Rajasthan First Phase Voting: राजस्थान में कम मतदान के क्या मायने? जानिए एक्स्पर्ट्स से…
Rajasthan First Phase Voting: राजस्थान। राजस्थान में पहले चरण की 12 सीटों के लिए हुई कम वोटिंग ने राजनीतिक दलों के होश उड़ा दिए हैं। शाम 6 बजे तक के आंकड़े (Rajasthan First Phase Voting) के अनुसार 56.32 फीसदी वोटिंग हुई थी, इसके अभी और बढ़ने की संभावना है। पांच महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में वोटिंग का आंकड़ा 75 पार था जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश में 66.34 फीसदी वोट पड़े थे, लेकिन इस बार के आंकड़े इससे पीछे रहते नजर आ रहे हैं।
मतदाताओं में कम उत्साह रहा कम वोटिंग की वजह?
चूंकि पिछले लोकसभा चुनाव भी गर्मी में ही हुए थे इसलिए (Rajasthan First Phase Voting) इसे कारण नहीं माना जा सकता लेकिन जानकारों का मानना है कि कम वोटिंग का साफ मतलब है कि वोटर में उत्साह नहीं हैं। अब जो वोटर घर से नहीं निकला है वह किसका है, इसको लेकर अलग अलग तर्क हैं।
कम मतदान की ये है असल वजह
वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन कहते हैं कि 2019 के चुनाव में जीत का मार्जिन अधिक था, वो कम हो सकता है। कांग्रेस ने जिस तरह से लीड किया, कई जगह कैंडिडेट ने बहुत अच्छे से चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन जहां टिकट अच्छे थे या जहां प्रत्याशी लड़ना चाहते थे, वहां नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं। चुनाव में लोगों की जितनी दिलचस्पी थी उससे ज्यादा (Rajasthan First Phase Voting) दिलचस्पी नतीजों को लेकर आ गई है। कम मतदान के बाद जो जीत को लेकर आश्वस्त थे, वो चौंक गए हैं, उनको धक्का लगा है और जो हार रहे थे उनका उत्साह बढ़ा है। कम वोटिंग का सीधा कारण यह है कि लोगों को अपने नुमाइंदों में दिलचस्पी नहीं है, उन्होंने ऐसा कुछ किया नहीं हैं जिसको लेकर लोग वोट डालने आएं। यह मतदाता के मोहभंग की स्थिति है, वोटर में जुनून नहीं है जो पहले के चुनावों में था।
12 सीटों पर कहाँ कितना हुआ मतदान
लोकसभा सीट उम्मीदवार मतदान प्रतिशत
श्री गंगानगर – हनुमानगढ़ 9 70 प्रतिशत (सर्वाधिक)
बीकानेर 9 48.87
चुरू 13 63.02
झुंझुनू 8 44.97
सीकर 14 48.85
जयपुर शहर 13 56.57
जयपुर ग्रामीण 15 48.67
अलवर 9 53.31
भरतपुर 6 50.69
दौसा 5 45.63
नागौर 9 49.64
करौली -धौलपुर 4 49.29
भाजपा की नीति ने घटाई मतदान की गिनती?
वरिष्ठ पत्रकार जगदीश शर्मा भी मानते हैं कि लोगों में वोटिंग को लेकर उत्साह नहीं है। लोगों ने मान लिया कि मोदी ने कह दिया है, कि 400 सीटें आएंगी तो आ जाएंगी। इसलिए एक बड़ा वर्ग जो मोदी को जिताने में लगा रहता है, उसकी रुचि कम हो गई। यदि कांपीटीटिव मैसेज होता कि 400 सीटें लेनी है, तो लगो ढंग से तो बात कुछ और होती। इसे ओवर कानफीडेंस कह सकते हैं।
कम वोटिंग से किस पार्टी को होगा नुकसान?
हांलाकि जगदीश शर्मा मानते हैं कि इससे कांग्रेस को भी नुकसान हो सकता है, क्योंकि कांग्रेस का वोटर भी मान कर बैठ गया कि मोदी को ही जीतना है। तो जो छोटा वर्कर और वोटर, जो कमिटेड नहीं है, वो वोट डालने निकला ही नहीं। विधानसभा चुनाव में तो भाजपा का वोटर सरकार बदलने के लिए निकला था लेकिन इस बार ऐसा कांपिटीशन का भाव दिखाई नहीं दे रहा था।
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