राजस्थान (डिजिटल डेस्क)। Pradosh Vrat Katha 2024: हिंदू धर्म में प्रदोष (Pradosh Vrat Katha 2024) व्रत काफी खास और महत्वपूर्ण माना गया है। साल में कुल 24 प्रदोष व्रत आते है यानी हर माह में दो प्रदोष व्रत रखे जाते है। पंचांग के अनुसार हर माह की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखा जाता है। हर दिन और वार के अनुसार हर प्रदोष व्रत महत्व अलग अलग होता है। कल यानी 21 फरवरी को माघ माह का दूसरा प्रदोष व्रत रखा जाएगा।
बुधवार के दिन पड़ने की वजह से इसे बुध प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस दिन प्रदोष काल यानी शाम के समय ही भगवान शिव की पूजा की जाती है। ऐसे में पूजा से जुड़ी कथा के बारे में जानना बेहद आवश्यक होता है। आज हम आपको बुध प्रदोष व्रत के दो प्रचलित कथाओं के बारे में बताने जा रहे है। तो आइए जानते है :—
बुध प्रदोष व्रत कथा :-
पौराणिक ग्रंथो में बुध प्रदोष व्रत को लेकर कई कथाओं का वर्णन किया गया है। आज हम आपको ऐसे ही दो महत्वपूर्ण कथाओं का वर्णन करने जा रहे है। पहली कथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का काफी समय पहले ही निधन हो गया था और उसका कोई दूसरा सहारा भी नहीं था। इसलिए वह अपने पुत्र के साथ हर रोज भीख मांग कर अपना और अपने बेटे का पेट पाल रही थी। ऐसे ही एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी कि उसे सड़क के किनारे पर एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ नजर आया। ब्राह्मणी को उस लड़के पर दया आ गई और वह उसे अपने साथ घर ले आई।
दरअसल वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था और उसके राज्य पर शत्रुओं ने आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया गया और राज्य पर अपना नियत्रंण कर लिया। जिसकी वजह से वह राजकुमार इधर उधर भटक रहा था। राजकुमार ब्राह्मणी और उसके बेटे के साथ उसी घर में रहने लगा। एक दिन उसी नगर की एक अंशुमति नाम की कन्या ने राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गई। अगले ही दिन अंशुमति अपने माता पिता को राजकुमार से मिलाने के लिए ब्राह्मणी के घर लेकर आई। अंशुमति के माता पिता को भी राजकुमार पसंद आ गया।
एक दिन भगवान शंकर अंशुमति के माता पिता के स्वप्न में आए और आदेश दिया कि अंशुमति और राजकुमार का विवाह करा दिया जाए। उनके माता पिता ने भगवान के आदेश का पालन किया। दरअसल ब्राह्मणी भगवान शंकर की पूजा करने के साथ ही प्रदोष व्रत किया करती थी। उनके प्रदोष व्रत के प्रभाव से ही राजकुमार ने गंधर्वराज की सेना लेकर विदर्भ के शत्रुओं से युद्ध किया और जीत हासिल की और अपने पिता के साथ सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मणी के पुत्र को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया। माना जाता है कि जिस तरह से प्रदोष व्रत के प्रभाव से ब्राह्मणी के दिन बदले वैसे ही भगवान अपने भक्तों के दिन भी बदलते है।
दूसरी बुध प्रदोष व्रत कथा :-
कहा जाता है कि एक पुरूष का विवाह हुआ और विवाह के दो दिन बात ही उसकी पत्नी अपने मायके चली गई। कुछ दिनों के बाद व्यक्ति अपनी पत्नी को लेने अपने ससुराल पहुंचा। उस दिन बुधवार का दिन था और जब व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ अपने घर को लौटने लगा तो उसके ससुराल वालों ने दोनों को रोकने की कोशिश की। उनका मत था कि बुधवार के दिन लड़की की विदाई शुभ नहीं होती। लेकिन व्यक्ति ने किसी की बात नहीं मानी और अपनी पत्नी को साथ लेकर चल पड़ा।
नगर के बाहर पहुंचने पर उसकी पत्नी को बहुत तेज प्यास लगने लगी और व्यक्ति ने अपनी पत्नी को एक पेड़ के नीचे बैठाया और खुद आसपास की जगहों पर पानी की तलाश करने लगा। जब व्यक्ति वापिस लौटा तो उसने देखा कि उसकी पत्नी किसी के साथ हंस—हंसकर बातें कर रही है और उसके लौटे से पानी भी पी रही है। यह देख व्यक्ति आग बबूला हो गया। जब वह आदमी उस जगह के थोड़ा निकट पहुंचा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। क्योंकि उस आदमी की शक्ल उसी की तरह थी। ऐसे में दोनों आदमी एक दूसरे से झगड़ने लगे । जिसे देख आस पास के लोग एकत्रित हो गए। कुछ ही देर में वहां पर सिपाही भी आ गए।
हमशक्ल आदमियों को देख उसकी पत्नी भी सोच में पड़ गई। जब लोगों ने उस स्त्री से पूछा कि उसका पति कौन है तो उसने दोनों में अपने पति को पहचान नहीं पाई। तब उसका पति भगवान शिव से प्रार्थना करने लगा कि मैंने सास ससुर की बात ना मानकर बहुत बड़ी गलती कर दी और आज अपनी पत्नि को लेकर आ गया। आगे से मैं कभी ऐसी भूल नहीं करूंगा। जैसे ही व्यक्ति की प्रार्थना खत्म हुई उसी समय दूसरा व्यक्ति गायब हो गया। इसके बाद दोनों पति-पत्नि कुशलता के साथ अपने घर को लौट आए। उस दिन से ही दोनों पति पत्नी बुध त्रयोदशी प्रदोष व्रत रखने लगे और इससे जुड़े नियमों का पालन कर अपना जीवन खुशहाली के साथ व्यतीत करने लगे।
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