Tiranga Burfi: वाराणसी की तिरंगा बर्फी को मिला GI टैग, जानिये इसका इतिहास और खासियत
Tiranga Burfi: वाराणसी के प्रसिद्ध तिरंगा बर्फी को प्रतिष्ठित GI टैग मिला है। बता दें कि अपने लुक और स्वाद के लिए तिरंगा बर्फी (Tiranga Burfi) ना सिर्फ वाराणसी बल्कि समूचे देश में प्रसिद्ध है। बताया जाता है कि काशी की प्रसिद्ध ‘तिरंगी बर्फी’, भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई में आम लोगों और स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक हथियार था।
अब उस आंदोलन के इतने सालों बाद इस बहुप्रसिद्ध बर्फी (Tiranga Burfi) को GI टैग मिला है। बर्फी के अलावा, वाराणसी के एक अन्य उत्पाद धलुआ मूर्ति धातु शिल्प (मेटल कास्टिंग क्राफ्ट) को भी जीआई श्रेणी में शामिल किया गया है।
जैसा कि नाम से पता चलता है काजू और पिस्ता से बनी ‘तिरंगी बर्फी’, राष्ट्रीय ध्वज के हरे, केसरिया और सफेद रंगों (Tiranga Burfi) में आती है। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के ‘करो या मरो’ के आह्वान के बाद इसे पहली बार 1942 में वाराणसी के ठठेरी बाज़ार इलाके में श्री राम भंडार द्वारा पेश किया गया था।
तिरंगा बर्फी का इतिहास
जानकारी के अनुसार तिरंगे बर्फी (Tiranga Burfi) का ईजाद 1940 में स्वतंत्रता-पूर्व युग के दौरान क्रांतिकारियों की खुफिया बैठकों और गुप्त सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए राम भंडार मिटहि के दुकान के मालिक मदन गोपाल गुप्ता द्वारा किया गया था। बता दें कि इस मिठाई को बनाने में वह अकेले नहीं थे. दरअसल इस बर्फी को बनाने में कई अन्य क्रांतिकारियों ने भी उनकी मदद की थी। जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था, तब तिरंगे पर प्रतिबंध था और इस प्रकार, यह बताने के लिए, तिरंगे की बर्फी बनाई गई, जिसका रंग बिल्कुल तिरंगे (भारत का राष्ट्रीय ध्वज) जैसा था। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंकने के लिए यह बर्फी भी मुफ्त बांटी गई थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब अंग्रेजों को इस बर्फी की भनक लगी और उन्होंने इसे देखा तो तिरंगे के हूबहू रंग देखकर वे हैरान रह गए।
क्या है तिरंगा बर्फी की खासियत
सामग्री की बात करें तो इसे केसर, पिस्ता, खोया और काजू का उपयोग करके तैयार किया जाता है। बर्फी (Tiranga Burfi) में केसरिया रंग के लिए जहां केसर का इस्तेमाल किया जाता है, वहीं हरे रंग के लिए पिस्ते का इस्तेमाल किया जाता है और सफेद भाग के लिए खोया और काजू को एक साथ मिलाया जाता है। बर्फी में खाने के रंग का बिलकुल इस्तेमाल नहीं किया जाता है। पुराने लोग बताते हैं कि वाराणसी राम भंडार में बिकने वाली तिरंगा बर्फी का स्वाद अभी भी वही है जो 1940 के दशक में हुआ करता था। अब राम भंडार के अलावा वाराणसी के कई दुकानों में यह बर्फी मिलती है।
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