Sharda Sinha Death: पद्म भूषण से सम्मानित बिहार की प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन हो गया। वे 5 नवंबर (मंगलवार) को रात 9:20 बजे दिल्ली के एम्स अस्पताल में अंतिम सांस लीं। खास बात यह है कि वे छठ महापर्व के पहले दिन इस दुनिया को छोड़ गईं। शारदा सिन्हा का इलाज दिल्ली के एम्स अस्पताल में चल रहा था, जहां 21 अक्टूबर को उन्हें भर्ती किया गया था।
गायिका के बेटे अंशुमन सिन्हा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर अपनी मां के निधन की सूचना दी। उन्होंने लिखा, “आप सबकी प्रार्थना और प्यार हमेशा मां के साथ रहेंगे। मां को छठी मईया ने अपने पास बुला लिया है। मां अब शारीरिक रूप में हम सब के बीच नहीं रहीं।”
बताया जा रहा है कि शारदा सिन्हा की तबियत 25 अक्टूबर को अचानक बिगड़ गई थी, जिसके बाद उन्हें दिल्ली के एम्स अस्पताल के कैंसर सेंटर के मेडिकल आंकोलाजी वार्ड में भर्ती कराया गया। वहां के डॉक्टरों की देखरेख में उनका इलाज चल रहा था।
कौन हैं शारदा सिन्हा?
बिहार की मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश में अपनी आवाज के जादू से पहचान बना चुकी हैं। 1 अक्टूबर 1952 को बिहार के सुपौल जिले के हुलास गांव में जन्मी शारदा को संगीत का शौक बचपन से ही था। उनके परिवार में संगीत का माहौल था, और इसी कारण संगीत में रुचि रखने वाली शारदा की आवाज जल्द ही आसपास के इलाके में चर्चित हो गई। शारदा सिन्हा का संगीत का सफर सिर्फ पारंपरिक गीतों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने अपने गायन से कई भाषाओं और शैलियों में भी अपने कौशल का प्रदर्शन किया है।
शारदा सिन्हा के ससुराल वाले बेगूसराय जिले के सिहमा गांव के थे, जहां उन्हें मैथिली लोक संगीत की छांव में पला-बढ़ा। यहीं से उनके अंदर संगीत के प्रति गहरी रुचि और प्रेम का जन्म हुआ। उनका गायन मुख्य रूप से मैथिली, भोजपुरी, मगही और हिंदी भाषाओं तक फैला है। शारदा के लिए संगीत का यह प्यार एक नैतिक दायित्व की तरह था, और उन्होंने इसे साकार किया अपने जादुई सुरों से।
छठ पूजा के गीतों में योगदान
शारदा सिन्हा की गायकी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा छठ महापर्व के गीत रहे हैं। उनके गाए हुए गीत जैसे “केलवा के पात पर उगलन सूरजमल झुके झुके” और “सुनअ छठी माई” न सिर्फ इस पवित्र पर्व को जीवित रखते हैं, बल्कि पूरे बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस त्योहार के महत्व को भी मजबूत करते हैं। शारदा के गीतों ने छठ पूजा को और भी प्रासंगिक बना दिया है। इस पर्व के दौरान उनके गाए हुए गीत लोगों के दिलों में बस जाते हैं।
बॉलीवुड में भी अपनी गायकी का जादू बिखेरा
शारदा सिन्हा ने न सिर्फ लोक संगीत के क्षेत्र में खुद को साबित किया, बल्कि बॉलीवुड में भी अपनी गायकी का जादू बिखेरा। सलमान खान की फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ का गाना “काहे तो से सजना” उनकी आवाज में बेहद लोकप्रिय हुआ था। इसके अलावा, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर पार्ट 2’ और ‘चारफुटिया छोकरे’ जैसी फिल्मों में भी उन्होंने अपनी आवाज दी। उनका संगीत बॉलीवुड में एक अलग पहचान बन चुका है।
शारदा सिन्हा को उनके संगीत क्षेत्र में योगदान के लिए 1991 में ‘पद्म श्री’ और 2018 में ‘पद्म भूषण’ जैसे उच्चतम पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, ‘बिहार गौरव’, ‘मिथिला विभूति’, ‘भिखारी ठाकुर सम्मान’ और ‘बिहार रत्न’ जैसे कई अन्य पुरस्कार भी शारदा के नाम हुए हैं। उन्हें बिहार की लोक धरोहर को सहेजने और प्रचारित करने के लिए भी सराहा गया है।
‘बिहार कोकिला’ का मिला खिताब
शारदा सिन्हा को ‘बिहार कोकिला’ और ‘भोजपुरी कोकिला’ जैसे सम्मान भी मिले हैं। यह उपाधियाँ उनके संगीत में बेजोड़ योगदान और बिहार की सांस्कृतिक पहचान को उजागर करने के लिए दी गईं। उनके द्वारा गाए गए गीत बिहार के ग्रामीण इलाकों में आज भी जीवित हैं, और उनकी गायकी सुनने वाले सभी लोग इसके साथ भावनात्मक जुड़ाव महसूस करते हैं।
समस्तीपुर महिला कॉलेज में संगीत विभाग की विभागाध्यक्ष रहते हुए शारदा सिन्हा ने भोजपुरी, मगही, मैथिली और बज्जिका भाषाओं के पारंपरिक गीतों को संरक्षित किया। उन्होंने इन भाषाओं के विवाह और छठ जैसे महत्वपूर्ण अवसरों पर सैकड़ों गीत गाए हैं। उनके गायन ने बिहार की सांस्कृतिक धारा को जिंदा रखा है। शारदा का जीवन एक प्रेरणा है कि कैसे मेहनत और समर्पण से एक लोक कलाकार अपनी पहचान बना सकता है।
सोशल मीडिया और आधुनिकता के साथ परंपरा को बनाए रखा
शारदा सिन्हा आज भी अपने प्रशंसकों से जुड़ी रहती हैं और सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती हैं। वह अपने पुराने गीतों के अलावा नए छठ गीत भी पेश करती रहती हैं, जो युवाओं के बीच भी उतने ही लोकप्रिय होते हैं। उनका मानना है कि लोक संगीत में भी आधुनिकता का समावेश किया जा सकता है, बशर्ते उसकी पारंपरिक पहचान को बनाए रखा जाए।
शारदा सिन्हा न केवल अपनी गायकी के लिए प्रसिद्ध हैं, बल्कि वह अपनी स्वस्थ जीवनशैली और शाकाहारी भोजन के लिए भी जानी जाती हैं। उनका मानना है कि एक कलाकार को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहना चाहिए, ताकि वह अपनी कला को सर्वोत्तम तरीके से प्रस्तुत कर सके। शारदा का जीवन एक कई लोगों के लिए आदर्श है कि कैसे कला, साधना और अनुशासन से किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त की जा सकती है