कुंभ मेला, एक ऐसा आयोजन है जिसे हर 12 साल में लाखों श्रद्धालु अपने धर्मिक कर्तव्यों को निभाने के लिए हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में मनाते हैं। यह मेला भारत का सबसे बड़ा धार्मिक मेला माना जाता है, जहां श्रद्धालु संगम में स्नान करने और पुण्य अर्जित करने आते हैं। लेकिन इस मेले में मची भगदड़ की घटनाएं न केवल खौफनाक होती हैं, बल्कि इनमें हजारों लोगों की जान भी चली जाती है। आइए जानते हैं कुंभ मेले में हुईं ऐसी दर्दनाक घटनाओं के बारे में, जो इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो गई हैं।
1954 का कुंभ मेला: नेहरू के आने के बाद मची भगदड़
1954 का कुंभ मेला एक महत्वपूर्ण मेला था, क्योंकि यह आज़ाद भारत का पहला कुंभ मेला था। उस दिन प्रयागराज के संगम में लाखों लोग स्नान करने के लिए पहुंचे थे। मौसम भी कठिन था, बारिश के कारण जगह-जगह कीचड़ और फिसलन थी। इस बीच, जब यह खबर फैली कि पंडित नेहरू कुंभ मेले में आएंगे, तो लोग उन्हें देखने के लिए दौड़ पड़े। इस दौरान प्रशासन की कोई योजना नहीं थी और भीड़ बेकाबू हो गई। भगदड़ मचने से 1000 से अधिक लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए।
इसके बाद सरकार ने इस हादसे पर चुप्पी साधने की कोशिश की और इसे अफवाह बताने की कोशिश की, लेकिन एक फोटोग्राफर ने इस घटना की तस्वीरें लीं, जो अगले दिन अखबारों में छपी। इससे यह मामला सार्वजनिक हो गया और नेहरू को इस पर बयान देना पड़ा। इस घटना के बाद भी कई वर्षों तक कुंभ मेला आयोजनों में सुरक्षा पर सवाल उठते रहे।
2013 का कुंभ मेला: प्रयागराज में भगदड़ की घटना
2013 के कुंभ मेले में एक बड़ी भगदड़ की घटना हुई, जो तब मची जब तीन करोड़ से अधिक श्रद्धालु संगम में स्नान कर चुके थे। यह घटना उस वक्त हुई जब श्रद्धालु प्लेटफॉर्म संख्या 6 की ओर बढ़ रहे थे। अचानक हुई भगदड़ में 36 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए। यह घटना इतनी भयावह थी कि राहत और बचाव कार्य में देर हुई और कई घायलों को समय पर चिकित्सा सहायता नहीं मिल पाई। कई रिपोर्ट्स के अनुसार, यह भगदड़ तब मची जब एक ट्रेन में बदलाव की वजह से प्लेटफॉर्म पर अचानक भीड़ बढ़ गई। प्रशासन की ओर से सुरक्षा के इंतजाम न होने के कारण भगदड़ मच गई और कई लोग इसकी चपेट में आ गए। बाद में जब अस्पतालों में घायलों का इलाज किया गया, तो पता चला कि कई घायलों को समय पर उपचार नहीं मिल पाया था, जिससे स्थिति और भी खराब हो गई।
नासिक और हरिद्वार में हुईं भगदड़ की घटनाएं
कुंभ मेला केवल प्रयागराज तक ही सीमित नहीं है। हरिद्वार और नासिक में भी कुंभ मेला आयोजन होते हैं, और यहां भी कई बार भगदड़ की घटनाएं हो चुकी हैं। 2003 में नासिक के कुंभ मेले में भीषण भगदड़ मच गई थी, जब एक साधु ने चांदी के सिक्के उछाल दिए और लोग उन्हें लूटने के लिए एक-दूसरे पर चढ़ने लगे। इससे भगदड़ मच गई और 39 लोग मारे गए जबकि 140 लोग घायल हो गए। इसी तरह 1986 में हरिद्वार के कुंभ में भी एक भगदड़ की घटना घटी, जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह अपने साथियों के साथ स्नान करने हर की पैड़ी पहुंचे थे। उनके स्नान के लिए रास्ता रोका गया, और जैसे ही रास्ता खोला गया, भीड़ बेकाबू हो गई। इस हादसे में 50 लोग मारे गए।
क्यों होती है भगदड़?
कुंभ मेले में भगदड़ की घटनाओं के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन सबसे बड़ा कारण भीड़ का असामान्य बढ़ जाना और प्रशासन द्वारा सुरक्षा इंतजामों की कमी होना है। जब लाखों लोग एक जगह एकत्र होते हैं और यदि सुरक्षा व्यवस्था की कोई स्पष्ट योजना नहीं होती, तो भगदड़ मचने का खतरा बढ़ जाता है। कई बार यह हादसे इसलिए भी होते हैं, क्योंकि लोग तेजी से स्नान करने या किसी अन्य कारण से इधर-उधर दौड़ते हैं, जिससे रास्ते अवरुद्ध हो जाते हैं और लोग गिरकर कुचल जाते हैं।
प्रशासन और सुरक्षा की भूमिका
कुंभ मेले में भगदड़ की घटनाओं के बाद प्रशासन की भूमिका पर कई सवाल उठते हैं। बावजूद इसके कि भारतीय रेलवे, पुलिस और अन्य संबंधित अधिकारियों को ऐसे आयोजनों के लिए कड़ी सुरक्षा योजना तैयार करनी चाहिए, हर बार यह घटनाएं होती हैं। इसके लिए प्रशासन को बेहतर सुरक्षा प्रबंधन, पर्याप्त बैरिकेडिंग और सही समय पर इन्फॉर्मेशन जारी करने की आवश्यकता है। साथ ही, श्रद्धालुओं को भी जागरूक करना चाहिए कि वे भीड़ से बचकर रहें और शांतिपूर्वक अपना धार्मिक कर्तव्य निभाएं।
कुंभ मेले में भविष्य की दिशा
कुंभ मेला, जैसा कि हम जानते हैं, एक बहुत बड़ा धार्मिक आयोजन है और इसमें लाखों की संख्या में लोग आते हैं। भविष्य में इस तरह के हादसों से बचने के लिए प्रशासन को और कड़ी सुरक्षा प्रबंधन की जरूरत होगी। अगर उचित कदम उठाए जाएं, तो इन भगदड़ की घटनाओं को कम किया जा सकता है और श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
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