Shree Mahaveerji Temple Rajasthan : करौली। श्रीमहावीरजी अतिशय क्षेत्र उत्तर भारत का प्रसिद्ध जैन तीर्थ है, जहां दो दिन बाद 18 अप्रैल से वार्षिक मेला शुरू होने जा रहा है। खास बात ये है कि यह संभवतया एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विराजित प्रतिमा के जलाभिषेक के लिए हर साल बांध के गेट खोलकर पानी की निकासी की जाती है। इसके अलावा इस मंदिर में विराजित प्रतिमा के प्राकट्य का भी रोचक इतिहास है।
दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 170 किलोमीटर दूर करौली जिले के हिंडौन उपखंड में स्थित है। जहां हर साल चैत्र में वार्षिक मेले का आयोजन होता है, जिसमें राजस्थान ही नहीं बल्कि देशभर से जैन समाज के लोग पूजा- अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं। इस बार यहां वार्षिक मेले का आयोजन 18 अप्रैल से होगा…यह मेला 25 अप्रैल तक चलेगा। जिसके लिए मंदिर प्रबंधन तैयारियों में जुटा हुआ है।
जलाभिषेक के लिए खुलते हैं बांध के गेट
श्रीमहावीरजी जैन तीर्थ संभवतया प्रदेश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विराजित भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा के जलाभिषेक के लिए बांध के गेट खोले जाते हैं, यहां परंपरागत तरीके से हर साल पांचना बांध के गेट खोलकर जलाभिषेक के लिए पानी छोड़ा जाता है। यह परंपरा करीब एक दशक से चल रही है, लोगों का कहना है भगवान महावीर का मंदिर गंभीर नदी के तट पर बना है और इसी नदी के जल से भगवान महावीर के जलाभिषेक की परंपरा रही है। लेकिन कुछ सालों से मेले के दौरान गंभीर नदी में पानी नहीं बचता, ऐसे में नदी के जल से जलाभिषेक की परंपरा को कायम रखने के लिए अब हर साल पांचना बांध के गेट खोलकर पानी की निकासी की जाती है।
गंभीर नदी में पानी आने पर होगा जलपूजन
श्रीमहावीरजी में भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा के जलाभिषेक के लिए पांचना बांध के दो गेट खोले गए हैं, जिनसे 24 अप्रैल तक 300 एमसीएफटी पानी की निकासी की जाएगी। यह पानी मंगलवार तक 25 किलोमीटर की दूरी तय कर श्रीमहावीरजी पहुंचेगा। गंभीर नदी में पांचना का पानी पहुंचने पर प्रशासन और मंदिर प्रबंधन की ओर से जल पूजन भी किया जाएगा।
भूमि से प्रकट हुई थी प्राचीन प्रतिमा
श्रीमहावीरजी जैन तीर्थ में विराजित भगवान महावीर की प्रतिमा करीब एक हजार साल पुरानी बताई जाती है। पद्मासन में विराजित भगवान महावीर स्वामी की यह मूंगवर्णी प्रतिमा करीब 450 साल पहले भूमि से प्रकट हुई थी। इस प्रतिमा के प्राकट्य की कहानी भी बहुत रोचक है। बताया जाता है जहां से प्रतिमा प्रकट हुई, वहां एक गाय अपने आप दूध देने लगती थी। कुछ दिन बाद पशुपालक को स्वप्न आया कि गाय जहां दूध दे रही है, वहां एक प्रतिमा भूमि में दबी हुई है। इसके बाद भूमि से इस प्रतिमा का प्राकट्य हुआ। इसके बाद प्रतिमा को चांदनगांव से हिंडौन ले जाने की कोशिश की गई, लेकिन सफलता नहीं मिलने पर इसे भगवान महावीर की इच्छा समझते हुए यहीं मंदिर का निर्माण करवाया गया।