गुजरात सरकार ने अब नागरिकता संशोधन संहिता (UCC) का ड्राफ्ट तैयार करने की जिम्मेदारी रिटायर जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई को दी है। उत्तराखंड के बाद गुजरात अब दूसरा राज्य बन गया है, जो इस मसले पर काम कर रहा है। गुजरात सरकार ने हाल ही में इस संदर्भ में एक समिति का गठन किया, जिसमें रंजना देसाई समेत पांच प्रमुख सदस्य शामिल हैं। इस समिति को अगले 45 दिनों में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपनी है। रंजना देसाई के अनुभव और कानूनी समझ को देखते हुए इस जिम्मेदारी को उन्हें सौंपा गया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि रंजना देसाई कौन हैं? और क्या उनकी कड़ी मेहनत और कानूनी निर्णय उनके बारे में इतना खास बनाते हैं? चलिए, जानते हैं उनके जीवन के बारे में, जो न केवल एक प्रेरणा है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि एक महिला जज के तौर पर भारतीय न्यायपालिका में उन्होंने कैसे अपनी पहचान बनाई।
रंजना देसाई का शुरुआती जीवन और शिक्षा
रंजना देसाई का जन्म 1949 में मुंबई में हुआ था। उनका बचपन भी मुंबई में ही बीता और यहीं से उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई की। रंजना ने एलफिंस्टन कॉलेज से अपनी स्कूलिंग पूरी की और बाद में वकालत की पढ़ाई के लिए सरकारी कॉलेज में दाखिला लिया। रंजना देसाई खुद एक लेख में बताती हैं कि जब उन्होंने वकालत में करियर बनाने का फैसला लिया तो उनके पिता ने इसका विरोध किया था। उनके पिता एस.जी. सामंत, मुंबई के एक प्रसिद्ध वकील थे और चाहते थे कि उनकी बेटी इकोनॉमिक्स पढ़े, वो भी लंदन में। रंजना के मुताबिक, उनके ससुर भी उनके वकालत करने के पक्ष में नहीं थे। लेकिन रंजना ने इन तमाम विरोधों को नजरअंदाज कर अपना रास्ता खुद चुना।
वकालत की शुरुआत और पहली बड़ी जीत
रंजना देसाई ने अपने करियर की शुरुआत एक रिश्तेदार के चैंबर में काम करके की। यहां उन्होंने अपना पहला केस किया, जो था एक व्यक्ति का, जिसका परिवार लंबे वक्त से जेल में बंद था और वो जमानत के लिए परेशान था। रंजना ने उस केस को निचली अदालत से हाई कोर्ट तक पहुंचाया, और उनकी दलील के बाद जज ने आरोपी को जमानत दे दी। इस केस से रंजना को महज 35 रुपये की फीस मिली, लेकिन उनके करियर की यह पहली बड़ी जीत थी। इस मामले में जीत से उन्हें आत्मविश्वास मिला और उनका करियर इस मुकाम तक पहुंचने का रास्ता तैयार हुआ।
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— The Indian Express (@IndianExpress) February 4, 2025
रंजना देसाई का जज बनने का सफर
1996 में रंजना देसाई को मुंबई हाई कोर्ट में जज के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने हाई कोर्ट में लगभग 15 साल तक काम किया और इसके बाद 2011 में सुप्रीम कोर्ट में जज के रूप में नियुक्त हो गईं। सुप्रीम कोर्ट में रहते हुए रंजना देसाई ने कई अहम फैसले सुनाए।उनके फैसलों में सबसे प्रमुख था कालाधन के खिलाफ केंद्र सरकार को फटकार लगाना। इसके अलावा, नित्यानंद के पौरुष टेस्ट पर भी उनका फैसला अहम था, जो उस वक्त मीडिया में खूब चर्चा में रहा। रंजना देसाई की एक और महत्वपूर्ण भूमिका उस बेंच में थी, जिसने मुंबई हमले के दोषी अजमल आमिर कसाब को तुरंत फांसी देने का फैसला सुनाया। इसके अलावा, रंजना देसाई ने सहारा वर्सेज सेबी केस में भी ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, जो भारतीय न्यायपालिका में एक महत्वपूर्ण निर्णय माना जाता है।
रिटायरमेंट के बाद की यात्रा
रिटायरमेंट के बाद, रंजना देसाई ने कई आयोगों और समितियों का नेतृत्व किया। इनमें से सबसे प्रमुख था यूसीसी आयोग, जहां उन्होंने उत्तराखंड के लिए नागरिक संहिता का ड्राफ्ट तैयार किया। इसके अलावा, उन्होंने परिसीमन आयोग को भी लीड किया।
उनके कानूनी ज्ञान और न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को देखते हुए, उन्हें गुजरात राज्य में भी यूसीसी ड्राफ्ट तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया। यह ड्राफ्ट राज्य में समानता और न्याय को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाएगा, यह उम्मीद की जा रही है।
गुजरात में यूसीसी ड्राफ्ट – एक नई दिशा
गुजरात सरकार ने हाल ही में नागरिक संहिता के मसौदे पर काम करने के लिए रंजना देसाई की अध्यक्षता में एक समिति बनाई है। राज्य सरकार ने घोषणा की है कि यह समिति अगले 45 दिनों में अपनी रिपोर्ट तैयार करेगी। रंजना देसाई के नेतृत्व में गुजरात में तैयार होने वाला यूसीसी ड्राफ्ट उत्तराखंड के अनुभवों पर आधारित होगा।
गुजरात के लिए यह कदम एक ऐतिहासिक मोड़ हो सकता है, क्योंकि यह राज्य भारत के दूसरे राज्य के रूप में नागरिक संहिता लागू करने के रास्ते पर चल रहा है। इससे राज्य में महिलाओं, बच्चों और अन्य वर्गों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित हो सकेंगे।
रंजना देसाई का निजी जीवन
रंजना देसाई की शादी प्रकाश देसाई से हुई है, जो एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। रंजना ने हमेशा अपने करियर और निजी जीवन को संतुलित किया और इस दौरान अपने परिवार का पूरा सहयोग प्राप्त किया।
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