journey of ratan tata: रतन टाटा, जो सिर्फ एक सफल उद्योगपति नहीं बल्कि एक प्रेरणादायक शख्सियत थे, का हाल ही में निधन हो गया। उन्होंने टाटा ग्रुप को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया और विश्व भर में इसका नाम रोशन किया। उनका निधन बुधवार रात मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में हुआ। पिछले कुछ दिनों से उनकी तबियत बिगड़ रही थी, जिसके चलते उनके प्रशंसकों और उद्योग जगत में शोक की लहर है।
रतन टाटा का जन्म एक बड़े उद्योगपति परिवार में हुआ, लेकिन उन्होंने बचपन से ही सादगी का पाठ पढ़ा। बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, उनके दोस्तों का कहना है कि युवा उम्र में रतन को अपना सरनेम एक बोझ जैसा लगता था। लेकिन जब वह अमेरिका में पढ़ाई कर रहे थे, तो उन्हें वहां अपने सहपाठियों के बीच बेफिक्र होने का अहसास हुआ, क्योंकि उन्हें उनके पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में कुछ नहीं पता था।
पैसे कमाने के लिए बर्तन भी धोने पड़े
रतन टाटा ने एक इंटरव्यू में बताया कि जब वह अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे थे, तब उन्हें अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए बर्तन भी धोने पड़े। उस समय भारतीय रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा की बहुत कम मात्रा ही प्रदान करता था। रतन के पिता कानून का पालन करने में विश्वास रखते थे, इसलिए उन्होंने कभी भी रतन के लिए ब्लैक में डॉलर नहीं खरीदे। ऐसे में कई बार महीने के अंत तक सारे पैसे खत्म हो जाते थे, और उन्हें दोस्तों से पैसे उधार लेना पड़ता था।
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भारत लौटने का फैसला
रतन टाटा ने अमेरिका में सात साल बिताए। उन्होंने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से बीएससी आर्किटेक्चर की डिग्री हासिल की और लॉस एंजेलिस में एक अच्छी नौकरी और शानदार जीवन जीने लगे। लेकिन उनकी दादी नवाज़बाई टाटा और चाचा जेआरडी टाटा ने उन्हें भारत लौटने के लिए प्रेरित किया।
शुरुआत: एक साधारण नौकरी से
रतन टाटा की जीवन यात्रा हमेशा प्रेरणादायक रही है। बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक कर्मचारी के रूप में की थी। उन्होंने टाटा ग्रुप में पहली नौकरी नहीं की थी, बल्कि IBM में काम किया। उनके परिवार के किसी सदस्य को इस बात की भनक नहीं लगी थी। यह उस समय की बात है जब रतन टाटा अमेरिका में पढ़ाई कर रहे थे और वहां उन्होंने आर्किटेक्चर और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की थी। उनकी दादी, लेडी नवजबाई की तबीयत खराब होने पर उन्हें भारत लौटना पड़ा।
जेआरडी टाटा का फोन कॉल
जब जेआरडी टाटा, जो उस समय टाटा ग्रुप के चेयरमैन थे, को रतन टाटा के IBM में नौकरी करने की जानकारी मिली, तो वह नाराज हुए। उन्होंने रतन को फोन करके कहा कि ‘तुम भारत में रहकर IBM के लिए नौकरी नहीं कर सकते।’ जेआरडी ने रतन को अपने बायोडाटा को साझा करने के लिए कहा। उस समय रतन के पास अपना बायोडाटा नहीं था, इसलिए उन्होंने IBM ऑफिस में इलेक्ट्रिक टाइपराइटर्स पर अपना रिज्यूमे टाइप किया।
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1962 में, उन्होंने टाटा इंडस्ट्रीज में नौकरी पाई। टाटा परिवार का हिस्सा होते हुए भी, रतन को अपने कंधों पर सभी कार्यों का अनुभव लेना पड़ा, और इसके बाद ही वे कंपनी के शीर्ष पर पहुंचे।
1991 में, रतन टाटा ने टाटा संस और टाटा ग्रुप का चेयरमैन पद संभाला। उन्होंने 21 वर्षों तक टाटा समूह का नेतृत्व किया और इसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनके नेतृत्व में टेटली टी, जगुआर लैंड रोवर, और कोरस जैसे प्रमुख अधिग्रहण किए गए। उनकी दूरदर्शिता के चलते टाटा ग्रुप 100 से अधिक देशों में फैला। टाटा नैनो कार भी रतन टाटा की एक प्रमुख अवधारणा थी, जो उनके नवाचार और साहस का प्रतीक बन गई।
रतन टाटा की विरासत
रतन टाटा का जीवन केवल व्यापारिक सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जिसने अपने धैर्य, मेहनत और दृढ़ संकल्प से कई लोगों को प्रेरित किया। उनके निधन से भारतीय उद्योग जगत ने एक महान नेता को खो दिया है, लेकिन उनकी विरासत सदैव जीवित रहेगी। उनका समर्पण और नेतृत्व आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगा।