Sardar Vallabhbhai Patel Death Anniversary : आज अगर भारत एकजुट है तो इसके पीछे सबसे बड़ी वजह सरदार वल्लभभाई पटेल का हाथ है। उनकी राजनीति और कड़े फैसलों ने उस वक्त के भारत को एक संगठित राष्ट्र बनाया, जब देश स्वतंत्रता के बाद बिखरा हुआ था। उनका काम सिर्फ आजादी दिलवाने तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने देश को जोड़ने के लिए कठिन कदम उठाए। चलिए, जानते हैं कि कैसे सरदार पटेल ने भारत को एकजुट किया और किस तरह से उन्होंने नवाबों के मंसूबों को नाकाम किया।
आजादी के बाद ब्रिटिशों ने एक चाल चली थी। देश को धर्म के आधार पर दो हिस्सों में बांट दिया और साथ ही 562 रियासतों को यह अधिकार दे दिया कि वो अपनी मर्जी से भारत या पाकिस्तान में शामिल हो सकते हैं। अब ये रियासतें भारत में शामिल हों, या पाकिस्तान में, इस बात पर खींचतान मची थी। उस वक्त के नवाब और राजा अपनी मनमर्जी के मालिक थे।
सरदार पटेल ने शुरू किया रियासतों का एकीकरण
सरदार पटेल ने इसे पहले से ही समझ लिया था और गांधी जी की सलाह पर उन्होंने इन रियासतों को भारत में शामिल करने के लिए प्रयास शुरू कर दिया था। 6 मई 1947 को उन्होंने इस काम की शुरुआत की। पटेल ने रियासतों के शासकों से कहा कि अगर वो भारत के साथ जुड़ते हैं, तो उन्हें प्रिवी पर्सेज़ के रूप में आर्थिक सहायता मिलेगी। इसके अलावा, पटेल ने इन रियासतों के राजाओं को यह भी समझाया कि देश के हित में उनका फैसला भारत के पक्ष में होना चाहिए।
हालांकि, कई रियासतों को लेकर समस्या आई। जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर, ये वो तीन जगहें थीं जहां काफी उलझन पैदा हुई। जूनागढ़ का नवाब महावत खान पाकिस्तान में शामिल होना चाहता था, हैदराबाद का नवाब भारत में विलय नहीं करना चाहता था और जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह कोई फैसला नहीं ले पा रहे थे।
सरदार पटेल को ये फैसले लेने में बड़ी मुश्किलें आईं, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में तो राजा हिंदू थे, लेकिन वहां के लोग अधिकतर मुस्लिम थे। वहीं, जूनागढ़ और हैदराबाद में मुस्लिम नवाबों का शासन था, जबकि इनकी जनसंख्या ज्यादातर हिंदू थी। इस स्थिति में किसी भी फैसले का सांप्रदायिक असर पड़ सकता था, इसलिए सरदार पटेल को बहुत सोच-समझ कर कदम उठाने पड़े।
पाकिस्तान के हमले ने जम्मू-कश्मीर को भारत से जोड़ दिया
दूसरी ओर, पाकिस्तान ने अपनी आदत के मुताबिक कश्मीर पर हमला कर दिया। कश्मीर के हालात बिगड़े, और राजा हरि सिंह को मजबूर होकर 25 अक्टूबर 1947 को भारत से कश्मीर के विलय की घोषणा करनी पड़ी। यह घटना सरदार पटेल के लिए एक अवसर साबित हुई। इस विलय में कश्मीर के प्रमुख नेता शेख अब्दुल्ला का भी समर्थन था, जो भारत के पक्ष में थे।
हैदराबाद का नवाब उस्मान अली खान भारत में विलय करने के लिए तैयार नहीं था। उसकी जिद ने स्थिति और खराब कर दी, और कासिम रिजवी नाम के एक व्यक्ति ने एक भाड़े की सेना बना कर हैदराबाद में हिंसा फैलानी शुरू कर दी। इस पर सरदार पटेल से रहा नहीं गया, और उन्होंने भारतीय सेना को 13 सितंबर 1948 को ऑपरेशन पोलो चलाने का आदेश दे दिया। भारतीय सेना ने महज दो दिन में हैदराबाद को भारत का हिस्सा बना लिया।
पटेल की रणनीति ने पाकिस्तान को घेर लिया
जूनागढ़ के मुद्दे पर पाकिस्तान ने कई बार भारत से बातचीत की कोशिश की, लेकिन पटेल ने पाकिस्तान की बातों को नकारते हुए जूनागढ़ को आर्थिक रूप से घेर लिया। जूनागढ़ की तेल और कोयले की सप्लाई रोक दी, हवाई संपर्क तोड़ दिया और डाक सेवाएं बंद कर दी। इससे दबाव बढ़ा और जूनागढ़ की जनता विद्रोह करने लगी। इसके बाद 9 नवंबर 1947 को जूनागढ़ को भारत के नियंत्रण में ले लिया गया। नवाब पाकिस्तान भाग गया और पाकिस्तान की मदद बेकार साबित हुई।
भारत को एकजुट करने के लिए सरदार पटेल ने जो संघर्ष किया, उसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। लेकिन इस महान नेता का स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ता गया। 15 दिसंबर 1950 को उन्हें दिल का दौरा पड़ा। 4 घंटे बाद थोड़ा होश आया, लेकिन सुबह 9:37 बजे सरदार पटेल ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा ले लिया। उनके बाद भारत को एकजुट रखने के लिए कोई नेता नहीं आया जो उनके जैसा साहसिक और दूरदर्शी होता।
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