Arvind Kejriwal Resignation: शराब घोटाला मामले में सुप्रीम कोर्ट से सशर्त जमानत मिलने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बीते रविवार को ऐसी घोषणा की, जिसके बारे में किसी को अंदाजा भी नहीं था। लगभग 177 दिन तिहाड़ जेल में बिताने के बाद अरविंद केजरीवल दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का ऐलान करेंगे, यह हर किसी के सोच के परे था। क्योंकि जब वह जेल में थे, तो विपक्ष लगातार उनसे इस्तीफे की मांग कर रहा था।
वहीं, इतिहास में भी ऐसा पहली बार हुआ था कि जब कोई मुख्यमंत्री जेल में रहते हुए भी अपने पद पर बना रहे। लेकिन जेल से बाहर आने के बाद सभी को चौंकाते हुए केजरीवाल ने रविवार को ऐलान किया कि वह दो दिन बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देंगे। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि वह तभी मुख्यमंत्री के रूप में वापस आएंगे जब लोग उन्हें ईमानदारी का प्रमाण पत्र देंगे।
केजरीवाल के इस बड़े ऐलान के बाद ऐसा लगने लगा की शायद अब दिल्ली की बागडोर पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीश सिसोदिया के हाथों में आ जाए। लेकिन रविवार को आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं और कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए केजरीवाल ने अपने पार्टी सहयोगी और पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को भी अपना उत्तराधिकारी बनाने से इनकार कर दिया।
केजरीवाल ने कहा कि वह और सिसोदिया अपने-अपने पदों पर तभी लौटेंगे जब दिल्ली के लोग कहेंगे कि हम ईमानदार हैं। इस दौरान केजरीवाल ने अपने उत्तराधिकारी यानी दिल्ली का अगला सीएम कौन होगा, इसका ऐलान नहीं किया। जिसके बाद दिल्ली के राजनीतिक गलियारों से लेकर मीडिया में भी इस बात कीचर्चा है कि दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री कौन बनेगा? दिल्ली के मुख्यमंत्री पद के लिए कुछ संभावित दावेदार सामने आ सकते हैं। इनमें मुख्य रुप से तीन नाम शामिल हैं—
आतिशी
मनीष सिसौदिया के सीएम पद की दौड़ में शामिल न होने के बाद ऐसी प्रबल संभावना जताई जा रही है कि दिल्ली की अगली सीएम आप नेता आतिशी हो सकती हैं। बता दें कि आतिशी नीतिगत सुधारों में अपने गतिशील दृष्टिकोण और सामाजिक मुद्दों पर समर्थन के लिए जानी जाती हैं। वे 21 मार्च को दिल्ली शराब नीति मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद आम आदमी पार्टी (AAP) की सबसे प्रमुख नेता बनकर उभरीं।
अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद से आतिशी दिल्ली सरकार के कामकाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। उनके हाथों में दिल्ली के 14 विभागों की जिम्मेदारी है, जो कि कैबिनेट मंत्रियों में सबसे अधिक है। उनके अधीन प्रमुख मंत्रालयों में शिक्षा, वित्त, योजना, पीडब्ल्यूडी, जल, ऊर्जा और जनसंपर्क शामिल हैं। आतिशी ने दिल्ली विधानसभा की शिक्षा संबंधी स्थायी समिति की अध्यक्ष के रूप में भी सेवा दी है। उनके प्रभावशाली वक्तृत्व कौशल ने उन्हें मुख्यमंत्री पद के संभावित दावेदारों में से एक बना दिया है।
कैलाश गहलोत
परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत भी दिल्ली के मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल हो सकते हैं। गहलोत दिल्ली की राजनीति में एक प्रमुख व्यक्तित्व रहे हैं, जो परिवहन मंत्री के रूप में अपने काम के लिए जाने जाते हैं। उनके नेतृत्व में दिल्ली सरकार ने शहर के परिवहन ढांचे को सुधारने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। जिसमें बस सेवाओं का विस्तार, इलेक्ट्रिक बसों की शुरुआत और सड़क सुरक्षा बढ़ाने के प्रयास शामिल हैं।
50 वर्षीय आप नेता और कैबिनेट मंत्री के रूप में गहलोत ने अपनी मजबूत प्रशासनिक क्षमता का प्रदर्शन किया है। बड़े पैमाने पर परियोजनाओं का प्रबंधन और नौकरशाही की जटिलताओं को सफलतापूर्वक हल करने की उनकी क्षमता, दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर प्रभावी शासन के लिए बेहद लाभकारी साबित हो सकती है। उनके प्रशासनिक अनुभव और परिवहन मंत्री के रूप में सफल कार्यकाल के कारण वे इस पद के लिए एक मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं।
सुनिता केजरीवाल
सुनिता केजरीवाल को भी दिल्ली के मुख्यमंत्री पद के दावेदार को तौर पर देखा जा सकता है। बता दें कि सुनिता भी अपने पति अरविंद केजरीवाल की तरह एक पूर्व भारतीय राजस्व सेवा (IRS) अधिकारी रही हैं। उन्होंने आयकर विभाग में दो दशकों से अधिक समय तक सेवा की। उन्होंने दिल्ली, हरियाणा और गुजरात में AAP के लोकसभा चुनाव अभियानों में प्रमुख भूमिका निभाई।
जब केजरीवार जेल में थे, तो उन्होंने आप आदमी पार्टी को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई। जहां भी जरूतर पड़ी वह केजरीवाल की अनुपस्थिति में उस स्थान पर मौजूद रही जहां वे होते थे। वे नियमित रूप से प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल होती रहीं। उन्होंने कुर्सी पर बैठकर अरविंद केजरीवाल के जेल से भेजे गए संदेश को भी दिल्ली की जनता के सामने पढ़ा। वह दिल्ली और रांची में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की रैलियों में भी शामिल हुईं और भाजपा द्वारा उनके पति को निशाना बनाए जाने की खुलकर आलोचना की।
पूर्व नौकरशाह होने के नाते सुनिता केजरीवाल के पास प्रशासनिक प्रक्रियाओं को संभालने और जटिल सार्वजनिक प्रणालियों को समझने की विशेषज्ञता है। दिल्ली की चुनौतियों का प्रबंधन करने में सहायक साबित हो सकती है।
हालांकि, सुनिता केजरीवाल की गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि और संवैधानिक बाधाएं उनके मुख्यमंत्री बनने की राह में अड़चनें पैदा कर सकती हैं। चूंकि वह AAP की सदस्य नहीं हैं। उन्हें पहले पार्टी में शामिल होना होगा। फिर किसी सीट से चुनाव लड़ना होगा। अगर वह शीर्ष पद ग्रहण करती हैं, तो उन्हें तीन महीनों के भीतर विधायक बनता होगा।
लेकिन दिल्ली की राजनीतिक स्थिति की अनिश्चितता और फरवरी 2025 में विधानसभा चुनाव होने के चलते इस समय के आसपास उपचुनाव कराना चुनाव आयोग के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है। इसके अलावा अगर सुनिता केजरीवाल मुख्यमंत्री बनती हैं, तो पार्टी पर परिवार आधारित राजनीति के आरोप भी लग सकते हैं। केजरीवाल के जेल जाने के बाद जब सुनिता ने अनौपचारिक रुप से आप की कमान संभाली तो दिल्ली में मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी ने उन पर परिवार वाद का आरोप लगाया था।
ये भी पढ़ेंः CM की कुर्सी का मोह छोड़ हरियाणा चुनाव में उतरेंगे केजरीवाल, कितना मिलेगा फायदा?