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इमरान की PTI ने चला नया दावं, इस आंदोलन से पाकिस्तान की सेना को बना देंगे ‘भिखारी’

Pakistan News: इतिहास में पहली बार पाकिस्तानी नागरिक अपने ही सेना से जुड़े व्यापार का बहिष्कार कर रहे हैं। ये आंदोलन उस गोलीबारी की घटना के बाद और भड़क गए, जो पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की रिहाई की मांग को लेकर इस्लामाबाद के डी-चौक पर हुई थी। इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर नागरिकों ने पाकिस्तानी सेना पर गंभीर सवाल उठाए और उन्हें गोलीबारी का जिम्मेदार ठहराया। लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि ‘गोली क्यों चलाई गई?’ और इस तरह के हैशटैग सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा ट्रेंड कर रहे हैं। यही वजह है कि इस मुद्दे ने राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का एक बड़ा विषय बन गया है।

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के नेता और इमरान खान के करीबी सहयोगी शाहबाज गिल ने हाल ही में एक बयान दिया, जिसमें उन्होंने पाकिस्तानियों से सेना द्वारा चलाए जा रहे व्यापारों के उत्पादों का बहिष्कार करने की अपील की थी। गिल के इस बयान ने लोगों में बड़ा समर्थन जुटाया और बहिष्कार का अभियान तेज हो गया वहीं सोशल मीडिया पर लोगों की सक्रिय भागीदारी ने इस आंदोलन को और भी ताकत दी है।

जनता के बीच सेना की छवि हुई ख़राब

सेना से जुड़े व्यवसायों का बहिष्कार सिर्फ आर्थिक विरोध नहीं है बल्कि यह जनता के भीतर सेना के प्रति गहरे असंतोष को भी दिखाता है। डी-चौक की घटना ने लोगों की भावनाओं को उकसाया और इससे सेना की प्रतिष्ठा को बड़ा नुकसान हुआ है। लोगों का मानना है कि सेना का व्यापारिक नेटवर्क अपनी ताकत बढ़ाने के लिए है, न कि जनता की जरूरतों को पूरा करने के लिए।

सरकार ने जनता पर ‘राज्य विरोधी काम’ लगाने का लगाया आरोप 

पाकिस्तान के सूचना मंत्री को बढ़ते बहिष्कार अभियान पर जवाब देना पड़ा। उन्होंने पीटीआई समर्थकों पर ‘राज्य विरोधी काम’ करने का आरोप लगाया और कहा कि वे इजरायली उत्पादों का बहिष्कार करने के बजाय स्थानीय व्यापारों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। मंत्री ने यह भी कहा कि इस तरह के कदम पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था को और मुश्किल में डाल सकते हैं। उन्होंने आंदोलनकारियों की आलोचना करते हुए इसे गैर-जिम्मेदाराना बताया।

आंदोलन का बढ़ता दायरा 

पाकिस्तान में सेना से जुड़े व्यवसायों का बहिष्कार करने का अभियान सिर्फ सेना की छवि को ही नुकसान नहीं पहुंचा रहा, बल्कि यह देश की राजनीति और समाज पर भी गहरा असर डाल सकता है। इमरान खान की रिहाई की मांग और सेना के खिलाफ बढ़ते असंतोष के बीच, यह आंदोलन पाकिस्तान की राजनीति और सेना-समाज के रिश्तों को एक नई दिशा में मोड़ सकता है। अगर यह आंदोलन और तेज हुआ, तो पाकिस्तानी सेना को इससे बड़ा नुकसान हो सकता है।

 

 

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