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Sankashti Chaturthi 2024: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन इन स्तोत्र का करें पाठ, मिलेगा लाभ

Sankashti Chaturthi 2024

राजस्थान (डिजिटल डेस्क)। Sankashti Chaturthi 2024: हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि (Sankashti Chaturthi 2024) पर संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। इस बार फाल्गुन माह में द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत 28 फरवरी के दिन रखा जाएगा। यह दिन भगवान गणेश को समर्पित होता है। माना जाता है कि इस दिन विधिवत रूप से पूजा करने के से साधक को ज्ञान,विद्या और बृद्धि की प्राप्ति होती है और साथ ही जीवन की सभी प्रकार की परेशानियों से छुटकारा मिलता हैं।

Sankashti Chaturthi 2024

इस दिन गणपति के छठे स्वरूप द्विजप्रिय गणेश की पूजा की जाती है। जिसकी वजह से इस संकष्टी चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। विधिवत रूप से पूजा के बाद स्तोत्र का पाठ करने से पूजा का महत्व और अधिक बढ़ जाता है और साधक पर बप्पा की कृपा हमेशा बनी रहती है। तो आइए जानते है संकष्टी चतुर्थी के दिन किस विधि से करें पूजा और कौनसें स्त्रोत का करें पाठ:-

संकष्टी चतुर्थी शुभ तिथि व शुभ मु​हूर्त:-

इस साल फरवरी माह में संकष्टी चतुर्थी का व्रत 28 फरवरी को रखा जाएगा। इस दिन भगवान गणेश की विधिवत रूप से पूजा की जाती है। इस संकष्टी चतुर्थी को ​द्विज​प्रिय संकष्टी चतुर्थी कहते है। इस दिन शुभ मुहूर्त सुबह 01 बजकर 53 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 29 फरवरी की सुबह 04 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगा।

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन इन स्तोत्र का करें पाठ
1. गणेश स्तुति का मंत्र

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं।

उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥

Sankashti Chaturthi 2024

2. धन-संपत्ति प्राप्ति का मंत्र

ऊँ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।

3. र्विघ्न हरण का मंत्र

वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:।

निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा॥

4. बाधांए दूर करने का मंत्र

एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।

विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥

5. ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र

ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्। ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्॥

सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए। सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:। सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:। सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:। सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित:। सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए। सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक:। सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित:। सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे॥

इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं, एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित:। दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत्॥

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