जापान की राजनीति में एक नया मोड़ आया है जब शिगेरू इशिबा ने संसदीय चुनाव में अपनी पार्टी की हार के बावजूद प्रधानमंत्री पद पर अपनी स्थिति बरकरार रखी। यह घटनाक्रम जापान के लोकतांत्रिक प्रणाली की मजबूती और राजनीतिक परिदृश्य की जटिलता को दर्शाता है।
चुनावी हार और संसदीय रन-ऑफ
27 अक्टूबर को हुए संसदीय चुनाव में शिगेरू इशिबा के नेतृत्व वाली लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) और उसकी सहयोगी कोमीटो पार्टी को बड़ा झटका लगा। 465 सदस्यीय निचले सदन में उन्हें बहुमत हासिल नहीं हो सका। यह पिछले एक दशक में सत्तारूढ़ गठबंधन की सबसे बड़ी चुनावी हार थी। इस हार के पीछे कई कारण थे, जिनमें से एक प्रमुख कारण एलडीपी नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप और उन पर पार्टी की धीमी कार्रवाई थी।
हालांकि, चुनावी हार के बावजूद इशिबा ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। उन्होंने राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने और अपनी पार्टी की नीतियों को लागू करने के लिए नए गठबंधन सहयोगियों के साथ काम करने की इच्छा जताई। इसके बाद, जापान की संसद में एक विशेष सत्र बुलाया गया, जिसमें नए नेता के चयन के लिए मतदान हुआ।
इस ‘रन-ऑफ’ वोट में शिगेरू इशिबा ने विपक्ष के नेता योशिहिको नोडा को 221 के मुकाबले 160 वोटों से हराया। यह जापान में 30 वर्षों में पहला ऐसा रन-ऑफ था, जो इस घटना की अहमियत को और बढ़ा देता है। इस जीत के साथ, इशिबा ने एक बार फिर जापान के प्रधानमंत्री के रूप में अपनी स्थिति सुरक्षित कर ली।
नई कैबिनेट और भविष्य की चुनौतियां
प्रधानमंत्री पद पर बने रहने के बाद, शिगेरू इशिबा ने तुरंत नई कैबिनेट का गठन किया। उन्होंने अपनी पूर्व कैबिनेट के अधिकांश सदस्यों को बरकरार रखा, जिसमें विदेश मंत्री ताकेशी इवाया, रक्षा मंत्री जनरल नकातानी और मुख्य कैबिनेट सचिव योशिमासा हयाशी शामिल हैं। यह निर्णय नीतिगत निरंतरता और अनुभव पर जोर देता है।
हालांकि, इशिबा को कुछ बदलाव भी करने पड़े। उन्हें तीन मंत्रियों को बदलना पड़ा जो या तो अपनी सीट बचाने में असफल रहे थे या जिन्होंने चुनाव में खराब प्रदर्शन किया था। यह कदम चुनावी जवाबदेही और प्रदर्शन के महत्व को रेखांकित करता है।
आने वाले समय में शिगेरू इशिबा के सामने कई चुनौतियां हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि उन्हें बजट, विभिन्न विधेयकों और योजनाओं के लिए विपक्ष का समर्थन हासिल करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। चूंकि उनकी पार्टी के पास अब पूर्ण बहुमत नहीं है, इसलिए उन्हें अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक कौशल और समझौते की कला का प्रदर्शन करना होगा।
इसके अलावा, इशिबा को अपनी पार्टी की छवि सुधारने और जनता का विश्वास फिर से हासिल करने की भी जरूरत होगी। भ्रष्टाचार के आरोपों ने एलडीपी की साख को नुकसान पहुंचाया है, और इस मुद्दे को संबोधित करना उनकी प्राथमिकता होगी।
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