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उमर अब्दुल्लाह के लिए ‘नए कश्मीर’ की सियासत में क्या हैं चुनौतियां?

उमर अब्दुल्लाह
उमर अब्दुल्लाह

jammu kashmir election result 2024: हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के हालिया चुनावी नतीजों ने भारतीय राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है। हरियाणा में बीजेपी ने लगातार तीसरी बार सत्ता में लौट कर इतिहास बना दिया है, जबकि जम्मू-कश्मीर में फारूक अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 42 सीटें जीतकर एक बार फिर सरकार बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। यह नतीजे न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि इनसे कश्मीर की राजनीतिक सच्चाइयों और उसकी संरचना पर भी प्रभाव पड़ेगा।

केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा

5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली धारा 370 को समाप्त कर दिया। इसके बाद, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। इस कदम ने न केवल राजनीतिक हलकों में हलचल मचाई, बल्कि घाटी में रहने वाले लोगों के जीवन को भी प्रभावित किया। कई प्रमुख नेताओं, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री भी शामिल थे, को गिरफ्तार किया गया या नजरबंद कर दिया गया।

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इस प्रकार का राजनीतिक माहौल निश्चित रूप से चुनावों पर असर डालता है। चुनावी नतीजों के बाद, जम्मू-कश्मीर के लोगों और नेताओं को विधानसभा चुनावों के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा, जिसके कारण उनकी राजनीतिक आकांक्षाओं में भी बदलाव आया है।

पूर्ण राज्य का दर्जा मिलेगा?

जम्मू-कश्मीर में चुनावी प्रक्रिया के बाद, नेताओं ने फिर से पूर्ण राज्य का दर्जा पाने की मांग तेज कर दी है। यह मुद्दा आगामी राजनीतिक विमर्श का केंद्र बन सकता है। कई नेता, जैसे कि दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, इस मांग का समर्थन कर रहे हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या केंद्र सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करेगी या नहीं।

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पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने का मतलब होगा कि जम्मू-कश्मीर की सरकार को अपनी नीतियों और कानूनों को बनाने की पूरी स्वतंत्रता होगी। यह राज्य की राजनीतिक स्वतंत्रता को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण कदम होगा।

उमर अब्दुल्ला

उमर अब्दुल्ला को उपराज्यपाल से बैठाना पड़ेगा तालमेल

फारूक अब्दुल्ला की पार्टी ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के तहत सरकार बनाने की स्थिति में आ गई है। हालांकि, यह ध्यान देने वाली बात है कि उमर अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री बनाए जाने की स्थिति में उनकी शक्तियां बहुत सीमित रहेंगी। केंद्र शासित प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में, उनके हाथ बंधे रहेंगे।

उमर अब्दुल्ला ने चुनावों से पहले एक इंटरव्यू में कहा था कि वह ऐसे राज्य के सीएम नहीं बनना चाहेंगे जहां छोटी-छोटी चीजों के लिए भी उन्हें उपराज्यपाल के दफ्तर में फाइल लेकर बैठना पड़े। यह उनकी स्थिति को दर्शाता है कि वह एक स्वतंत्र और शक्तिशाली मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं, लेकिन वर्तमान राजनीतिक स्थिति ये संभव नहीं।

विशेषताएँ पूर्ण राज्य केंद्र शासित प्रदेश
सरकार की स्वतंत्रता अधिक सीमित
कानून बनाने का अधिकार हाँ उपराज्यपाल की अनुमति पर
केंद्रीय नियंत्रण कम अधिक

केंद्र शासित प्रदेश और पूर्ण राज्य में अंतर

पूर्ण राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के बीच मुख्य अंतर यह है कि पूर्ण राज्य की सरकार के पास कानून बनाने और नियमों में बदलाव का अधिकार होता है। इसके विपरीत, केंद्र शासित प्रदेश में उपराज्यपाल की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है और उसे किसी भी कानून या नियम को लागू करने से पहले केंद्र सरकार की अनुमति लेनी होती है।

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इसका मतलब यह है कि उमर अब्दुल्ला की सरकार, भले ही वह जम्मू-कश्मीर में बने, केंद्र सरकार के अधीन रहेगी। इस स्थिति में उन्हें अपनी नीतियों को लागू करने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ेगा।

दिल्ली से नियंत्रित सरकार?

कुल मिलाकर, जम्मू-कश्मीर की नई सियासत में उमर अब्दुल्ला की भूमिका महत्वपूर्ण होगी, लेकिन उनके पास असली शक्ति सीमित होगी। कानून व्यवस्था, योजनाएं, ट्रांसफर-पोस्टिंग और बिल पास कराने जैसे मामलों में उपराज्यपाल का दखल रहेगा। इस प्रकार, जम्मू-कश्मीर की सियासी पिच पर भले ही नेशनल कॉन्फ्रेंस की टीम उतर गई हो, लेकिन उन्हें अपने खेल में कई सीमाओं का सामना करना पड़ेगा।

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