Bhimrao Ambedkar, Religion Conversion, Hindu to Buddhist, Ambedkar's Struggle, Social Reform, Caste System, Dalit Rights, Buddhism in India, Dr. Ambedkar's Legacy, Equality and Justice

भीमराव आंबेडकर ने क्यों किया था धर्म परिवर्तन? हिंदू से बौद्ध कैसे बने बाबा साहेब

बीते मंगलवार को राज्यसभा में संविधान पर हो रही चर्चा के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर पर कुछ ऐसी बातें कह दीं, जिसने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी। शाह के बयान पर कांग्रेस और विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध किया और बीजेपी पर जमकर हमला बोला। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने तो गृहमंत्री अमित शाह से माफी मांगने की मांग के साथ उनका इस्तीफा तक मांग लिया।

अंबेडकर को लेकर अपनी टिप्पणी पर गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस के वार पर पलटवार किया है। शाह ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “राज्यसभा में संविधान पर चर्चा के दौरान बाबा साहब अंबेडकर के लिए मेरे द्वारा कही गई बातों को तोड़ मरोड़कर पेश किया गया है। मैं कभी भी बाबा साहब का अपमान नहीं कर सकता। मैं हमेशा अंबेडकर के रास्ते पर चला हूं।”

अमित शाह ने आगे कहा, “बीजेपी शुरू से ही अंबेडकर के साथ रही है। बीजेपी ने ही संविधान दिवस मनाने की शुरुआत की। मैं हमेशा से अंबेडकर के रास्ते पर चला हूं।” इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा, “कांग्रेस ओबीसी विरोधी है। कांग्रेस ने जीवनभर बाबा साहिब का अपमान किया।”

Mallikarjun Kharge on Amit Shah Controversial Statement on Ambedkar

पहले हिंदू धर्म के अनुयायी थे बाबा साहेब 

जब से बाबा साहेब आंबेडकर के नाम का जिक्र हुआ, तब से उनके जीवन से जुड़ी कई बातें एक बार फिर से चर्चा में आ गई हैं। खासकर आज की युवा पीढ़ी के लिए कुछ बातें शायद नए हों, जिन्हें जानना जरूरी है। क्या आप जानते हैं कि जो बाबा साहेब भारत के संविधान निर्माता माने जाते हैं, वे पहले हिंदू धर्म के अनुयायी थे, लेकिन बाद में उन्होंने हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाया था?

 

हिंदू धर्म से खफा होकर बौद्ध धर्म अपनाने का फैसला

बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर का जीवन संघर्ष और बदलाव से भरा हुआ था। उनका मानना था कि हिंदू धर्म में जातिवाद ने समाज को तोड़ दिया है। हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था ने समाज में असमानता, भेदभाव और शोषण की दीवार खड़ी कर दी थी। आंबेडकर का कहना था कि इस व्यवस्था ने शोषित और दलित वर्ग के लोगों को न केवल मानसिक रूप से कमजोर किया, बल्कि उन्हें अपने अधिकारों से भी वंचित कर दिया। उनका मानना था कि हिंदू धर्म में कोई भी सार्थक बदलाव संभव नहीं है, क्योंकि यह धर्म जन्म से तय की गई जाति व्यवस्था पर आधारित था।

बाबा साहेब का मानना था कि हिंदू धर्म में करुणा, समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे जैसे मूल तत्व गायब थे। ऐसे में, उन्होंने महसूस किया कि अगर समाज में सच्ची समानता और अधिकारों की गारंटी चाहिए, तो हिंदू धर्म को छोड़कर किसी और धर्म को अपनाना जरूरी है।

बाबा साहेब ने क्यों चुना बौद्ध धर्म?

बाबा साहेब ने कई धर्मों पर विचार किया, जिनमें इस्लाम, ईसाई और सिख धर्म शामिल थे, लेकिन अंत में बौद्ध धर्म को अपनाने का फैसला किया। इसके पीछे का कारण था बौद्ध धर्म का संदेश, जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की बात करता था। आंबेडकर ने महसूस किया कि बौद्ध धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है जो सभी लोगों को समान अधिकार और सम्मान देता है। इसके अलावा, बौद्ध धर्म में जातिवाद का कोई स्थान नहीं था, जबकि हिंदू धर्म में जातिवाद की जड़ें गहरी थीं।

बाबा साहेब ने कभी भी किसी धर्म को अपनाने का फैसला हल्के में नहीं लिया था। वे जानते थे कि ये एक बड़ा कदम है, जो सिर्फ उनका ही नहीं, बल्कि लाखों शोषित और दलितों का भविष्य बदलने वाला है। उन्होंने बौद्ध धर्म के आदर्शों को अपनाने का फैसला किया, ताकि समाज में असमानता और शोषण का अंत किया जा सके।

_Why Did Dr. Bhimrao Ambedkar Convert to Buddhism

1935 में किया धर्म परिवर्तन का ऐलान

1935 में बाबा साहेब ने सार्वजनिक रूप से यह ऐलान किया कि वे हिंदू धर्म छोड़ने जा रहे हैं। इस घोषणा ने पूरे देश में हलचल मचा दी थी। कई लोग तो यह सोच रहे थे कि वे किसी अन्य धर्म को अपनाएंगे, लेकिन उन्होंने बौद्ध धर्म को चुना।

बाबा साहेब का यह निर्णय उस समय की जातिवादी व्यवस्था और समाज के लिए एक बड़ा झटका था। उनके इस फैसले ने लाखों लोगों को उम्मीद दी कि अगर एक प्रतिष्ठित नेता और विद्वान इस व्यवस्था से बाहर निकल सकता है, तो बाकी लोग भी इसका विरोध कर सकते हैं।

1956 में नागपुर में हुआ ऐतिहासिक धर्म परिवर्तन

लेकिन यह सफर यहीं नहीं रुका। 1956 में डॉ. भीमराव आंबेडकर ने अपने 3.65 लाख समर्थकों के साथ नागपुर में हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म को अपनाया। यह एक ऐतिहासिक पल था, जिसे भारतीय समाज ने हमेशा याद रखा। 14 अक्टूबर 1956 को बाबा साहेब ने खुद को और अपने अनुयायियों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दिलाई। उस समय उन्होंने कहा था, “मैं हिंदू के रूप में पैदा जरूर हुआ हूं, लेकिन हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं, यह तो कम से कम मेरे वश में है।”

यह शब्द न सिर्फ उनका व्यक्तिगत बयान थे, बल्कि वे उस पूरे समाज की आवाज थे, जिसे हिंदू धर्म में जन्म लेकर भी कभी समानता का अधिकार नहीं मिला। बौद्ध धर्म अपनाने के बाद बाबा साहेब ने अपने जीवन को एक नई दिशा दी और समाज के शोषित वर्ग को एक नई उम्मीद दी।

_Why Did Dr. Bhimrao Ambedkar Convert to Buddhism

असमानता के खिलाफ एक संघर्ष का प्रतीक था साहेब का धर्म परिवर्तन

बाबा साहेब का धर्म परिवर्तन सिर्फ एक धार्मिक निर्णय नहीं था, बल्कि यह भारतीय समाज में जातिवाद और असमानता के खिलाफ एक संघर्ष का प्रतीक था। उनका यह कदम उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया, जो वर्षों से जातिवाद और भेदभाव का सामना कर रहे थे।

आंबेडकर का यह धर्म परिवर्तन न केवल धार्मिक बदलाव था, बल्कि यह एक समाज सुधारक के रूप में उनके संघर्ष का हिस्सा था। उन्होंने समाज में समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे की जो नींव रखी, वह आज भी भारतीय राजनीति और समाज में जीवित है। उनके इस कदम ने बौद्ध धर्म को भारत में पुनर्जीवित किया और लाखों दलितों को अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने की ताकत दी।

ये भी पढ़ें-