Veerappan died due to his mustache in Ambulance trapped by STF

Veerappan : जिन मूछों का बना रखी थी शान आखिर में उन्हीं मूछों ने ले ली जान, पढ़िए खूंखार वीरप्पन की अनसुनी दास्तां…

Veerappan: वीरप्पन एक ऐसा नाम जिसकी बात होते आज भी कई बड़े अधिकारियों की नींद उड़ जाती है। वीरप्पन एक ऐसा डाकू जिसने जंगलों में बड़े-बड़े अधिकारियों को धूल चटा दी थी। तमिलनाडु और कर्नाटक की सरकार ने 20 साल तक वीरप्पन की खोज जारी रखी थी। इसके बाद जब 18 अक्टूबर 2004 को जब वह मृत पाया गया तो राज्यों में ही नहीं बल्कि पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ गई। आइए जानते है उस डाकू की पूरी दास्तां जिसका नाम आज भी डर के साथ लिया जाता है।

चंदन की तस्करी के लिए था फेमस

18 जनवरी, 1952 को तमिलनाडु के एक गांव में जन्मा वीरप्पन (Veerappan) भारत ही नहीं बल्कि कई देशों से चंदन की तस्करी करता था। देखा जाए तो अगर किसी ने चंदन की तस्करी सबसे बड़े पैमाने पर की है तो वो और कोई नहीं बल्कि वीरप्पन ही है। वीरप्पन एक ऐसा अपराधी था जिसके अंदर सारे अपराधियों वाले गुण थे। आमतौर पर कई अपराधी अंदर से कमजोर भी होते है लेकिन वीरप्पन ऐसा नहीं था। कहा जात है कि वीरप्पन की शूटिंग स्किल्स ऐसे थे कि तमिलनाडु के कई पुलिस अफसर भी अपने इंटरव्यू में उसका गुणगान करते हुए नजर आ चुके हैं।

हथियारों का था शौकीन

वीरप्पन को हथियारों का बहुत शौक था। उसके पास कई तरह के पुराने और नए हथियार थे। वीरप्पन ने 17 साल की उम्र में पहली बार गोली से एक विशाल हाथी को मार गिराया था। वीरप्पन पर 2000 हाथियों को मारने का भी आरोप था। कहा जाता है कि अपने बेहतरीन शूटिंग स्किल्स से वह हाथियों के माथे के बीच में गोली मारता था। जरायम की दुनिया में जैसे-जैसे वीरप्पन अपने पांव जमाते गया, पुलिस और प्रशासन की नजर में भी वह चढ़ता चला गया।

5 करोड़ का था इनाम

जंगलों में रहने वाला वीरप्पन (Veerappan) बेहद शातिर और तेज दिमाग का था। वह अपनी चालाकी से 20 साल तक पुलिस को छकाता रहा। इसके बाद एक दौर ऐसा आया कि सरकार ने भी उसके सामने हार मान ली और कहा जाने लगा कि अब वीरप्पन ही सरकार है। सरकार ने वीरप्पन पर 5 करोड़ का ईनाम रखा था। भारतीय इतिहास में सिर्फ दो ही ऐसे अपराधी रहे है जिनके ऊपर इतनी बड़ी धनराशि का ईनाम रखा जाए। जिसमें पहला तो वीरप्पन था और दूसरा दाऊद इब्राहिस है।

हाथियों के दांत की तस्करी

वीरप्पन के हाथियों के दातों की तस्करी से तस्करी की दुनिया में अपने जड़े मजबूती करते चला गया। 1993 में वह नजर में आया जब उसने Good Friday के दिन 21 पुलिसवालों पर हमला किया। 10-10 फीट के विस्फोटकों से भरे 14 गढ्ढों में जब वीरप्पन ने धमाका किया तो सिर्फ हवा में मांस के लोथड़े और धुआं ही नजर आ रहा था। यही नही साल 2000 में कन्नड़ फिल्म के एक्टर राजकुमार को वीरप्पन ने अगवा कर लिया और 100 दिनों तक अपने बंधक बनाए रखा।

अपनी बच्ची की ही कर दी थी हत्या

वीरप्पन इतना क्रूर आदमी था जिसने अपनी कुछ महीनों को भी नहीं बख्शा। वीरप्पन पुलिस से बचने के लिए जंगलों में भटक रहा था। तब उसे इस बात का डर था कि अगर उसकी बच्ची रोई तो पुलिस उसकी लोकेशन का पता लगा लेगी। बस फिर क्या था क्रूर और निर्दयी वीरप्पन ने अपनी कुछ महीने की बेटी को भी पुलिस से बचने के लिए मौत के घाट उतार दिया। वीरप्पन के इस फैसले से उसकी पत्नी मुत्थुलक्ष्मी सदमे में चली गई थी।

शान वाली मूंछ ने ले ली जान

वीरप्पन के पाप का घड़ा भर चुका था। वीरप्पन को पकड़ने या मारने की जिम्मेदारी तमिलनाडु के सीनियर IAS ऑफ़िसर के. विजयकुमार को सौंपी गई। इसके बाद स्पेशल टॉस्क फोर्स ने वीरप्पन की तलाश करना शुरू कर दिया। उस दौरान पुलिस को एक क्लू मिला कि वीरप्पन की आंख में कुछ दिक्कत है और उसकी तबियत भी खराब है। बस पुलिस ने इस मौके को हाथ से जाने नहीं दिया। वीरप्पन की मूंछे ही शायद ही उसका काल साबित होने वाली थी। क्योंकि मूछों पर डाई करते वक्त उसकी कुछ छींटे उसकी आंख में चले गए थे, जिससे उसकी आंखों में दिक्कत हो गई थी।

ऐसे हुआ वीरप्पन का अंत

वीरप्पन (Veerappan) के आंख की खराबी का फायदा STF ने बखूबी उठाया। वीरप्पन एंबुलेंस में बैठकर अस्पताल जाने की फिराक में था। अपनी पहचान छिपाने के लिए उसने अपनी मूंछों को छोटा कर दिया था। लेकिन उसकी काल उसका पीछा कहां छोड़ने वाला था। वीरप्पन एसटीएफ के बिछाए जाल में फंसता जा रहा था। इधर एंबुलेंस में पुलिसकर्मी ही बैठे हुए थे। वीरप्पन जब मारा गया तब वीरप्पन और पुलिसकर्मियों के बीच 15 मिनट तक मुठभेड़ चली थी और करीब 319 राउंड गोलियां दागी गईं थी। इस मुठभेड़ में वीरप्पन के सिर पर दो गोली लगी और अपराध जगत के सबसे बड़े अपराधी का अंत हो गया।

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