भारत ने अंतरिक्ष में एक और बड़ी छलांग लगाने के लिए कमर कस ली है। अब इसरो, शुक्र ग्रह पर अपने मिशन को लॉन्च करने के लिए तैयार है। यह मिशन है वीनस ऑर्बिटर मिशन (Venus Orbiter Mission), जिसे VOM भी कहा जाता है। ये मिशन भारत का अब तक का सबसे कठिन अंतरिक्ष मिशन होगा।
यह मिशन शुक्र ग्रह (Venus) के रहस्यों को सुलझाने के लिए लॉन्च किया जाएगा, और इसके लिए भारत सरकार ने 19 सितंबर 2023 को मंजूरी भी दे दी है। इस मिशन के तहत तकरीबन 1236 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इसरो का यह मिशन अंतरिक्ष में एक नई दिशा दिखा सकता है और शुक्र ग्रह के बारे में कई अनजाने पहलुओं को उजागर कर सकता है।
आखिर क्या है शुक्र ग्रह, क्यों इसका अध्ययन इतना महत्वपूर्ण है, और इस मिशन की सबसे बड़ी चुनौतियाँ क्या होंगी? आइये, इसे विस्तार से समझते हैं।
शुक्र ग्रह: एक पड़ोसी ग्रह, जो हमारी धरती से बहुत अलग है
शुक्र, जिसे अंग्रेजी में Venus कहा जाता है, धरती का पड़ोसी ग्रह है। शुक्र ग्रह को पृथ्वी की बहन (Earth’s sister) कहा जाता है, क्योंकि इसका आकार, संरचना और घनत्व धरती से बहुत मिलते-जुलते हैं। दोनों ग्रह लगभग एक जैसे आकार के हैं, दोनों का आकार एक दूसरे के लगभग समान है, और दोनों का घनत्व भी लगभग समान होता है। इस वजह से वैज्ञानिक शुक्र को धरती का ‘बहन ग्रह’ मानते हैं।
अगर आप इसे देखने की कोशिश करेंगे, तो आपको ये धरती जैसा ही दिखाई देगा लेकिन ये ग्रह धरती से पूरी तरह अलग है। शुक्र ग्रह का वायुमंडल और तापमान धरती से बिल्कुल उलट हैं। अगर हम कहें कि शुक्र ग्रह धरती से बहुत अलग है, तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
इसका सबसे बड़ा आकर्षण इसका गर्म वातावरण और जहरीला वायुमंडल है। शुक्र का तापमान करीब 475 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है। अब सोचिए, ये तापमान इतना ज्यादा है कि यहां तक कि लोहे जैसी धातु भी पिघल सकती है। और सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि शुक्र ग्रह सूर्य से 1 करोड़ 8 लाख किलोमीटर दूर है, जबकि ये सूर्य के पास है फिर भी इतना गर्म क्यों है, ये एक बड़ा सवाल है। शुक्र पर तापमान इतना ज्यादा है कि यहां की सतह पर जाना असंभव सा लगता है।
इसके वायुमंडल की बात करें तो, ये कार्बन डाइऑक्साइड और सल्फ्यूरिक एसिड का मिश्रण है, जो बेहद खतरनाक है। शुक्र का वायुमंडल पृथ्वी के वायुमंडल से करीब 92 गुना अधिक दबाव वाला है, और यहां के बादल सल्फ्यूरिक एसिड के बने होते हैं, जो बहुत जहरीले हैं।
यहां का वातावरण इतना खतरनाक है कि इस पर कई अंतरराष्ट्रीय मिशन किए गए, जिनमें से अधिकांश असफल रहे। शुक्र पर लैंडर उतरे थे, लेकिन उनका जीवन बहुत छोटा था। कुछ लैंडर 2 घंटे से ज्यादा नहीं टिक पाए। यही कारण है कि इस मिशन को लेकर इसरो के वैज्ञानिकों के लिए ये एक बेहद चुनौतीपूर्ण काम होगा।
इसरो का वीनस ऑर्बिटर मिशन (VOM) क्या करेगा?
वीनस ऑर्बिटर मिशन (Venus Orbiter Mission ISRO) इसरो का प्रमुख मिशन है, जिसे शुक्र के वायुमंडल और सतह का अध्ययन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह मिशन एक ऑर्बिटर मिशन होगा, यानी यान शुक्र के आसपास की कक्षा में रहेगा, न कि शुक्र की सतह पर लैंड करेगा। यान के जरिए इसरो शुक्र के वायुमंडल, ग्रह की तस्वीरें, और सल्फ्यूरिक एसिड के बादल का अध्ययन करेगा।
इस मिशन के तहत, यान शुक्र के वायुमंडल में मौजूद धूल और गैस का विश्लेषण करेगा। इसके अलावा, यह ग्रह की सतह की तस्वीरें भी लेगा और यह जानने की कोशिश करेगा कि क्यों शुक्र की सतह इतनी गर्म है। वैज्ञानिक यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि शुक्र का वायुमंडल पृथ्वी से कैसे अलग है और वह कैसे इतना घना और जहरीला है।
इसके साथ-साथ, वैज्ञानिक यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि शुक्र ग्रह का ग्रहों के साथ अंतरक्रिया और सूर्य के प्रभाव क्या हैं। शुक्र के वायुमंडल और सूर्य के बीच होने वाली अंत:क्रिया से ग्रह के तापमान और अन्य पहलुओं को बेहतर समझा जा सकेगा।
इस मिशन की सबसे बड़ी चुनौती क्या होगी?
माना जाता है कि यह मिशन इसरो का सबसे कठिन मिशन होगा। इसका कारण है शुक्र ग्रह का कठोर वातावरण। यान को ऐसे वातावरण में भेजना जहां का तापमान और दबाव पृथ्वी से कई गुना ज्यादा है, बेहद चुनौतीपूर्ण है।
- ♦- तापमान: शुक्र की सतह पर तापमान 475 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। ऐसे में, इस मिशन के लिए एक ऐसा यान बनाना होगा जो इतनी ज्यादा गर्मी सहन कर सके। अगर यान का तापमान नियंत्रित नहीं किया गया तो यह जल सकता है।
- ♦- वायुमंडलीय दबाव: शुक्र का वायुमंडल पृथ्वी के वायुमंडल से 92 गुना ज्यादा दबाव वाला है। इसका मतलब है कि यान को इतनी अधिक दबाव वाली जगह पर काम करने के लिए तैयार किया जाएगा।
- ♦- सल्फ्यूरिक एसिड: शुक्र के वायुमंडल में सल्फ्यूरिक एसिड के बादल होते हैं, जो यान के लिए बहुत खतरनाक हो सकते हैं। इसलिए यान को इस तरह से डिज़ाइन करना होगा कि यह एसिड से बच सके और लंबे समय तक सही तरीके से काम कर सके।
इसलिए इस मिशन में सबसे बड़ी चुनौती यान को इन सभी खतरों से बचाते हुए शुक्र की कक्षा में भेजना है। इस मिशन में यह सुनिश्चित करना होगा कि यान सुरक्षित रूप से अपना काम कर सके और डेटा भेज सके।
मिशन का टाइमलाइन: कब होगा लॉन्च?
शुक्र मिशन का विचार इसरो ने 2012-13 में तैयार किया था, लेकिन फिर इसके लिए बजट की बढ़ोतरी की गई और 2017-18 में इसे प्राथमिक रूप से शुरू किया गया। हालांकि, कोविड के कारण इसमें देरी हुई और फिर इसरो ने चंद्रयान-3 और गगनयान जैसे मिशनों पर ध्यान केंद्रित किया। अब इस मिशन को 2028 के मार्च महीने में लॉन्च किया जा सकता है।
इससे पहले, 2026 और 2028 के बीच हर 19 महीने में एक अवसर आता है, जब शुक्र पर मिशन भेजा जा सकता है। इस अवसर का फायदा उठाकर मिशन को 2028 में लॉन्च करने की योजना बनाई जा रही है।
चंद्रयान-3 और वीनस मिशन में अंतर
चंद्रयान-3 और वीनस मिशन के बीच एक बड़ा अंतर है। चंद्रयान-3 को चंद्रमा पर लैंड किया गया था, जबकि वीनस मिशन एक ऑर्बिटर मिशन है, यानी इसका यान शुक्र की कक्षा में रहेगा और वहां से डेटा एकत्र करेगा। चंद्रयान-3 का मिशन एक महीने का था, जबकि वीनस मिशन चार साल तक काम कर सकता है।
शुक्र पर एक दिन कितना लंबा होता है?
शुक्र का एक दिन धरती के 243 दिनों के बराबर होता है। ये ग्रह अपनी धुरी पर सबसे धीरे घूमता है, और इसकी घूर्णन गति इतनी कम है कि इसका एक दिन पृथ्वी के मुकाबले आठ महीने लंबा होता है।
- ♦- शुक्र पर सूरज पश्चिम से उगता है और पूरब में अस्त होता है। यह एक और दिलचस्प तथ्य है, क्योंकि अधिकांश ग्रहों में सूरज पूरब से उगता है और पश्चिम में अस्त होता है।
रूस, फ्रांस, जर्मनी का मिला साथ
इस मिशन में सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि रूस, फ्रांस, स्वीडन, और जर्मनी भी सहयोग कर रहे हैं। इन देशों के पेलोड्स इस मिशन के यान में भेजे जा सकते हैं। इन पेलोड्स की मदद से मिशन के वैज्ञानिक अध्ययन और भी विस्तार से किए जा सकते हैं।
इस मिशन से मिले डेटा को पृथ्वी पर भेजने के लिए इसरो के डीप स्पेस नेटवर्क का इस्तेमाल किया जाएगा, जो डेटा को एकत्रित करने और उसकी सटीकता को सुनिश्चित करने में मदद करेगा।
इस मिशन का महत्व सिर्फ इसरो के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों के लिए है। शुक्र ग्रह का अध्ययन करने से हमें पृथ्वी जैसे ग्रहों के बनने की प्रक्रिया को समझने में मदद मिल सकती है। साथ ही, शुक्र के वातावरण का अध्ययन करने से यह भी पता चल सकता है कि इस ग्रह की परिस्थितियाँ पृथ्वी के मुकाबले क्यों इतनी अलग हैं और क्या वह किसी समय पर जीवन का समर्थन कर सकते थे।