न्यू ईयर 2025 का सबसे पहले स्वागत करने वाला द्वीप समूह, किरिबाती, एक बड़े खतरे का सामना कर रहा है। 33 द्वीपों का यह देश ग्लोबल वार्मिंग के कारण डूबने की कगार पर है। जलवायु परिवर्तन से पिघलते ग्लेशियर और समुद्र का बढ़ता तापमान इसके लिए जिम्मेदार हैं। समुद्र का जलस्तर बढ़ने से कई हिस्से पहले ही डूब चुके हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर ऐसा ही चलता रहा, तो साल 2100 तक किरिबाती के कई द्वीप पूरी तरह समुद्र में समा जाएंगे।
किरिबाती द्वीप समूह में सबसे पहले 2025 का नया साल मनाया गया। भारतीय समय के अनुसार, दोपहर 3:31 बजे से ही वहां नए साल का जश्न शुरू हो गया था। यह द्वीप प्रशांत महासागर में स्थित है और भूमध्य रेखा के पास बसा हुआ है।
किरिबाती में कुल 33 द्वीप हैं, लेकिन इनमें से केवल 20 पर लोग रहते हैं। यह तीन हिस्सों में बंटा हुआ है:
- गिल्बर्ट द्वीप समूह – यहां सबसे ज्यादा लोग रहते हैं।
- लाइन द्वीप समूह – यहां कुछ ही लोग रहते हैं।
- फीनिक्स द्वीप समूह – यहां कोई स्थायी आबादी नहीं है।
इस द्वीप का कुल क्षेत्रफल 811 वर्ग किलोमीटर है। यहां रहने वाले लोगों को माइक्रोनेशियाई कहा जाता है। उनकी स्थानीय भाषा गिल्बर्टीज है, जबकि आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है।
नारियल के बागानों के लिए मशहूर किरिबाती
किरिबाती द्वीप समूह का इस्तेमाल 1960 के दशक में अमेरिका और ब्रिटेन ने परमाणु हथियारों के परीक्षण के लिए किया था। आज यह द्वीप नारियल के बागानों और मछली फार्म के लिए जाना जाता है। इस द्वीप का सबसे ऊंचा स्थान बानावा है, जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से 285 फीट (87 मीटर) है।
पहले यहां बड़ी मात्रा में फॉस्फेट पाया जाता था, लेकिन 1979 तक खनन के कारण यह खत्म हो गया। बाकी द्वीप समुद्र तल से सिर्फ 26 फीट की ऊंचाई पर हैं, जिससे ये समुद्र के बढ़ते स्तर और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति बेहद संवेदनशील हैं।
डूब चुके हैं दो टापू, अन्य पर खतरा
ब्रिटानिका की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1999 तक इस द्वीप समूह के दो टापू समुद्र में डूब चुके थे, और बाकी टापुओं पर भी खतरा बना हुआ है। यहां के गिल्बर्ट समूह में हर साल औसतन 3000 मिमी बारिश होती है, लेकिन दूसरे हिस्से में यह बारिश केवल 1000 मिमी तक सीमित रहती है। इससे कई हिस्सों में सूखा भी पड़ता है। यहां का औसत तापमान 27 से 32 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है।
किरिबाती की अर्थव्यवस्था नारियल के पेड़ों पर निर्भर
किरिबाती की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से नारियल के पेड़ों पर निर्भर करती है। यहां लोग नारियल को खाने के अलावा ताड़ी और मीठे पेय बनाने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं। इसके साथ ही ब्रेडफूट और पैंडनल जैसे पौधे भी उगाए जाते हैं, लेकिन केले और शकरकंद जैसी फसलें उगाना यहां बहुत कठिन है। यहां के लोग ज्यादातर सूअर और मुर्गियों का पालन करते हैं।
2100 तक ये द्वीप पूरी तरह से पानी में डूब जायेगा
किरिबाती एक ऐसा द्वीप समूह है जो ग्लोबल वार्मिंग से सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि 2100 तक ये द्वीप पूरी तरह से पानी में डूब सकते हैं। इसके अलावा, यहां का पानी खारा हो रहा है, जिससे खेती पर असर पड़ रहा है। नारियल, टारो और अन्य स्थानीय फसलें उगाना अब मुश्किल हो गया है, जिससे खाने-पीने की समस्या बढ़ रही है। बार-बार आने वाले तूफान बहुत नुकसान पहुंचा रहे हैं। मछली पकड़ना, नारियल की खेती और यहां की अर्थव्यवस्था और लोगों की आजीविका इन समस्याओं से प्रभावित हो रही है। बढ़ते समुद्र स्तर और बदलते समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के कारण इनका जीवन मुश्किल हो रहा है।
सरकार क्या कर रही प्रयास
किरिबाती द्वीप समूह पर बढ़ते खतरे को देखते हुए यहां की सरकार ने फिजी में ज़मीन खरीदी है, ताकि वहां रहने वाले लोगों को सुरक्षित जगह पर बसाया जा सके। सरकार लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कार्बन उत्सर्जन कम करने की अपील कर रही है। इसके अलावा, किरिबाती ने अपने द्वीप को बचाने के लिए दुनिया का सबसे बड़ा संरक्षित समुद्री क्षेत्र भी स्थापित किया है।
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