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पाकिस्तान में सिया-सुन्नी हिंसा का कहर: इस जिले में बेकाबू हालात, चारों ओर बिछी लाशें

Shia-Sunni violence in Pakistan

Shia-Sunni violence in Pakistan: पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत का कुर्रम जिला इन दिनों गंभीर सांप्रदायिक हिंसा से जूझ रहा है। शिया और सुन्नी समुदायों के बीच जमीन विवाद ने एक बार फिर खूनी संघर्ष का रूप ले लिया है। पिछले चार हफ्तों से मुख्य राजमार्ग बंद है और अब तक 46 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। आइए जानते हैं इस संघर्ष के पीछे के कारण और इसके समाधान के लिए किए जा रहे प्रयासों के बारे में।

संघर्ष का इतिहास और वर्तमान स्थिति

Shia-Sunni violence in Pakistan: कुर्रम जिले में शिया और सुन्नी समुदायों के बीच तनाव का लंबा इतिहास रहा है। 2007 से 2011 के बीच इस क्षेत्र में 2000 से अधिक लोग मारे गए थे। हाल के वर्षों में, अफगानिस्तान की सीमा से सटे इस पहाड़ी इलाके में टीटीपी (पाकिस्तान तालिबान) और आईएसआईएल जैसे आतंकी संगठन सक्रिय हो गए हैं, जो अक्सर शिया समुदाय को निशाना बनाते हैं।

जुलाई 2023 के अंत से शुरू हुआ यह नया संघर्ष अब तक थमने का नाम नहीं ले रहा है। 12 अक्टूबर को एक काफिले पर हुए हमले में 15 लोगों की मौत के बाद स्थिति और बिगड़ गई। इसके बाद से मुख्य सड़क पूरी तरह से बंद कर दी गई है और लोग केवल सुरक्षा काफिलों में ही यात्रा कर पा रहे हैं।

स्थानीय शांति समिति के सदस्य महमूद अली जान के अनुसार, “पिछले कई महीनों से लोग केवल काफिलों में यात्रा करने के लिए मजबूर हैं। अक्टूबर की घटना के बाद तो आम जनता के लिए सड़कें पूरी तरह बंद कर दी गईं।”

सरकार के प्रयास और चुनौतियां

कुर्रम के डिप्टी कमिश्नर जावेदुल्ला महसूद ने बताया कि सुरक्षा कारणों से अब सप्ताह में केवल चार दिन ही काफिलों के माध्यम से यात्रा की अनुमति दी जा रही है। उन्होंने कहा, “हम जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस प्रयास कर रहे हैं। दोनों समुदायों के प्रमुख हमारे साथ सहयोग कर रहे हैं।”

हालांकि, कुछ स्थानीय नेता सरकार की प्रतिबद्धता पर सवाल उठा रहे हैं। नेशनल डेमोक्रेटिक मूवमेंट के अध्यक्ष मोहसिन दावर का कहना है, “राज्य की उदासीनता के कारण जमीन का विवाद सांप्रदायिक रंग ले चुका है। ऐसा लगता है कि सरकार पूरे क्षेत्र को अराजकता में रखने की नीति अपना रही है।”

आगे का रास्ता और समाधान की संभावनाएं

इस संकट के समाधान के लिए कई स्तरों पर प्रयास किए जा रहे हैं:

• स्थानीय जिरगा (नेताओं की सभा) द्वारा शांति वार्ता।

• सुरक्षा बलों की तैनाती और काफिला व्यवस्था।

• आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करना।

• विस्थापित लोगों की वापसी के लिए प्रयास।

हालांकि, चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। मोबाइल इंटरनेट सेवा तीन महीने से बंद है, जिससे लोगों का दैनिक जीवन प्रभावित हो रहा है। करीब 2000-3000 सुन्नी लोग अभी भी विस्थापित हैं।

स्थानीय लोगों का मानना है कि इस संघर्ष का स्थायी समाधान तभी संभव है जब सरकार गंभीरता से इस मुद्दे को हल करने की कोशिश करे। जमीन विवाद का निष्पक्ष समाधान, आतंकी संगठनों पर कार्रवाई, और दोनों समुदायों के बीच विश्वास बहाली के प्रयास आवश्यक हैं।

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