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Loksabha Election 2024 : महंगाई नहीं मंगलसूत्र पर घमासान…क्या इन्हीं मुद्दों से तय होगा सियासी नफा- नुकसान ?

Loksabha Election 2024

Loksabha Election 2024 : जयपुर। देश के 13 राज्यों की 88 सीटों पर लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का काउंटडाउन शुरू हो गया है। लेकिन, दिलचस्प बात यह है कि अब महंगाई…बेरोजगारी…मोदी की गारंटी…संविधान…लोकतंत्र चुनाव का मुद्दा नहीं रह गए हैं…बल्कि दूसरे चरण में मंगलसूत्र…मुस्लिम…संपत्ति और अब इनहेरिटेंस टैक्स (उत्तराधिकार कर) सबसे बड़े चुनावी मुद्दे बनकर उभरे हैं। सियासी रणनीति में यह बदलाव क्यों हुआ? इसे समझने से पहले नेताओं के इन भाषणों पर गौर करना जरुरी है।

यह मंगलसूत्र भी बचने नहीं देंगे- मोदी

लोकसभा चुनाव के महासंग्राम में दूसरे चरण का सियासी घमासान 21 अप्रैल को पीएम मोदी के कांग्रेस पर तीखे हमले के साथ बढ़ा। पीएम ने राजस्थान के बांसवाड़ा में चुनावी रैली में कहा था कि अगर कांग्रेस की सरकार बनेगी तो लोगों की प्रोपर्टी का सर्वे किया जाएगा। कांग्रेस का मेनिफेस्टो कह रहा है- माता-बहनों के सोने का हिसाब करेंगे..उसकी जानकारी लेंगे और फिर उस संपत्ति को बांट देंगे।

उनको बांटेंगे जिनको मनमोहन सिंह की सरकार ने कहा था कि संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। यह अर्बन नक्सल की सोच, माताओं-बहनों का मंगलसूत्र भी बचने नहीं देंगे। क्या यह आपको मंजूर है? आपकी मेहनत से कमाई संपत्ति सरकार को ऐंठने का अधिकार है क्या ?

किस पर कितना धन सर्वे कराएंगे- राहुल

पीएम मोदी के इस हमले से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी का एक बयान आया था। जिसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस की सरकार बनने पर पहला काम जातिगत जनगणना और इकोनॉमिक सर्वे का होगा। हर हिंदुस्तान की हर संस्था का सर्वे कराएंगे। इससे दलित, आदिवासी, पिछ़ड़ा वर्ग, गरीब जनरल कास्ट और अल्पसंख्यकों को पता लग जाएगा कि किस जाति की कितनी आबादी है, कितनी आमदनी है और संस्थाओं में इनकी कितनी भागीदारी है? राहुल ने कहा था यह सफेद और हरी क्रांति की तरह क्रांतिकारी निर्णय है।

फिर मंगलसूत्र, संपत्ति पर वार-पलटवार

पीएम मोदी की ओर से बड़े जुबानी वार के बाद कांग्रेस ने भी पलटवार किया। प्रियंका गांधी ने बेंगलुरू में कहा कि 70 सालों से यह देश स्वतंत्र है, 55 साल कांग्रेस की सरकार रही। किसी ने आपसे सोना या मंगलसूत्र छीना? जब जंग हुई थी तो इंदिरा गांधी ने अपना सोना देश के लिए दिया, मेरी मां का मंगलसूत्र इस देश के लिए कुर्बान हुआ। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष खड्गे ने सफाई दी कि कांग्रेस के मेनिफेस्टो में संपत्ति के बंटवारे जैसी कोई बात नहीं है। (Loksabha Election 2024 )

पित्रौदा का इनहेरिटेंस टैक्स सुझाव

कांग्रेस और भाजपा के बीच इस सियासी घमासान में कांग्रेस के हमलों की धार को कांग्रेस के ही नेता सैम पित्रौदा ने कुंद कर दिया। इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के चेयरमैन सैम पित्रौदा एक मीडिया इंटरव्यू में अमेरिका में इनहेरिटेंस टैक्स की तारीफ करते नजर आए। उन्होंने कहा- वहां व्यवस्था है कि किसी के पास 10 करोड़ डॉलर की संपत्ति है, तो बच्चों को 45 प्रतिशत ही मिलेगी।

बाकी सरकार रख लेगी। यह काफी दिलचस्प है आप अपने दौर में संपत्ति जुटाओ और जब आप जा रहे हो तो अपनी धन-संपत्ति जनता के लिए छोड़नी होगी, जो मेरी नजर में अच्छा है। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिस पर लोगों को चर्चा करनी चाहिए।

प्रचार के आखिरी दिन पित्रोदा पर घमासान

पीएम मोदी ने सैम पित्रोदा के बयान के बाद छत्तीसगढ़ में चुनावी रैली में कहा कि आप जीवित रहेंगे तब तक कांग्रेस आपको ज्यादा टैक्स से मारेगी और जब जीवित नहीं रहेंगे, तब इनहेरिटेंस टैक्स का बोझ लाद देगी। पीएम ने कहा- कांग्रेस का कहना है, वो माता- पिता से मिलने वाली विरासत पर भी टैक्स लगाएगी।

आप जो मेहनत से संपत्ति जुटाते हैं, वो आपके बच्चों को नहीं मिलेगी। कांग्रेस का पंजा वो भी आपसे लूट लेगा। कांग्रेस का मंत्र है कांग्रेस की लूट जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी। हालांकि सैम पित्रौदा के बयान पर विवाद बढ़ता देख कांग्रेस की तरफ से जयराम रमेश ने सफाई दी। उन्होंने कहा कि वह इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। (Loksabha Election 2024 )

लोकतंत्र में हर शख्स को निजी विचारों को रखने, इस पर चर्चा करने की आजादी है। इसका यह मतलब नहीं कि पित्रौदा के विचार हमेशा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के रुख को बयां करते हैं। बहुत बार ऐसा नहीं होता। उनके बयान को सनसनीखेज तरीके से पेश करना चुनावी कैंपेन से ध्यान भटकाने की कोशिश है।

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इन मुद्दों में छिपा है सियासी नफा नुकसान !

बहरहाल, लोकसभा चुनाव के महासंग्राम के दूसरे चरण में पहले चरण के मुकाबले कहीं ज्यादा सियासी घमासान देखने को मिला है। वहीं चुनावी मुद्दे भी पूरी तरह बदल गए। लेकिन, इसके पीछे कारण क्या है। (Loksabha Election 2024 )

इस पर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बदलाव पहले चरण में 21 राज्यों की 102 सीटों पर कम वोटिंग के बाद आया है। राजनीतिक दलों ने इन मुद्दों को अपने सियासी नफा-नुकसान को देखकर उछाला है। लेकिन मतदाता समझदार है, वो अपनी मताधिकार से सब स्पष्ट कर देता है।

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