राजस्थान (डिजिटल डेस्क)। Padma Shri Award 2024: मात्र मनोरंजन का साधन नहीं। कला, संवाद का, जागरूक करने का, उत्थान का और ज्ञान का साधन भी है। राजस्थान के भीलवाडा के एक कलाकार (Padma Shri Award 2024) ने इस वाक्य को सिद्ध कर दिया है। जानकी लाल के भांड होने को लेकर कई बार शर्मिंदगी उनके बेटों – परिजनों को शर्मिंदगी हुई, परन्तु उन्हें किसी तरह का कोई मलाल नहीं। पद्मश्री के बाद बेटों ने भी कहा, गर्व है।
कौन है जानकी लाल भांड?
राजस्थान के भीलवाड़ा के सराफा बाज़ार के रहने वाले जानकी लाल भांड (Padma Shri Award 2024) के घर अभी तो बधाई देने वालों की भीड़ और उनको जानने वालों के माथे पर गर्व दिखाई दे रहा है। पद्मश्री सम्मान मिलने की घोषणा के बाद से ही उनसे मिलने वालों के लहज़े में बदलाव आ गया। अब सभी सम्मान से देखने और बतीयाने लगे। 81 साल के जानकी लाल भांड अपने बेटे पोते पोतीयों के साथ रहते हैं। मूलतः जानकी लाल चित्तौड़गढ़ के रहने वाले हैं।
पिता से सीखा संवाद और कला
जानकी लाल भांड (Padma Shri Award 2024) के पिता हजारी लाल भी इसी कला को दिखाते और यही आजीविका भी थी। हजारी लाल जब बाज़ार जाकर कला दिखाते तो जानकी लाल को भी साथ ले जाते, पिता को देखते देखते बालक जानकीलाल ने भी संवाद और कला के गुर सीखे और फिर पिताजी को कहा कि इसके बारे में और बताओ। तब कला के गुरु बने पिताजी।
15 साल की उम्र में घर से भागे
जानकी लाल बताते (Padma Shri Award 2024) हैं की घर में माहौल ठीक नहीं होने से वो परेशान थे, पिता रोज डांट देते थे और माँ से भी विशेष व्यवहार की उम्मीद थी नहीं। इसलिए 15 साल की उम्र में चित्तौड़गढ़ छोड़ कर भाग गया था। वहां से भीलवाडा आया। उस उम्र में कहाँ ही जाता, तब मुझे रामाबा लोहार ने अपने हिस्से की थोड़ी ज़मीन पर मुझे आसरा दिया।
घर से भागा तब ये कला ही थी पास
जानकीलाल बताते हैं कि जब वो घर से भागे थे तब उनके पास सिर्फ बहरूपिया की कला (Padma Shri Award 2024) थी। उसी के सहारे रामा बा लोहार के पास रह कर लोगों का मनोरंजन किया और खुद का पेट भरना शुरू कर पाया। कला दिखने के लिए धनाढ्यों और राजपूतों के इलाकों में जाकर अपनी कला दिखता था। वहां से अनाज और धन मिल जाता था।
उतार चढाव आते गए, मैं संवरता गया, बहरूपिया बनना नहीं छोड़ा
जानकी लाल भांड (Padma Shri Award 2024) ने बताया कि उनके जीवन में खूब उतार चढ़ाव आए। परन्तु उन्होने अपनी कला को नहीं छोड़ा। इसी वजह से आज ये सुन्दर समय आया है। अब इतने सालों की मेहनत पर ये सम्मान मिला तो दिल खुश हो गया। उस कला को सम्मान मिला जिससे जन जन तक पहुँचाने में मैंने जीवन खपा दिया।
बचपन कठिनायों वाला, परन्तु वर्तमान सुधरा
बचपन में आर्थिक स्थिति इतनी ख़राब थी कि एक कपडा कई कई साल पहनते थे। परन्तु स्कूल जाने के लिए लगने वाली ड्रेस को बाज़ार से लाने के लिए भी पैसे नहीं थे। भीलवाड़ा ने जीवन को नया मोड़ दिया। शुरुआत में छोटे छोटे कार्यक्रमों में बहरूपिया बना, इसके बाद चाक – चौराहों पर, छोटे गली मोहल्ल्मों में भी बहरूपिया कला (Padma Shri Award 2024) का साथ पकड़े रखा।
भीलवाडा बाज़ार के बीच लोकप्रिय जानकी लाल, अब पूर देश जानेगा
भीलवाड़ा के सराफा बाज़ार की कुछ तस्वीरों का जिक्र किया और फिर कहा कि बाज़ार ने उन्हें हमेशा सम्मान दिया है। सहयोग करने वालों ने हमेश हाथ आगे बढ़ाया है। इसके बाद उदयपुर लोक कला मंडल से जुड़कर नयी शुरुआत की और फिर दुसरे जिलों और राज्यों में भी जाकर इस कला (Padma Shri Award 2024) को पहुंचाया। भीलवाडा और उदयपुर के लोगों के प्रेम ने मार्गदर्शन दिया।
65 साल में बदले कई रूप, हनुमान से पठान तक बने
जानकी लाल (Padma Shri Award 2024) ने इस कला को अपने जीवन के 65 साल दिए हैं। इसी से हर जगह पहचान बनी। इन 65 सालों में कई कई किरदार निभाए हैं। जिसमें हनुमान, पठान, सुलतान, कभी व्यापारी और डॉक्टर, कभी राजा कभी रंक बन जाते थे। लोगों के मनोरंजन से शुरू किया, इसके बाद ये जीवन बन गया। जनता के बीच में जाकर उनसे हंसी मजाक करना, लोगों के बीच खुशियाँ बांटना ही काम था।
81 की उम्र में भी बनते हैं बहरूपिया
जानकी लाल (Padma Shri Award 2024) बताते हैं कि अभी भी वो बहरूपिया बन कर लोगों के बीच जाते हैं परन्तु अब उम्र के लिहाज़ से ज्यादा समय नही दे पाते। भेष बदल का जाना अब ज्यादा संभव नहीं है परन्तु हंसी ठिठोली करना नहीं छूटा है। अभी भी समय मिलते ही वो बाज़ार में और आते जाते लोगों के साथ हंसी ठिठोली करते हैं। वो कहते हैं, कला ने मुझे जिंदा रखा, मैंने कला को मरने नहीं दिया।”
भीलवाड़ा के सराफा बाज़ार से न्यूयार्क तक का सफ़र
जानकी लाल (Padma Shri Award 2024) जब भीलवाड़ा से उदयपुर जाने लगे तो वहां एक समाजसेवी ने उनके काम से प्रभावित होकर उन्हें विदेश जाने का प्रस्ताव दिया। इसके बाद पहली बार न्यूयार्क शहर जाने की सारी व्यवस्था और खर्च भी समाज सेवी कोमल कोठारी ने उठाया, वहां से मेरी पहचान बनी। इसके बाद विदेशों में जाकर भी कला प्रदर्शन करने को बार बार मिलता रहा। इसी कर्म में मैं रोम, जर्मनी, लंदन जैसे बड़ी जगहों पर भी गया। वहां भी बहुत सम्मान और आदर मुझे और मेरी कला को मिला।
चाहता हूँ इस कला को मिले संरक्षण
कला के बार में जब सवाल किया जाता है तो जानकी लाल (Padma Shri Award 2024) अपनी इच्छा के तौर पर इसे देखते हैं और चाहते हैं कि बहरूपिया कला का विस्तार हो और इसे अकादमी खोल कर पढ़ाया सिखाया जाए। इसमें सरकार मदद करे तो ये काम मेरे लिए आसान हो जाएगा। पहले के मुकाबले अब खर्चे बढ़ गए हैं, कपडे, मेकअप, यात्राओं जैसे खर्च निकल पाना आसान नहीं है।
मुझे सम्मान मिलने पर कला को पहचान मिलने की उम्मीद
जानकी लाल भांड को पद्मश्री सम्मान (Padma Shri Award 2024) मिलने से वो खुश हैं, इस ख़ुशी के पीछे उनका भाव उस कला को सम्मान मिलने का है। और उन्हें लगता है कि सरकार ने उन्हे सम्मानित किया तो इससे इस कला को पहचान मिलेगी और लोग इसे और सम्मान से देखेंगे।
परिवार को अब है गर्व
जानकी लाल (Padma Shri Award 2024) भीलवाड़ा में अपने बेटे पोते पोतियों के साथ रहते हैं। उनके बेटे ने कहा कि उन्हें अब अपने पिता पर गर्व है परन्तु पहले उन्हें इसी काम पर शर्मिंदगी होती थी। बच्चे स्कूल में मजाक उड़ाते थे। पर अब वो सारी तकलीफें धुल गयी हैं। पिता की 6 दशक से भी ज्यादा की तपस्या का फल मिला है। जानकी लाल भांड के दो बेटे और दो बेटियां भी हैं। उनकी पत्नी का कुछ समय पहले कैंसर की वजह से देहांत हो गया था।
कई रूप विदेशों तक मशहूर
विदेश यात्राओं का जिक्र करते हुए जानकी लाल के चेहरे पर रौनक आ जाती है। विदेशों में भी कई भाषाओँ में इस कला (Padma Shri Award 2024) को पहुँचाया। दुबई में पठान बन कर तो राजस्थान में दुल्हन, दूल्हा, कालबेलिया, शंकर, पार्वती, नंदी, ओझा, राजा, पठान, लुहार, हनुमान रावण जैसे कई किरदारों को निभा कर तारीफें बटोरी। पंजाबी राजस्थानी, हिंदी और पठानी बोलियों में कला दिखाई। इतना ही नहीं, बंदर का उनका किरदार भारत के बाहर भी बहुत मशहूर हुआ।
होली दिवाली के कार्यक्रमों में अभी भी है 81 साल का बहरूपिया
81 बसंत देखने के बाद भी हंसी ठिठोली और बहरूपिया (Padma Shri Award 2024) बनना जानकी लाल ने नहीं छोड़ा है। होली पर होने वाले धमाल और कार्यक्रम में भेष बदल कर अपनी कला को जीवित रखे हुए हैं जानकीलाल, दिवाली पर या कई बार विशेष आगरा पर भी अपनी कला लेकर लोगों के मनोरंजन के लिए पहुँच जाते हैं पद्मश्री जानकी लाल भांड।
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