सद्गुरु जग्गी वासुदेव की ईशा फाउंडेशन को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। दो महिलाओं को कथित तौर पर बंधक बनाए जाने के मामले में अदालत में चल रही सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट ने बंद करने का आदेश जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला तब आया है, जब दो महिलाओं ने अपने बयान में कहा कि वे संगठन के आश्रम में बिना किसी दबाव के अपनी स्वेच्छा से रह रही हैं।
मद्रास हाईकोर्ट को फटकार
इस मामले में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय को भी फटकार लगाई। पीठ ने कहा कि इस तरह के मामले पर जांच के आदेश देना पूरी तरह से अनुचित है। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “इन कार्यवाही का उद्देश्य लोगों और संस्थाओं को बदनाम करना नहीं हो सकता।”
सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने बताया कि कोर्ट ने दोनों महिलाओं से वर्चुअल बातचीत की और उनके बयान दर्ज किए। अदालत ने कहा कि पिता द्वारा दायर की गई बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका गलत है। दोनों लड़कियां बालिग हैं और वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं।
‘महिलाओं के पिता को उनका विश्वास जीतना होगा’
चीफ जस्टिस ने कहा कि ये मामला तभी समाप्त हो जाना चाहिए था जब दोनों महिलाओं ने गवाही दी थी कि वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि महिलाओं के पिता को उनका विश्वास जीतना होगा।
याचिका का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईशा फाउंडेशन के खिलाफ जो शिकायत की गई है, पुलिस द्वारा उसकी जांच चलती रहेगी। अदालत द्वारा सुनाया गया फैसला पुलिस जांच में बाधा नहीं बनेगी।
ईशा फाउंडेशन ने क्या कहा?
ईशा फाउंडेशन का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया किया कि महिलाएं स्वेच्छा से आश्रम में रह रहीं थी। रोहतगी ने कहा कि जब महिलाओं की उम्र 24 और 27 साल थी तब से वे दोनों आश्रम में रह रही हैं। उनके परिजनों द्वारा उन्हें बंधी बनाए जाने के दावे निराधार हैं।
रोहतगी ने कहा, “महिलाओं ने सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी भाग लिया। उन्होंने 10 किलोमीटर की मैराथन दौड़ लगाई थी। दोनों महिलाएं अपने माता-पिता से नियमित संपर्क में थी।”
क्या है मामला
बता दें कि दायर याचिका में महिलाओं के परिजनों ने आरोप लगाया गया था कि सद्गरू वासूदेव की ईशा फाउंडेशन ने अपने आश्रम में 39 और 42 वर्ष की दो महिलाओं को जबरन बंधक बनाकर रखा है। याचिका में कहा गया कि आश्रम में महिलाओं का “ब्रेनवॉश” किया गया है। इस मामले पर पहले मां ने याचिका दायर की थी। फिर बाद में पिता ने।
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