दिल्ली के चार मतदान केंद्रों पर कश्मीरी पंडितों की वोटिंग जारी है। यह विशेष सुविधा विस्थापित कश्मीरी पंडितों को उनके अधिकारों का सम्मान करने के लिए दी गई है। सुबह से ही मतदान केंद्रों पर लंबी कतारें देखी जा रही हैं, जहां कश्मीरी पंडित अपने मताधिकार का उपयोग कर रहे हैं। इस प्रक्रिया के दौरान सुरक्षा के सख्त इंतजाम किए गए हैं, ताकि केवल वोटर्स और चुनाव कर्मचारी ही मतदान केंद्रों पर जा सकें।
क्यों मिलती है ये सुविधा?
कश्मीरी पंडितों को मतदान की यह सुविधा इसलिए दी जाती है क्योंकि वे 1990 के दशक में जम्मू-कश्मीर से पलायन कर गए थे। इस समुदाय को भारतीय लोकतंत्र में अपनी हिस्सेदारी का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। इस बार, जम्मू, उधमपुर और दिल्ली में विशेष मतदान केंद्र स्थापित किए गए हैं, जहां कुल 35,500 विस्थापित कश्मीरी पंडित वोट डालने के पात्र हैं।
डॉ. अरविंद कारवानी, जो चुनाव प्रक्रिया की निगरानी कर रहे हैं, ने बताया कि जम्मू में 34,852 प्रवासी कश्मीरी मतदाता 19 विशेष मतदान केंद्रों पर वोट डालने के लिए पंजीकृत हैं। इसके अलावा, उधमपुर और दिल्ली में भी पंजीकरण कराए गए हैं। मतदान प्रक्रिया में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का उपयोग किया जा रहा है, जो वोटर्स को सुरक्षित और सरल तरीके से मतदान करने की सुविधा प्रदान करती है।
कश्मीरी पंडित उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में
पहले चरण के चुनाव में कश्मीरी पंडित समुदाय के छह उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में हैं। इनमें संजय सराफ अनंतनाग सीट से लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार हैं। इसके अलावा, शंगस-अनंतनाग विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी के वीर सराफ और अन्य दलों के उम्मीदवार भी चुनाव लड़ रहे हैं। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि कश्मीरी पंडितों का चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेना उनके अधिकारों का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनावों में कश्मीरी पंडितों की भागीदारी एक सकारात्मक संकेत है। यह न केवल उनके लोकतांत्रिक अधिकारों की पुष्टि करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वे अपने समुदाय की राजनीतिक आवाज को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस प्रकार, दिल्ली में वोटिंग का यह आयोजन एक महत्वपूर्ण कदम है, जो कश्मीरी पंडितों के लिए उनके अधिकारों और पहचान को पुनः स्थापित करने का अवसर प्रदान करता है।