Letter to CJI DY Chandrachud

CJI डीवाई चंद्रचूड़ को 600 वकीलों का पत्र, लिखा- न्यायपालिका पर दबाव बनाने की हो रही कोशिश, पीएम मोदी ने दी प्रतिक्रिया

CJI DY Chandrachud: भारत के करीब 600 से अधिक अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखा है। उन्होंने न्यायपालिका की अखंडता पर मंडरा रहे खतरे का हवाला देते हुए वर्तमान स्थिति पर चिंता जताई है। इन वकीलों ने लिखा कि न्यायपालिका पर एक समूह अपना प्रभाव बनाना चाहता है। इसके लिए पैंतरे अपनाए जा रहे हैं। ऐसी गतिविधिया सुप्रीम कोर्ट की आलोचना नहीं बल्कि न्यायपालिका को दी जा रही चुनौती है।

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वकीलों ने सीजेआई को लिखा पत्र

सीजेआई (CJI) को लिखे पत्र में वकीलों ने लिखा, कानून को बनाए रखने के लिए काम करने वाले लोगों के रूप में, हमने सोचा कि यह हमारी अदालतों के लिए खड़े होने का समय है। हमें एक साथ आने और मौजूदा समय में न्यायालय पर किए जा रहे हमलों के खिलाफ बोलने की जरूरत है। इन वकीलों ने चिंता जाहिर करते हुए लिखा कि एक विशेष समूह अदालतों की कार्यवाही में बाधा डालने की कोशिश कर रहा हैं।

न्यायधीशों के सम्मान पर हमले जारी

उन मुद्दों पर बाधा डालने की कोशिश की जा रही है। जो मामले देश के राजनेताओं और राजनीतिक दलों से जुड़े हैं। जिस कारण किसी विशेष फायदे के लिए न्यायालय (CJI) की अखंडता को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। उन वकीलों ने चिट्ठी में लिखा न्यायधीशों के सम्मान पर जानबूझकर हमले किए जा रहे हैं। इन वकीलों ने बेंच फिक्सिंग और घरेलू अदालतों की अराजक शासन जैसे आरोपों पर चिंता व्यक्त की है।

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न्यायपालिका के समर्थन में एकजुटता

इस पत्र में वकीलों ने न्यायपालिका की अखंडता को बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट से हमलों के खिलाफ सुरक्षात्मक कदम उठाने का अनुरोध किया। हम सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध करते हैं कि वे इस तरह के हमलों से हमारी अदालतों को बचाने के लिए सख्त और ठोस कदम उठाएं। इस चिट्ठी में वकीलों ने न्यायपालिका के समर्थन में एकजुटता दिखाने का आह्वान किया। जिससे न्यायपालिका लोकतंत्र का एक मजबूत स्तंभ बना रहे।

पीएम नरेन्द्र मोदी की आई प्रतिक्रिया

इस पत्र पर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होने एक्स करते हुए लिखा कि दूसरों को डराना-धमकाना कांग्रेस की पुरानी संस्कृति है। 5 दशक पहले ही उन्होंने “प्रतिबद्ध न्यायपालिका” का आह्वान किया था – वे बेशर्मी से अपने स्वार्थों के लिए दूसरों से प्रतिबद्धता चाहते हैं लेकिन राष्ट्र के प्रति किसी भी प्रतिबद्धता से बचते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि 140 करोड़ भारतीय उन्हें अस्वीकार कर रहे हैं।