Sally Holkar

Sally Holkar: महेश्वरी हैंडलूम को फिर से ज़िंदगी देने वाली अमेरिकन बिजनेस वुमन को मिला पद्म श्री

Who is america sally holkar: 26 जनवरी 2025 को गणतंत्र दिवस के मौके पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पद्म अवार्ड्स के विजेताओं के नाम का ऐलान किया। इस बार एक नाम जिसने सबका ध्यान खींचा, वह है सैली होल्कर। सैली, जो अमेरिका में पैदा हुई थीं, ने भारत आकर महेश्वरी हैंडलूम को फिर से दुनिया भर में पहचान दिलाई। उनकी इस मेहनत को सराहा गया है और उन्हें इस बार पद्म श्री से सम्मानित किया गया है।

सैली होल्कर का नाम सुनते ही आपके दिमाग में महेश्वरी साड़ी और हैंडलूम की तस्वीरें तैरने लगती हैं। यही वह कला है जिसे सैली ने फिर से ज़िन्दा किया और न सिर्फ भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में इसे लोकप्रिय किया। आइए जानते हैं सैली होल्कर के बारे में विस्तार से।

अमेरिका में जन्मी सैली ने भारत में क्या किया खास?

सैली होल्कर का जन्म अमेरिका में हुआ था, लेकिन उनका दिल हमेशा भारत के लिए धड़कता था। सैली का भारत से जुड़ाव 1980 के दशक में हुआ था, जब उन्होंने महेश्वर (मध्य प्रदेश) की पारंपरिक बुनाई कला को पुनर्जीवित करने का काम शुरू किया। महेश्वरी हैंडलूम कला धीरे-धीरे खत्म हो रही थी और सैली ने इसे बचाने के लिए अपने पूरे जीवन को समर्पित कर दिया।

महेश्वरी साड़ी, जो कभी रानी अहिल्याबाई होल्कर की पहचान मानी जाती थी, अब इस दुनिया भर में मशहूर हो चुकी है। सैली ने इसे न सिर्फ पुनर्जीवित किया, बल्कि इस कला को एक नया रूप दिया, जिससे यह अब ग्लोबल मार्केट में भी बिकने लगी।

हेश्वरी हैंडलूम को दी नई जान

महेश्वरी हैंडलूम एक ऐसी पारंपरिक बुनाई है जो मध्य प्रदेश के महेश्वर क्षेत्र की पहचान थी। यह कला धीरे-धीरे खत्म हो रही थी, क्योंकि कम लोग इसको अपनाते थे और बुनाई के पुराने तरीके खत्म होते जा रहे थे। सैली होल्कर ने इस कला को बचाने के लिए एक नया रास्ता चुना। उन्होंने इस पारंपरिक कला को आधुनिकता से जोड़ा और इसे भारतीय बाजार के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी एक पहचान दिलाई।

सैली का मानना था कि अगर पारंपरिक कलाओं में कुछ नया जोड़ा जाए तो वे एक बार फिर से लोगों की पसंद बन सकती हैं। यही कारण है कि उन्होंने महेश्वरी साड़ियों में कुछ बदलाव किए, जैसे नए रंग, डिजाइन और फैशन के हिसाब से कुछ ट्विस्ट। इससे महेश्वरी साड़ी आज फैशन की दुनिया में एक बड़ा नाम बन गई है।

सैली होल्कर ने शुरू किया हैंडलूम स्कूल

सैली होल्कर ने महेश्वर में एक खास स्कूल की शुरुआत की, जिसे हम “हैंडलूम स्कूल” कहते हैं। इस स्कूल में बुनाई के पारंपरिक तरीके सिखाए जाते हैं। यहां महिलाएं और पुरुष दोनों काम सीखते हैं और अपने परिवार का पेट पालने के लिए काम करते हैं।

सैली की मदद से 250 से ज्यादा महिलाओं को रोजगार मिला है और 110 से अधिक करघों का निर्माण किया गया। खास बात यह है कि इस स्कूल में 45 साल से ऊपर की महिलाएं भी बुनाई का हुनर सीख रही हैं और अपनी आर्थिक स्थिति सुधार रही हैं। इससे न केवल महिला सशक्तिकरण हुआ, बल्कि बहुत सारे बुनकरों के जीवन में सुधार आया।

सैली होल्कर का योगदान और सशक्तिकरण

महेश्वरी हैंडलूम को फिर से जिंदा करने में सैली का योगदान केवल कला तक ही सीमित नहीं है। उन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए भी काम किया। महेश्वर में चलाए गए अपने स्कूल के जरिए सैली ने 250 से ज्यादा महिलाओं को रोजगार दिया। यही नहीं, उन्होंने इस उद्योग में काम करने के लिए पुरुषों और महिलाओं को बराबरी के मौके दिए, जिससे दोनों ही वर्गों की आर्थिक स्थिति बेहतर हुई।

सैली का यह प्रयास एक आदर्श बन गया है कि कैसे पारंपरिक कला और महिलाओं को सशक्त बनाकर एक समाज को प्रगति की दिशा में बढ़ाया जा सकता है।

पद्म श्री: सैली होल्कर की मेहनत का फल

सैली होल्कर के इस योगदान को देखकर 2025 में उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार न केवल उनकी मेहनत का फल है, बल्कि यह भारतीय हस्तशिल्प और महिला सशक्तिकरण के लिए उनके अद्वितीय योगदान का प्रतीक भी है। सैली का जीवन यह साबित करता है कि अगर किसी क्षेत्र में समर्पण और मेहनत हो, तो कोई भी कला मर नहीं सकती।

 

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