पाकिस्तान ने हमेशा अपनी विदेश नीति और सुरक्षा के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आतंकवाद का सहारा लिया है, खासकर भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ हमेश उसने ऐसा किया है। अब यह तरीका पाकिस्तान की सुरक्षा नीति का एक अहम हिस्सा बन चुका है, जिससे वह इन देशों में अपने राजनीतिक और सैन्य उद्देश्यों को पूरा करने की कोशिश करता रहता है। हालांकि, आतंकवाद पाकिस्तान के लिए कभी भी एक सुरक्षित रास्ता नहीं साबित हुआ है, बल्कि इसके कारण उसे भी भारी नुकसान उठाना पड़ा है।
आतंकवाद पाकिस्तान की दोहरी रणनीति का हिस्सा
पाकिस्तान ने हमेशा आतंकवादी समूहों को अपनी रणनीति का हिस्सा माना है। इनमें लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज़्ब-ए-मुजाहिदीन जैसे बड़े नाम शामिल हैं जो भारत में आतंकवादी हमले करते हैं। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में भी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) जैसे समूहों का समर्थन किया था। इन समूहों का इस्तेमाल पाकिस्तान अपने सुरक्षा हितों को पूरा करने के लिए करता है। पाकिस्तान की यह नीति न सिर्फ उसकी सुरक्षा के लिए खतरा बन रही है, बल्कि दुनिया भर में उसकी इज्जत भी घटा रही है। इसके बावजूद, पाकिस्तान आतंकवादी संगठनों का समर्थन करना बंद नहीं करता और अपनी सुरक्षा के लिए इनका इस्तेमाल करता रहता है।
2024 में 383 पाकिस्तानी अधिकारी और सैनिक हुए शहीद
पाकिस्तानी सुरक्षा बलों को आतंकवाद के खिलाफ लगातार लड़ाई लड़नी पड़ती है। 27 दिसंबर को एक मीडिया कॉन्फ्रेंस में, लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी, जो इंटर सर्विसेज़ पब्लिक रिलेशंस (DG ISPR) के डायरेक्टर जनरल हैं, ने बताया कि इस साल आतंकवाद के खिलाफ ऑपरेशंस में 383 पाकिस्तानी अधिकारी और सैनिक शहीद हो गए।
इसके साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने 925 आतंकवादियों और TTP (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) के सदस्यों को मारा, जो पिछले पांच सालों में आतंकवादियों को मारने का सबसे बड़ा आंकड़ा था। पाकिस्तान की सुरक्षा बलों पर TTP के हमले भी बढ़े हैं और सिर्फ TTP नहीं BLA (बलोचिस्तान लिबरेशन आर्मी) के द्वारा किये गए हमलों में बढ़ोतरी हुई है, खासकर नवंबर और दिसंबर की बात करें तो पाकिस्तान में कभी चीनी नागरिकों पर तो कभी स्कूली बच्चों पर हमले हुए। हाल में रेलवे स्टेशन पर हुए एक हमले में नौजवान सैनिको की मौत हो गई थी।
अफगानिस्तान दे रहा TTP को शरण
पाकिस्तान ने अफ़गान तालिबान पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को शरण देने का आरोप लगाया है। पाकिस्तान का कहना है कि अफ़गान तालिबान ने TTP को अपनी जगहें दे रखी हैं, जिससे पाकिस्तान की सुरक्षा को खतरा पैदा हो रहा है। 21 दिसंबर को TTP ने पाकिस्तान के साउथ वज़ीरिस्तान में एक सुरक्षा चौकी पर हमला किया था, जिसमें 16 सैनिक मारे गए और 8 घायल हो गए। इस हमले के बाद पाकिस्तान ने काबुल को चेतावनी देने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल भेजा था, और जब वह अफगान तालिबान मंत्रियों से मिल रहा था, तब पाकिस्तान एयर फोर्स ने TTP के ठिकानों पर हमले किये थे। काबुल ने दावा किया कि इस हमले में 46 लोग, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे वह सब मारे गए। काबुल ने इसका जवाब देने की धमकी दी है।
पाकिस्तान अब अफ़गान तालिबान पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को पनाह देने का आरोप लगा रहा है, लेकिन यह बात वह खुद नहीं समझता कि पहले उसने अफ़गान तालिबान को पनाह और पूरी मदद दी थी, जिसकी वजह से तालिबान अमेरिकी और उनके सहयोगियों के साथ युद्ध में टिक पाया था। अब यह अजीब है कि पाकिस्तान के रणनीतिकार यह नहीं समझते कि अफ़गान तालिबान अपने ऊपर हो रहे हवाई हमलों से कतई डरने वाला नहीं है, क्योंकि उसने अमेरिका के हमलों को भी सहा है।
पाकिस्तान ने TTP का बदला नाम
इस साल जुलाई से पाकिस्तान अब तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को इस नाम से नहीं बुलाता, बल्कि उसे ‘फितना अल-ख़वारिज’ कहता है। इसका उद्देश्य यह बताना है कि ये लोग इस्लाम का असली प्रतिनिधित्व नहीं करते। “ख़वारिज” शब्द इस्लामी इतिहास से लिया गया है और इसे इस बात को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है कि TTP ने इस्लाम को छोड़ दिया है। यह दिलचस्प है कि पाकिस्तान समर्थित अन्य आतंकी समूहों जैसे लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज़्ब-ए-मुजाहिदीन पर भी यह शब्द सही बैठता है, क्योंकि ये समूह भी निर्दोष लोगों की हत्या करते हैं।
कोई भी असली इस्लामी विद्वान इन समूहों की गतिविधियों को इस्लाम द्वारा सही नहीं मानता। जहां तक अफगान तालिबान का सवाल है, वे TTP को ‘फितना अल-ख़वारिज’ (विभाजनकारी कृत्य) कहकर इसे गलत ठहराते हैं, लेकिन इससे TTP के समर्थन में कोई बदलाव नहीं आया है। इसी तरह पाकिस्तान के पश्तून इलाकों में TTP की लोकप्रियता पर भी कोई असर नहीं पड़ा है।
पाकिस्तान में बढ़ती इस्लामिक कट्टरता
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति इस साल के अंत में थोड़ी स्थिर हुई है, क्योंकि उसने IMF से 24वां कर्ज़ लिया है। लेकिन पाकिस्तान की असली समस्या उसकी सामाजिक और आर्थिक ढांचे में जरूरी बदलावों की कमी है। वहां का ऊपरी वर्ग बदलाव के लिए कभी तैयार नहीं हुआ। इसका परिणाम यह है कि पाकिस्तान में हालात हमेशा डामाडोल रहतें है इसके साथ ही पाकिस्तानी युवाओं में इस्लामिक कट्टरवाद जोरो से अपने पैर पसार रहा है।
कश्मीर में मानवाधिकारों का हो रहा उल्लंघन: पाकिस्तान
पाकिस्तान के सुरक्षा बलों के प्रवक्ता DG ISPR ने हाल ही में भारत पर कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इस पर ध्यान देने की अपील की है। हालांकि, भारत के खिलाफ इस तरह की बयानबाजी पाकिस्तान की पुरानी आदत बन चुकी है। पाकिस्तान न केवल ऐसे आरोप लगाता है, बल्कि आतंकवादी समूहों का समर्थन करके भी अपने इरादे भी जाहिर करता है। असल में, यह सब पाकिस्तान की उस कोशिश का हिस्सा है जिससे वह अपनी आंतरिक समस्याओं से लोगों का ध्यान भटकाना चाहता है। लेकिन सच्चाई यह है कि कश्मीर पर पाकिस्तान की यह रणनीति कभी सफल नहीं होगी, क्योंकि भारत इस मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेगा।
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