सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुनवाई टली

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई टली, केंद्र के जवाब का इंतजार

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुनवाई होनी थी। लेकिन जानकारी सामने आ रही है कि अब इसे मार्च तक के लिए टाल दिया गया है। बता दें कि इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस मनमोहन की बेंच कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला 2020 से लंबित है और केंद्र सरकार ने अब तक इस पर अपना पक्ष नहीं रखा है। अदालत ने कहा कि इस मुद्दे पर आगे की सुनवाई के लिए प्रश्न निर्धारण करना आवश्यक है, जिसके लिए मार्च में नई तारीख तय की जाएगी।

क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991?

प्लेसेज ऑफ वर्शिप (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप को 15 अगस्त 1947 की स्थिति में बनाए रखने का प्रावधान करता है। इस कानून के तहत किसी भी मंदिर, मस्जिद, चर्च या अन्य उपासना स्थल के स्वरूप में बदलाव नहीं किया जा सकता। इस अधिनियम को पारित करने का मुख्य उद्देश्य सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखना और ऐतिहासिक विवादों को खत्म करना था। हालांकि, काशी और मथुरा के धार्मिक स्थलों को लेकर विवादों के सामने आने के बाद इस कानून की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठने लगे हैं।

चार साल से केंद्र ने नहीं दिया कोई जवाब

मार्च 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस कानून पर अपना पक्ष रखने के लिए नोटिस जारी किया था, लेकिन चार साल बाद भी सरकार की ओर से कोई रिपोर्ट दाखिल नहीं की गई। केंद्र सरकार का जवाब इस मामले की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सरकार के पास तीन विकल्प हैं— या तो इस कानून को जस का तस बनाए रखे, या इसमें संशोधन करने पर विचार करे, या फिर इसे पूरी तरह रद्द करने के लिए कोई विधेयक लाए।

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पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट का रुख

12 दिसंबर 2024 को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि जब तक इस मामले में अंतिम फैसला नहीं आ जाता, तब तक अदालतें धार्मिक स्थलों, विशेषकर मस्जिदों और दरगाहों पर नए मुकदमों की सुनवाई नहीं करेंगी और लंबित मामलों में कोई प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित नहीं किया जाएगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि बिना केंद्र सरकार के जवाब के इस मामले पर आगे की सुनवाई संभव नहीं होगी।

किन लोगों ने कानून को दी चुनौती?

बता दें कि इस कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने के लिए कई याचिकाएं दाखिल की गई थीं।इनमें प्रमुख रूप से BJP नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय, धर्मगुरु स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती, कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर, सुब्रमण्यम स्वामी, काशी की राजकुमारी कृष्ण प्रिया, रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर अनिल कबोत्रा, एडवोकेट चंद्रशेखर और रुद्र विक्रम सिंह शामिल हैं। इन याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता और ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर उचित नहीं है और इसे असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए।

ओवैसी समेत तमाम मुस्लिम नेता रहे हैं कानून के समर्थक

इस कानून का समर्थन करते हुए कई मुस्लिम संगठनों और नेताओं ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की हैं। इनका तर्क है कि यदि इस कानून को खत्म किया जाता है तो देशभर में मस्जिदों और अन्य धार्मिक स्थलों को लेकर मुकदमों की बाढ़ आ सकती है। कानून के समर्थन में जमीयत उलमा-ए-हिंद, इंडियन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और राष्ट्रीय जनता दल (JDU) सांसद मनोज झा ने याचिकाएं दाखिल की हैं।