बेंगलुरू का ताज़ा मामला सुर्ख़ियों में रहा जहां एक आईटी प्रोफेशनल ने अपनी पत्नी और ससुराल वालों के कथित उत्पीड़न के चलते खुदकुशी कर ली थी। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवाद के एक अलग मामलें में दहेज उत्पीड़न कानून के दुरुपयोग को लेकर सख्त टिप्पणी की है।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक फैसले की सुनवाई के दौरान कहा कि ऐसे मामलों में अदालतों को सतर्क रहना चाहिए ताकि कानून का गलत इस्तेमाल न किया जा सके और खासतौर पर पति के परिवार के निर्दोष सदस्यों को फंसाने से बचाना चाहिए।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि अगर किसी वैवाहिक विवाद से जुड़ी शिकायत में परिवार के सदस्यों पर सीधे और स्पष्ट आरोप नहीं हैं, तो उनके नाम शुरू से ही शिकायत में नहीं जोड़े जाने चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में केवल ठोस सबूत और आरोपों के आधार पर ही आगे की कार्रवाई होनी चाहिए।
कोर्ट को पति के तरफ के निर्दोष सदस्यों को बचाना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि, ‘न्यायिक अनुभव से यह स्पष्ट है कि जब पति और पत्नी के बीच विवाद होता है, तो अक्सर पति के परिवार के सभी सदस्यों को फंसाने की कोशिश की जाती है। बिना ठोस सबूतों या खास आरोपों के, सामान्य और विस्तृत आरोपों को आपराधिक मामले में बदलना सही नहीं है।’ आगे सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘ऐसे मामलों में अदालतों को कानून का सही तरीके से पालन करते हुए परिवार के निर्दोष सदस्यों को बिना वजह परेशान होने से बचाने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए।’
सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें एक महिला द्वारा अपने पति, ससुरालवालों और उनके परिवार के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला खारिज करने से मना किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) में धारा 498ए को जोड़ा गया था ताकि महिलाओं को उनके पति और ससुरालवालों द्वारा की जाने वाली क्रूरता से बचाया जा सके और राज्य त्वरित तरीके से हस्तक्षेप कर सके।
वैवाहिक विवादों में हो रही वृद्धि
न्यायालय ने कहा कि हाल के वर्षों में देशभर में वैवाहिक विवाद बढ़े हैं, और इसके साथ ही विवाह संस्था में कलह और तनाव भी बढ़ा है। इसके परिणामस्वरूप, आईपीसी की धारा 498ए (पत्नी के खिलाफ पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता) जैसे कानूनों का दुरुपयोग भी बढ़ा है। यह कानून का उद्देश्य पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के खिलाफ व्यक्तिगत प्रतिशोध लेने का तरीका बन गया है। अदालत ने यह भी कहा कि यदि वैवाहिक विवादों में आरोपों की सही तरीके से जांच नहीं की जाती है तो कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा और पत्नी और उसके परिवार द्वारा दबाव डालने की कोशिशें बढ़ सकती हैं। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वे एक पल ले लिए भी यह नहीं कह रहे हैं कि अगर कोई महिला आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता का शिकार हुई है तो उसे चुप रहना चाहिए या शिकायत नहीं करनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामलों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि धारा 498ए का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को ससुराल में दहेज की मांग के कारण होने वाली क्रूरता से बचाना है। कोर्ट ने यह भी कहा कि कभी-कभी इस धारा का गलत तरीके से इस्तेमाल होता है, जैसे इस मामले में हुआ है। कोर्ट ने प्राथमिकी को खारिज करते हुए कहा कि पत्नी ने पति और उसके परिवार के खिलाफ निजी रंजिश और प्रतिशोध की वजह से शिकायत दर्ज कराई थी।
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