Pakistan UNSC membership

पाकिस्तान बना UNSC का अस्थाई सदस्य, कैसे होता है इसका चुनाव? क्या भारत विरोधी एजेंडा फिर होगा हावी? जाने पूरी कहानी

Pakistan UNSC membership: पाकिस्तान के संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि मुनीर अकरम ने कहा है कि उनके देश का सुरक्षा परिषद में अस्थायी सदस्य के रूप में योगदान “सक्रिय और सकारात्मक” होगा। उन्होंने कहा, ‘सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान की मौजूदगी का असर महसूस किया जाएगा।’

पाकिस्तान अब अगले दो साल तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के रूप में काम करेगा। यह आठवीं बार है जब पाकिस्तान इस भूमिका में चुना गया है। सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य होते हैं, जिनमें से 10 अस्थायी सदस्य होते हैं।

भारत पहले ही 2021 और 2022 में इस परिषद में अस्थायी सदस्य के रूप में अपनी भूमिका निभा चुका है।

जाने क्या है UNSC की अस्थायी सदस्यता

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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य देश होते हैं। इनमें 5 स्थायी सदस्य देश हैं – अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन। बाकी 10 सदस्य देश अस्थायी होते हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र महासभा हर साल वोटिंग के जरिए चुनती है।

अस्थायी सदस्य देशों का कार्यकाल 2 साल का होता है। हर साल इनमें से 5 नए देशों को चुना जाता है। ये चयन इस तरह किया जाता है कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों को प्रतिनिधित्व मिल सके।

क्षेत्रवार सीटों का वितरण कुछ इस प्रकार है: 

  • अफ्रीकी और एशियाई देशों के लिए 5 सीटें।
  • पूर्वी यूरोपीय देशों के लिए 1 सीट।
  • लैटिन अमेरिकी और कैरिबियाई देशों के लिए 2 सीटें।
  • पश्चिमी यूरोपीय और अन्य देशों के लिए 2 सीटें।

इस प्रक्रिया का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी क्षेत्रों की आवाज़ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुनाई दे।

UNSC में कैसे चयनित हुआ पाकिस्तान

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जून 2024 में हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के चुनाव में पाकिस्तान को बड़ी सफलता मिली। 193 सदस्य देशों की महासभा में से 182 देशों ने पाकिस्तान के पक्ष में वोट दिया।

पाकिस्तान अब एशियाई देशों का प्रतिनिधित्व करते हुए जापान की जगह लेगा। यह आठवीं बार है जब पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बना है। इससे पहले वह 1952-53, 1968-69, 1976-77, 1983-84, 1993-94, 2003-04 और 2012-13 में अस्थायी सदस्य रह चुका है।

इस बार पाकिस्तान के साथ डेनमार्क, ग्रीस, पनामा और सोमालिया भी अस्थायी सदस्य चुने गए। ये देश जापान, इक्वाडोर, माल्टा, मोज़ाम्बिक और स्विट्जरलैंड की जगह लेंगे, जिनका कार्यकाल 31 दिसंबर 2024 को समाप्त हो गया है।

नए सदस्य सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के साथ काम करेंगे, जिनके पास वीटो पावर है। इसके अलावा, उन्हें पिछले साल चुने गए अल्जीरिया, गुयाना, सिएरा लियोन और स्लोवेनिया के साथ भी मिलकर काम करना होगा।

पाकिस्तान की ओर से जारी बयान

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संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के स्थायी प्रतिनिधि मुनीर अकरम ने सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के तौर पर पाकिस्तान की नई भूमिका पर प्रतिक्रिया दी है। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, उन्होंने कहा कि यह जिम्मेदारी ऐसे समय में आई है जब दुनिया में भू-राजनीतिक हालात काफी अशांत हैं।

मुनीर अकरम ने बताया, ‘आज की दुनिया में दो बड़ी ताकतों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा हो रही है। कई जगहों पर युद्ध चल रहे हैं, और मध्य पूर्व, अफ्रीका सहित कई क्षेत्रों में हथियारों की होड़ तेज़ है।’

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान इस चुनौतीपूर्ण समय में संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के मुताबिक शांति और स्थिरता लाने में सक्रिय भूमिका निभाएगा। पाकिस्तान का उद्देश्य युद्ध को रोकना, विवाद सुलझाना और शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाना होगा।

पाकिस्तान के इस बयान को आतंकवाद के मुद्दे पर भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। लंबे समय से पाकिस्तान पर चरमपंथियों का समर्थन करने के आरोप लगते रहे हैं। मुनीर अकरम ने आश्वासन दिया कि पाकिस्तान दुनिया को हथियारों की दौड़ और आतंकवाद के खतरों से बचाने के लिए भी कदम उठाएगा।

अस्थायी सदस्यों का क्या होता है काम ?

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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनका आतंकवाद से जुड़ी प्रतिबंध कमिटियों में खास प्रभाव होता है, जहां सभी फैसले सहमति से लिए जाते हैं। अस्थायी सदस्य अपनी विशेषज्ञता का उपयोग करके सुरक्षा परिषद में खास मुद्दों पर योगदान दे सकते हैं।

वे विभिन्न देशों के बीच मध्यस्थता करके शांति स्थापित करने में मदद कर सकते हैं। इसके साथ ही, ये सदस्य अपने क्षेत्र से जुड़े सुरक्षा मुद्दों को उठाकर परिषद का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं। अस्थायी सदस्य न्यायपूर्ण तरीकों से परिषद के काम और उसके परिणामों को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं।

अगर ये देश अपने काम को प्रभावी तरीके से करते हैं, तो सुरक्षा परिषद विवादित मुद्दों पर अधिक असरदार हो जाती है। सुरक्षा परिषद, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत, संयुक्त राष्ट्र के छह मुख्य अंगों में से एक है। इसका सबसे बड़ा उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना है।

पाकिस्तान चलाएगा अपना भारत विरोधी एजेंडा?

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पाकिस्तानी अख़बार “डॉन” की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के कुछ राजनीतिक दलों ने इस समय को कश्मीर मुद्दा उठाने के लिए इस्तेमाल करने की अपील की है। ऐसा माना जा रहा है कि पाकिस्तान इस मौके का फायदा उठाकर कश्मीर के मसले को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने की कोशिश कर सकता है।

खबरों के अनुसार, पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष कमिटी में सीट मिलने की संभावना है, जो इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाने और उन्हें आतंकवादी घोषित करने के मामलों पर चर्चा करती है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अस्थायी सदस्य के तौर पर पहले भी पाकिस्तान फ़लस्तीन का समर्थन कर चुका है और कश्मीर के लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार की वकालत की है। ऐसे में यह संभावना है कि इस बार भी पाकिस्तान कश्मीर मुद्दा उठाएगा।

इसके साथ ही, पाकिस्तान इस मंच का इस्तेमाल अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन से होने वाले चरमपंथी हमलों के मुद्दे को उजागर करने के लिए कर सकता है। उसका दावा है कि अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय कुछ संगठन, जो इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा से जुड़े हुए हैं, उसकी सीमाओं पर हमले कर रहे हैं।

हालांकि, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वीटो पावर केवल स्थायी सदस्यों के पास होती है। फिर भी, अस्थायी सदस्य के तौर पर पाकिस्तान अपनी कूटनीतिक प्राथमिकताओं को मजबूत करने की कोशिश करेगा।

भारत का कार्यकाल में क्या हुआ था?

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भारत लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग कर रहा है। वह इस परिषद में स्थायी सदस्यता चाहता है, क्योंकि स्थायी सदस्यों को वीटो पावर का अधिकार होता है।

भारत ने अपने पिछले कार्यकालों में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए कई अहम मुद्दों पर काम किया है। इसके अलावा, वह कई बार वैश्विक आतंकवाद के बढ़ते खतरे पर आवाज उठाता रहा है।

पिछले साल, संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने कहा था कि अगर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को सुरक्षा परिषद जैसी अहम संस्था से बाहर रखा जाता है, तो इसमें सुधार की मांग पूरी तरह जायज़ है।

भारत की इस मांग को चीन से सबसे ज्यादा चुनौती मिलती है। चीन बार-बार वीटो पावर का इस्तेमाल करके भारत की कोशिशों को रोकता रहा है। बावजूद इसके, भारत अपने अधिकार के लिए लगातार प्रयास कर रहा है।

 

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