Rajasthan Politics: राजस्थान में पहले चरण की 12 सीटों पर लगभग इतने ही दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इनमें कुछ दिग्गज तो खुद चुनावी मैदान में उतरे हुए हैं जबकि कुछ के प्रत्याशी न होने पर भी उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इनमें मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से लेकर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, अर्जुनराम मेघवाल, सचिन पायलट और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा शामिल हैं। पहले चरण (Rajasthan Politics) के लिए शुक्रवार को वोटिंग होनी है। प्रदेश में कुल 25 सीटें हैं, शेष 13 सीटों पर 26 अप्रैल को वोटिंग होगी। आइए आपको बताते हैं किस सीट से किस दिग्गज की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है।
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा:
वैसे तो राज्य सरकार के मुखिया होने के नाते पूरे प्रदेश में सीएम और राज्य सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर है, फिर भी दो सीटें सीधे सीएम से जुड़ी हुई हैं। भरतपुर और जयपुर शहर से उनका सीधा नाता हैं। भरतपुर उनका गृह जिला है। यहां पार्टी ने मौजूदा सांसद रंजीता कोली का टिकट काट कर रामस्वरूप कोली को दिया है जो सीएम भजनलाल के करीबी माने जाते हैं। एससी के लिए रिजर्व इस सीट पर जाट और गुर्जर वोटर बड़ी संख्या में हैं। गुर्जरों को मंत्री जवाहर सिंह बेढम साध रहे हैं तो आरक्षण के मुद्दे पर नाराज जाटों को मनाने का जिम्मा खुद सीएम ने उठा रखा है। मात्र 25 साल की कांग्रेस प्रत्याशी संजना जाटव सीएम के लिए चुनौती बनी हुई हैं।
भूपेंद्र यादव:
केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव पहली बार चुनाव मैदान में उतरे हैं। केंद्र की राजनीति में अहम भूमिका रखने वाले भूपेंद्र यादव के लिए अब वोटर की कसौटी पर खुद को खरा साबित करने की चुनौती है। पार्टी ने उन्हें यादव, मेव और एससी बहुल अलवर लोकसभा सीट से मैदान में उतारा है। उनका मुकाबला पहली बार के विधायक ललित यादव से है। वैसे इस सीट पर कांग्रेस के बड़े नेता भंवर जीतेंद्र सिंह और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली की भी प्रतिष्ठा दांव पर है।
अर्जुनराम मेघवाल:
बीकानेर सीट भी एससी के लिए आरक्षित है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल यहां से से लगातार चौथी बार दिल्ली जाने की तैयारी कर रहे हैं। उन्हे चुनौती दे रहे हैं कांग्रेस के पूर्व मंत्री गोविंद राम मेघवाल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांग रहे अर्जुनराम भाजपा की गुटबाजी को एक हद तक साधने या खामोश करने में सफल रहे हैं।
सचिन पायलट:
दौसा सीट पर मुकाबला, कांग्रेस विधायक मुरारीलाल मीणा और भाजपा के पूर्व विधायक कन्हैया लाल मीणा के बीच है, लेकिन मुरारी से बड़ी चुनौती सचिन पायलट के लिए हैं। इसके तीन कारण हैं। पहला, दौसा पायलट परिवार की परंपरागत सीट रही है। राजेश पायलट यहां से 4 बार, उनकी पत्नी रमा पायलट और सचिन पायलट एक-एक बार सांसद रह चुके हैं। दूसरा, मुरारीलाल मीणा सचिन पायलट समर्थक हैं। तीसरा, दो मीणा उम्मीदवारों के बीच गुर्जर वोट निर्णायक स्थिति में हैं। जयपुर ग्रामीण सीट पर अनिल चोपड़ा भी पायलट समर्थक हैं।
हनुमान बेनीवाल और ज्योति मिर्धा:
नागौर सीट पर एक नहीं दो दिग्गजों की साख और राजनीतिक करियर दांव पर है। दिग्गज नेता नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा लगातार दो लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव हारने के बाद फिर मैदान में हैं। कांग्रेस से भाजपा में आने के बाद यह चुनाव उनके लिए आखिरी उम्मीद है। आरएलपी नेता हनुमान बेनीवाल भी पिछली बार एनडीए के साथ मिलकर कांग्रेस की ज्योति को हरा चुके हैं, लेकिन इस बार पाले बदल गए हैं। नागौर में अपना वजूद और आरएलपी को बनाए रखने के लिए हनुमान को भी नागौर में जीत की सख्त जरूरत है।
गोविंद सिंह डोटासरा:
सीकर सीट कांग्रेस ने गठबंधन के तहत माकपा को सौंप दी थी। माकपा के अमराराम सांसद सुमेधानंद सरस्वती को टक्कर दे रहे हैं। प्रभुत्व के लिहाज से सीकर लोकसभा की 8 में से पांच सीटों पर कांग्रेस और तीन पर भाजपा का कब्जा है। फिर भी कांग्रेस यहां चुनाव लड़ने से पीछे हट गई। पहले यह माना जा रहा था कि राजस्थान में कांग्रेस के बड़े नेता लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे, तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंदसिंह डोटासरा यहां से मैदान संभालेंगे, लेकिन न सिर्फ डोटासरा ने चुनाव से किनारा कर लिया बल्कि कांग्रेस का भी पत्ता साफ कर दिया। डोटासरा ने भले ही खुद का बचाव कर लिया हो पर अपने गृह जिले में उनकी प्रतिष्ठा दांव पर है।
राजेंद्र राठौड़:
भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ भले ही खुद प्रत्याशी नहीं हैं, लेकिन चूरू में हार-जीत उन्हीं के खाते में जाएगी। यहां मुकाबला राहुल कस्वां और राठौड़ के बीच ही माना जा रहा है। भाजपा प्रत्याशी पैरालिंपियन देवेंद्र झाझड़िया तो राठौड़ का मोहरा भर हैं। दो बार के भाजपा सांसद राहुल कस्वां अपना टिकट कटने के लिए राठौड़ को जिम्मेदार मानते हैं। कस्वां अब कांग्रेस प्रत्याशी हैं, लेकिन उनके निशाने पर भाजपा और मोदी से ज्यादा राजेंद्र राठौड़ ही रहते हैं। तारानगर से खुद हारने के बाद चूरू लोकसभा से भाजपा की हार राठौड़ के लिए और बड़ा झटका साबित होगी।
ब्रजेंद्र ओला:
झुंझुनूं लोकसभा सीट पर ओला परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर हैं। शीशराम ओला यहां से पांच बार सांसद रह चुके हैं। लोकसभा की 8 में से 6 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। गहलोत सरकार में मंत्री रहे विधायक ब्रजेंद्र ओला इस बार परिवार की विरासत और पार्टी के सम्मान की खातिर मैदान में हैं।
वसुंधरा राजे:
धौलपुर मुख्यमंत्री वसुंधरा का गृह जिला है। राज्य की दो बार मुख्यमंत्री रहीं वसुंधरा राजे भले ही झालावाड़ जिले की झालरापाटन से चुनाव लड़ती हैं और उनके पुत्र दुष्यंत सिंह झालावाड़ से ही लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन धौलपुर की राजनीति भी वसुंधराराजे के इर्दगिर्द ही रही है। इस बार वसुंधरा की खामोशी का ही परिणाम था कि विधानसभा चुनाव में धौलपुर जिले में भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। संसदीय क्षेत्र की 8 में से पांच सीटों पर कांग्रेस, दो पर भाजपा और एक पर बसपा ने जीत हासिल की थी। इस बार वसुंधरा राजे प्रचार खत्म होने से एक दिन पहले जरूर धौलपुर पहुंची हैं।
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