Syria War

‘सीरिया’ का क्या होगा भविष्य? क्या मिडिल ईस्ट का नया ‘अफगानिस्तान’ बनेगा सीरिया ?

Syria War: क्या सीरिया अब दूसरा अफगानिस्तान बनने की राह पर है? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि वहां की मौजूदा हालात इसी ओर इशारा कर रहे हैं। असद परिवार का करीब 50 सालों से चला आ रहा शासन अब खत्म हो चुका है। लेकिन यह सब कुछ आसान नहीं था, बल्कि लंबे संघर्ष और मुश्किलों के बाद ही संभव हो पाया है।

साल 2011 में सीरिया में बशर अल-असद की सरकार के खिलाफ लोगों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन शुरू किए। लेकिन जब सरकार ने इन प्रदर्शनों को दबाने के लिए कड़ा और हिंसक रुख अपनाया, तो लोगों में गुस्सा भड़क उठा। इसके बाद सीरिया में हालात बिगड़ते गए और धीरे-धीरे यह विरोध गृह युद्ध में बदल गया।

क्या मिडिल ईस्ट का अफगानिस्तान बनेगा सीरिया ?

आज की स्तिथि देखें तो सीरिया के हालात काफी जटिल हो चुके हैं। यहां गृह युद्ध में विद्रोही गुटों के साथ कई बड़े देशों की भी भागीदारी रही है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या असद सरकार को हटाने से सीरिया में शांति और स्थिरता आ जाएगी? क्या विद्रोही गुटों का शासन लोगों के लिए खुशहाली लेकर आएगा, या फिर यहां भी अफगानिस्तान की तरह यहां भी नए संघर्ष की शुरुआत होगी?

इस समय सीरिया के हालात इसलिए भी बदले हुए नजर आ रहे हैं क्योंकि रूस और ईरान अपने मसलों में उलझे हुए हैं। रूस 33 महीनों से यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में फंसा हुआ है तो वहीं ईरान के समर्थक गुट, जैसे हिज़्बुल्लाह और हमास, अब उतने मजबूत नहीं रहे। जिसके कारण विद्रोहियों को किसी प्रकार की बड़ी अड़चन का सामना नहीं पड़ा।

कितने दिन टिकेगा नया शासन ?

अब प्रश्न ये उठता है कि क्या रूस और ईरान इतनी आसानी से सीरिया को विद्रोहियों के हाथों में जाने देंगे? या फिर मौका मिलने पर वे असद परिवार को दोबारा सत्ता में लाने की कोशिश करेंगे? फिलहाल यह कहना अभी मुश्किल है।

पिछले कुछ दशकों में सीरिया के संघर्ष को देखकर अफगानिस्तान के गृह युद्ध और तालिबान की वापसी की यादें ताजा हो जाती हैं। यहां भी भविष्य को लेकर कई सवाल खड़े हैं, जिनका जवाब फिलहाल मिलना आसान नहीं है।

siriya war

अफगानिस्तान में क्या हुआ था?

1978 से 1989 के बीच अफगानिस्तान में सोवियत-अफगान युद्ध हुआ, जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, सऊदी अरब और चीन ने अफगान मुजाहिदीन का समर्थन किया था। इस जंग में सोवियत संघ को हार का सामना करना पड़ा था और मुजाहिदीन ने जीत हासिल की थी। लेकिन उनकी यह जीत ज्यादा समय तक कायम नहीं रह सकी।

जल्द ही अफगानिस्तान में गृह युद्ध शुरू हो गया। मुजाहिदीन आपस में ही सत्ता के लिए लड़ने लगे पड़े। इसी दौर में तालिबान का प्रभाव बढ़ने लगा। सितंबर 1995 में तालिबान ने ईरान बॉर्डर के पास हेरात प्रांत पर कब्जा कर लिया। इसके बाद, महज एक साल के अंदर ही तालिबान ने राजधानी काबुल पर भी अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया।

तालिबान ने किया कब्ज़ा

अफगानिस्तान के लोग अफगान मुजाहिदीन के अत्याचारों से परेशान हो चुके थे। ऐसे में जब तालिबान आया, तो लोगों ने उनका खुले दिल से स्वागत किया। शुरुआत में तालिबान ने अच्छा काम किया। उन्होंने भ्रष्टाचार को रोका, अराजकता खत्म की, कारोबार को बढ़ावा दिया, सड़कें बनाईं और विकास के कई काम किए। इन सबके चलते तालिबान को पसंद किया जाने लग गया।

लेकिन धीरे-धीरे तालिबान का असली चेहरा भी सामने आने लगा था। उन्होंने महिलाओं पर कड़े नियम थोप दिए, और हत्या व रेप जैसे अपराधों के लिए शरिया कानून के तहत सार्वजनिक सज़ा देने लगे। इन सख्त कदमों ने अफगानिस्तान के लोगों के दिलों में डर और दहशत भर दी।

Siriya war

तोड़ दी थी भगवान बुद्ध की मूर्ति 

साल 2001 तालिबान के लिए बहुत बड़ा काला धब्बा साबित हुआ क्योकि इसी साल तालिबान ने दुनियाभर की आलोचनाओं के बावजूद अफगानिस्तान के बामियान में स्तिथ भगवान बुद्ध की ऐतिहासिक प्रतिमा को तोड़ दिया। उसी साल, 11 सितंबर को, अमेरिका के न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमला भी हुआ था, जिसने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया था।

इस हमले के पीछे ओसामा बिन लादेन और अल-कायदा का हाथ बताया गया, जिन्हें तालिबान ने शरण दे रखी थी। इसके बाद क्या था, हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान में सैन्य अभियान शुरू कर दिया। अमेरिका ने साल के अंत तक तालिबान की सरकार को सत्ता से उखाड़ फेका था।

बता दें, साल 2013 में तालिबान ने कतर में अपना एक दफ्तर खोला। इसके ठीक 7 साल बाद,  2020 में कतर की मध्यस्थता में तालिबान और अमेरिका के बीच एक समझौता हुआ, जिसने इस लंबे संघर्ष को एक दिशा देने की कोशिश की।

अमेरिकी सेना की वापसी 

2021 में जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऐलान किया कि सितंबर तक अमेरिकी सेना अफगानिस्तान से पूरी तरह वापस आ जाएगी। इस खबर के बाद तालिबानी लड़ाकों ने तेजी से अफगानिस्तान के अलग-अलग इलाकों पर कब्जा करना शुरू कर दिया। 15 अगस्त 2021 को महज़ कुछ हफ़्तों में ही तालिबान ने काबुल पर दोबारा कब्जा कर लिया और करीब 20 साल लम्बे संघर्ष के बाद फिर से अफगानिस्तान की सत्ता में वापसी की। हालांकि, तालिबान का शासन आज भी उतना ही सख्त और क्रूर है जितना पहले था।

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महिलाओं के ऊपर सख्त कानून

तालिबान ने महिलाओं और लड़कियों पर कई तरह की पाबंदियां लगा दी हैं। 12 साल से बड़ी लड़कियों को स्कूल जाने की इजाजत नहीं है, महिलाएं तेज आवाज में बात नहीं कर सकतीं, और विश्वविद्यालयों में एडमिशन पर भी रोक लगा दी गई है। ऐसा लगता है कि मानों अफगानिस्तान फिर से 20 साल पुराने दौर में लौट चुका है।

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सीरिया में क्या हो रहा है?

अब तो सीरिया की हालत भी अब अफगानिस्तान जैसी होती नज़र आ रही है। 1946 में आजादी के बाद से यह देश लगातार राजनीतिक अस्थिरता का शिकार रहा है। आजादी के लगभग 25 साल बाद, 1971 में हाफिज अल-असद ने तख्तापलट कर सत्ता अपने हाथ में ले ली थी, तब से पिछले 53 सालों से असद परिवार ही सीरिया पर राज कर रहा है। लेकिन उनकी सख्त हुकूमत और विरोधियों के खिलाफ कठोर दमन ने देश को लंबे गृह युद्ध की आग में धकेल दिया है।

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बशर-अल-असद से थी अच्छे शासन की उम्मीद 

साल 2000 में करीब 30 साल तक सीरिया पर शासन करने वाले हाफिज अल-असद का निधन हो गया। इसके बाद, बिना किसी चुनाव के उनके छोटे बेटे बशर अल-असद को सीरिया का राष्ट्रपति बना दिया गया। बता दें, हाफिज अल-असद ने अपने शासन में कभी निष्पक्ष चुनाव नहीं कराए और अपने विरोधियों का सख्ती से दमन किया था।  लेकिन बशर अल-असद की कहानी थोड़ी अलग थी। पेशे से डॉक्टर और लंदन में पढ़ाई कर चुके 34 साल के बशर जब राष्ट्रपति बने, तो लोगों को उम्मीद थी कि उनके पिता के शासन के मुकाबले चीजें बेहतर होंगी।

राष्ट्रपति बनते ही बशर अल-असद ने राजनीतिक सुधार और प्रेस को आजादी देने का वादा किया था जिससे वहां के आम लोगों को एक अच्छे शासन की उम्मीदें जगीं थी। लेकिन यह सब सिर्फ बयान बाजी ही निकली उनके शासन में आने के बाद भी कोई ख़ास बदलाव नहीं हुए। 2001 में फिर विद्रोह शुरू हुआ लेकिन सीरियाई सुरक्षा बलों ने फिर से विरोधियों को दबाने के लिए दमन का सहारा लिया और जबरन विद्रोहियों को दबा दिया। इस दौरान देश में जो आर्थिक सुधार किए गए थे उनपर ये  आरोप भी लगे कि ये सुधार केवल असद परिवार के फायदे के लिए थे और इन सुधारों में देश का भला कुछ भी नहीं था।

रूस और ईरान ने दिया था साथ 

सीरिया में बशर अल-असद के शासन के दौरान उनके खिलाफ निरंकुशता के आरोप भी लगने लगे। विरोधियों को गिरफ्तार किया जाने लगा और शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को बर्बरता से दबाया जाने लगा, जिससे बड़े पैमाने पर विद्रोह शुरू हो गया। यह विद्रोह 2011 में शुरू हुआ था और धीरे-धीरे गृह युद्ध में बदल गया। इस दौरान सीरिया में अमेरिका, रूस, ईरान और तुर्किये जैसे देशों ने दखल देना शुरू कर दिया था। रूस और ईरान जो असद सरकार का समर्थन कर रहे थे, वहीं अमेरिका और तुर्किये अलग-अलग विद्रोही गुटों को मदद दे रहे थे। हालांकि, 2016 में अलेप्पो शहर पर रूस की बमबारी के बाद विद्रोहियों को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था।

रूस ने विफल किया था विरोध 

2020 में रूस, सीरिया सरकार और विद्रोही गुटों के बीच एक संघर्ष विराम समझौता हुआ, जिसके बाद सीरिया में चार साल तक शांति बनी रही लेकिन ये शांति भी ज्यादा नहीं टिकी इस दौरान विद्रोही गुटों ने खुद को मजबूत कर लिया और फिर उस समय कार्रवाई शुरू की जब रूस और ईरान अपनी-अपनी समस्याओं में फंसे हुए थे। इस विद्रोह में तुर्किये की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण रही है, कहा जा रहा है कि तुर्किये के समर्थन के बाद ही विद्रोहियों ने असद सरकार को उखाड़ फेंकने की कोशिश शुरू की थी। एक बड़ी विडम्बना की बात है, जो तुर्किये दुनिया को यह बताता फिरता है कि इजराइल उसका दुश्मन है और वह फिलिस्तीन के बचाव में इजराइल पर हमला कर देगा, वही तुर्किये सीरिया में इजराइल के साथ होकर विद्रोहियों का समर्थन कर रहा था।

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अल-कायदा की एक विंग रहा है HTS

सीरिया की राजधानी दमिश्क और अन्य बड़े शहरों पर हयात तहरीर अल-शाम (HTS) के नेतृत्व में विद्रोही गुट का कब्जा है। यह वही गुट है जो पहले सीरिया में अल-कायदा का हिस्सा माना जाता था। 2016 में इसके नेता अबू मोहम्मद अल-जुलानी ने अल-कायदा से संबंध तोड़ लिया और खुद को एक आधुनिक और उदारवादी नेता के रूप में पेश करना शुरू कर दिया। असद शासन को हटाने के बाद इस गुट ने दावा किया है कि वह महिलाओं पर कोई ड्रेस कोड नहीं थोपेगा और सभी समुदायों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करेगा। अब ब्रिटेन और अमेरिका इस गुट को आतंकवादी सूची से हटाने पर विचार कर रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या सचमुच सीरिया में हालात बदल रहे हैं? क्या असद शासन के अंत के बाद HTS सीरिया में एक उदारवादी शासन स्थापित कर सकेगा, या फिर यह तुर्किये और अमेरिका जैसे देशों के नियंत्रण में रहेगा?

 

 

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