गणतंत्र दिवस पर हर साल 26 जनवरी को भारत के राष्ट्रपति कर्तव्य पथ (पहले राजपथ) पर तिरंगा फहराते हैं। इसी मौके पर हर बार 21 तोपों की सलामी दी जाती है। अगर आप सोचते हैं कि ये सिर्फ एक परंपरा है, तो जान लीजिए कि इसके पीछे एक खास वजह और इतिहास है। तो आइए, हम आपको बताते हैं कि 21 तोपों की सलामी का इतिहास क्या है और यह किस-किस मौके पर दी जाती है।
21 तोपों की सलामी का इतिहास
भारत में गणतंत्र दिवस की परंपरा 26 जनवरी 1950 से शुरू हुई, जब भारतीय संविधान लागू हुआ और भारत एक गणराज्य बना। उस दिन भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने तिरंगा फहराया था और उनके सम्मान में 21 तोपों की सलामी दी गई थी। हालांकि, इस सलामी की परंपरा ब्रिटिश शासन के वक्त से चली आ रही थी, जहां 21 तोपों से सम्मान देना शाही परंपरा का हिस्सा था।
गणतंत्र दिवस पर 21 तोपों की सलामी देने की परंपरा शाही सलामी से ही आई। हालांकि, भारतीय गणराज्य में यह सलामी पहली बार 1950 में दी गई, जब डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली और तिरंगा फहराया। इसके बाद से यह परंपरा लगातार जारी रही।
21 तोपों की सलामी क्यों दी जाती है?
अगर आपको यह सवाल आया है कि गणतंत्र दिवस पर 21 तोपों की सलामी क्यों दी जाती है, तो इसका जवाब है – यह सम्मान का प्रतीक है। ब्रिटिश काल में, 21 तोपों की सलामी देना एक शाही सम्मान था, जिसे बाद में स्वतंत्र भारत ने भी अपनाया। यह सलामी देश की शक्ति, शौर्य और समृद्धि को दर्शाती है।
इसके अलावा, 21 तोपों की सलामी देने का एक और कारण यह है कि यह सम्मानजनक और शानदार तरीके से राष्ट्र के प्रति आदर प्रकट करता है।
कितनी तोपों से दी जाती है सलामी?
यह सुनकर आपको थोड़ी हैरानी हो सकती है कि 21 तोपों की सलामी देने के लिए सिर्फ सात तोपों का इस्तेमाल किया जाता है। जी हां, आपने सही सुना! असल में, 21 गोले दागे जाते हैं, लेकिन वह सात तोपों से ही होते हैं। और एक रिजर्व तोप भी रहती है, जो इस्तेमाल में नहीं आती, लेकिन अगर जरूरत पड़े तो उसे तैयार रखा जाता है।
सलामी के दौरान हर तोप से तीन-तीन गोले दागे जाते हैं, और हर राउंड में सात गोले दागे जाते हैं। कुल मिलाकर 21 गोले दागे जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को पूरी तरह से 52 सेकेंड में खत्म किया जाता है, क्योंकि 52 सेकेंड में ही राष्ट्रगान पूरा होता है। यानी तोपों की सलामी का समय और राष्ट्रगान का समय बराबर होता है।
21 तोपों की सलामी के लिए कौन होते हैं जिम्मेदार?
21 तोपों की सलामी देने के लिए एक विशेष दस्ते का गठन किया जाता है। इसमें करीब 122 जवान होते हैं, जो इस जिम्मेदारी को निभाते हैं। इन जवानों का मुख्यालय मेरठ में स्थित है। इस खास दस्ते को तोपों का सही इस्तेमाल और सुरक्षा सुनिश्चित करने का जिम्मा सौंपा जाता है। इन तोपों का इस्तेमाल करने के लिए जो गोले होते हैं, वे विशेष रूप से इन समारोहों के लिए तैयार किए जाते हैं, ताकि किसी भी तरह का नुकसान न हो। ये गोले सिर्फ धुआं छोड़ते हैं और तोप की आवाज सुनाई देती है, जिससे कोई खतरा नहीं होता।
21 तोपों की सलामी कब दी जाती है?
21 तोपों की सलामी का महत्व बहुत ज्यादा है। यह केवल गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर ही नहीं, बल्कि कुछ खास मौके पर भी दी जाती है। जैसे:
नए राष्ट्रपति का शपथ ग्रहण – जब भी नए राष्ट्रपति शपथ लेते हैं, तब उन्हें 21 तोपों की सलामी दी जाती है।
विदेशी राष्ट्राध्यक्षों का स्वागत – जब कोई विदेशी राष्ट्राध्यक्ष भारत आता है, तो उसके सम्मान में भी 21 तोपों की सलामी दी जाती है।
किसी खास राष्ट्रीय समारोह पर – जैसे स्वतंत्रता संग्राम के सशक्त नेतृत्व, राष्ट्रीय सुरक्षा में योगदान देने वाले सम्मानित व्यक्तियों के लिए भी कभी-कभी 21 तोपों की सलामी दी जाती है।
यह सलामी किसी भी सम्मान के लिए दी जाती है और इसे देश की सबसे बड़ी इज्जत और सम्मान का प्रतीक माना जाता है।
सलामी की पूरी प्रक्रिया समझें
तोपों से सलामी देने की पूरी प्रक्रिया भी एक अद्भुत और खास प्रक्रिया होती है। यह तीन राउंड में पूरी होती है, जिसमें हर राउंड में सात गोले दागे जाते हैं। इन गोलों को एक खास अंतराल पर दागा जाता है ताकि सलामी की पूरी प्रक्रिया व्यवस्थित और सम्मानजनक तरीके से पूरी हो।
सलामी देने के दौरान, तोपों से जो आवाज आती है, वह बहुत जोरदार होती है, जिससे हर व्यक्ति को एहसास होता है कि यह एक बहुत महत्वपूर्ण और सम्मानजनक अवसर है।