उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू, जमीयत उलेमा-ए-हिंद कोर्ट में देगा चुनौती

उत्तराखंड सरकार ने 27 जनवरी से राज्य में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू कर दी है, लेकिन यह फैसला मुस्लिम संगठनों के लिए एक बड़ा मुद्दा बन गया है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद, जो एक प्रमुख मुस्लिम संगठन है, इस कानून को लेकर काफी नाराज है और अब यह सरकार के फैसले को नैनीताल हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रही है। इस फैसले का विरोध करने वाले लोग इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला मान रहे हैं और कह रहे हैं कि यह कानून भेदभाव और पूर्वाग्रह पर आधारित है।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद का विरोध

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने साफ कहा है कि ऐसा कोई भी कानून जिसे शरीयत (इस्लामी कानून) के खिलाफ माना जाए, मुसलमान उसे नहीं स्वीकार कर सकते। उनका कहना है कि भारतीय संविधान में हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है, और ऐसे किसी भी कानून से वह अधिकार छीना नहीं जा सकता। जमीयत उलेमा-ए-हिंद का यह मानना है कि यह कानून संविधान के खिलाफ है, क्योंकि इसमें धार्मिक स्वतंत्रता को नजरअंदाज किया गया है। मौलाना मदनी का कहना है कि अगर संविधान के अनुच्छेद 366 और 25 के तहत अनुसूचित जनजातियों को इस कानून से छूट दी जा सकती है, तो फिर मुसलमानों को  क्यों नहीं दी जा सकती?

शरीयत से समझौता नहीं हो सकता

मौलाना मदनी ने आगे कहा कि मुसलमान अपनी शरीयत से कोई समझौता नहीं कर सकते। उनका कहना था कि शरीयत (इस्लामी कानून) भगवान और पैगंबर से लिया गया कानून है, और इस पर कोई भी बदलाव या समझौता नहीं हो सकता। उनका कहना था कि भारत में हर धर्म के अनुयायी को अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने की स्वतंत्रता है, और यह स्वतंत्रता संविधान द्वारा दी गई है। मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि यह सवाल सिर्फ मुसलमानों के फैमिली लॉ का नहीं है, बल्कि यह सवाल भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान का है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जिसका मतलब है कि यहां किसी एक धर्म को प्राथमिकता नहीं दी जाती। ऐसे में समान नागरिक संहिता (UCC) को लागू करना संविधान के इस सिद्धांत के खिलाफ है।

क्या समान नागरिक संहिता संविधान के खिलाफ है?

मौलाना मदनी ने यह सवाल उठाया कि अगर संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत समान नागरिक संहिता की बात कही जाती है, तो यह सिर्फ एक सुझाव है, ना कि एक बाध्यकारी आदेश। उन्होंने यह भी कहा कि अगर समान नागरिक संहिता लागू करनी ही है, तो संविधान की धारा 25 और 26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता को क्यों नजरअंदाज किया जा रहा है? मौलाना का मानना है कि यह कानून भेदभावपूर्ण है क्योंकि यह कुछ समुदायों को अलग-अलग अधिकार देता है, और बाकी को एक ही कानून के तहत लाता है। अगर संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है, तो इसे नकारा नहीं जा सकता।

धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला?

मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि समान नागरिक संहिता लागू करना एक सोची-समझी साजिश है, जो धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला कर रही है। उनका कहना था कि यदि हर धर्म को अपनी-अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जीने का अधिकार है, तो सरकार को ऐसे कानूनों को लागू करने से पहले उनके प्रभावों पर सोच-विचार करना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि सरकार संविधान में दिए गए अधिकारों का सम्मान नहीं करती, तो यह देश की एकता और अखंडता के लिए बड़ा खतरा हो सकता है।

समान नागरिक संहिता के फायदे और नुकसान

समान नागरिक संहिता का मकसद समाज में एक समान कानून लागू करना है, ताकि सभी नागरिकों के अधिकार समान हों। इसके जरिए, शादी, तलाक, संपत्ति अधिकार, गोद लेने जैसे मामलों में एक ही कानून लागू होगा, जिससे किसी को किसी विशेष धर्म या समुदाय के आधार पर भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ेगा।
लेकिन इसके विरोध में यह कहा जा रहा है कि भारत एक बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक देश है, जहां हर धर्म के लोग अपनी धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक जीते हैं। ऐसे में एक समान कानून लागू करना देश की विविधता को नजरअंदाज करना हो सकता है।

राज्यों में कानूनों की अलग-अलग स्थिति

मौलाना मदनी ने यह भी उदाहरण दिया कि देश में कई और कानून पहले से ही एक जैसे नहीं हैं। जैसे आईपीसी और सीआरपीसी की धाराएं अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग हैं। कुछ राज्यों में गौहत्या पर पाबंदी नहीं है, तो कुछ राज्यों में आरक्षण की सीमाएं तय हैं। इस तरह, जब बाकी कानून अलग-अलग हैं तो क्यों केवल समान नागरिक संहिता पर जोर दिया जा रहा है?

क्या संविधान की धारा 44 पर ज़ोर देना सही है?

मौलाना ने यह भी सवाल उठाया कि जो लोग संविधान की धारा 44 का समर्थन करते हैं, वे यह भूल जाते हैं कि इसी धारा के तहत यह सुझाव भी दिया गया था कि पूरे देश में शराब पर पाबंदी लगाई जाए और अमीर-गरीब के बीच की खाई को खत्म किया जाए। अगर सरकार इस तरह के सुझावों को नहीं मान रही है, तो फिर समान नागरिक संहिता को लेकर क्यों इतना शोर मचाया जा रहा है?

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