Zero FIR: क्या आप जानते है कि क्या होती है जीरो FIR, पढ़ें पूरी जानकारी
Zero FIR : आप सभी को यह तो मालूम है कि फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट (First Information Report) यानी FIR क्या होती है…. मगर क्या आप जानते हैं कि जीरो FIR क्या होती है. आपमें से बहुत से लोगों को इस बारे में शायद मालूम नहीं होगा कि जीरो FIR जैसी सिस्टम भी है. अक्सर पुलिस FIR दर्ज करने में आनाकानी करती है और वो यह कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश करती है कि घटना उसके एरिया की नहीं है. आइए आपको जीरो FIR के बारे में बताते हैं.
जीरो FIR बिल्कुल FIR की ही तरह है. दोनों में अंतर बस इतना है कि FIR उसी जगह के पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई जा सकती है, जहां पर घटना हुई है जबकि जीरो FIR आप कहीं पर भी फाइल करा सकते हैं. जीरो FIR में पुलिस को शिकायत के आधार पर केस फाइल करना होगा. केस फाइल होने के बाद इसे concerned पुलिस स्टेशनमें ट्रांसफर कर दिया जाता है.
2012 में दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप के बाद देश में कई तरह के कानूनी सुधार हुए थे. उस समय जस्टिस वर्मा (Justice Verma) कमिटी को इस तरह के मामलों के लिए कड़े कानून बनाने और पुराने कानूनों में संशोधन के लिए बनाया गया था. इसी समुह की तरफ से जीरो FIR का सुझाव दिया था. कमिटी का सुझाव था कि गंभीर अपराध होने पर किसी पुलिस स्टेशन की पुलिस दूसरे इलाके की FIR लिख सकती है. जीरो FIR के बाद पुलिस ऑफिसर एक्शन लेने के लिए पाबंध होता है.
AIM-
Zero FIR को महिलाओं के क्रूर अपराध (Brutal Crimes Against Women) के खिलाफ एक प्रभावी कदम माना गया. इस तरह की FIR का मकसद किसी भी घटना में देरी से बचना, पुलिस स्टेशन के क्षेत्राधिकारी में न आने के बावजूद एक्शन के लिए पुलिस को पाबंध करना, समय पर एक्शन करने के अलावा केस तेजी से आगे बढ़े और जाँच सही से हो,
जब भी कोई शिकायत हो और मामला संज्ञेय हो, तो पुलिस न सिर्फ FIR करेगी बल्कि वह शुरुआती जांच भी करेगी. शुरुवाती सबूत को ख़त्म करने के बचाने के लिए पुलिस को एक्शन लेना जरूरी है. पुलिस इस तरह की जांच के बाद इन्वेस्टीगेशन रिपोर्ट और FIR को संबंधित पुलिस स्टेशन c को रिफर करती है. इस प्रोसेस में फाइल FIR , जीरो FIR कहा जाता है.
कई बार रेप आदि की जब शिकायत की जाती है, तो तुरंत victim का मेडिकल कराना जरूरी होता है. यही वजह है कि जीरो FIR के बाद पुलिस छानबीन भी करती है. जीरो FIR के अलावा देश के गृह मंत्री ने भी 2015 में सभी राज्यों के मुख्य सचिव को अनिवार्य FIR की एडवाइजरी (advisory) जारी की थी. 2013 में ऐसी ही सलाह जारी की थी. लेकिन सारी सरकारी पहल मौके पर चूक जाती हैं जब पीड़ित को न्याय के लिए भटकना पड़ता है.
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