MSP Guarantee Kanoon : ऐसा क्या मांग रहे किसान जो सरकार देने को तैयार नहीं, यहां समझे पूरा मामला…
अहमदाबाद (डिजिटल डेस्क)। MSP Guarantee Kanoon: जय जवान जय किसान… आपने ये नारा तो सुना ही होगा और ये नारा सही भी है क्योंकि जहां एक जवान धूप, बारिश और सर्द रातों में भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करता है। वहीं किसान अपनी ही मां के सीने से अनाज बोता है औऱ पूरे देश को वह अन्न देता है जिसे कमाने के लिए हम और आप दिन-रात मेहनत करते हैं। लेकिन क्या हो जब किसी देश के किसान और जवान आमने-सामने आ जाए। बस ऐसे ही हालात है दिल्ली बार्डर के आस-पास के इलाकों में। टीवी पर बवाल, बहस, आंसू गैस के गोले और ट्रैफिक जाम की तस्वीरें आ रही है।
एक बार फिर किसान अपनी मांगो के साथ सड़कों पर उतर आएं है। साफ है लोकसभा चुनाव से ठीक पहले किसान मोदी सरकार से अपनी मांगों को मनवाना चाहते हैं। मांगों के जवाब में सरकार के सूत्रों की मानें तो सरकार का कहना है कि सभी फसलों को न्यूनतम समर्थन यानी MSP पर खरीदने की कानूनी गारंटी देना ‘वित्तीय आपदा’ की तरह होगा। सरकार लगातार किसानों से बात करने की कह रही है। वहीं सड़कों पर उतरे किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग कर रहे हैं। कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन (MSP Guarantee Kanoon) जिन्हें हाल ही में भारत रत्न दिए जाने की घोषणा की गई थी। उनके C2+50% फॉर्मूले की डिमांड की जा रही है। तो क्या है ये फॉर्मूला और आखिर क्यों नहीं इसे मानने से कर रहा है इंकार…
क्या है C2+50% फॉर्मूला ?
यह न्यूनतम समर्थन मूल्य निकालने के लिए स्वामीनाथन का फॉर्मूला है। जिस पर किसानों की उपज सरकारी एजेंसियों द्वारा खऱीदने के बारे विवरण है। C2+50% फॉर्मूला फसल की औसत लागत से 50 फीसदी ज्यादा पैसे देने का फॉर्मूला है। इसमें किसानों के सभी खर्चों को जोड़ा गया है। इसके साथ ही इस फॉर्मूलें में जमीन का रेंट भी जोड़ा गया है। सरल शब्दों में समझे तो स्वामीनाथन आयोग ने फसल लागत का 50 प्रतिशत से ज्यादा देने की सिफाऱिश की थी। आपको बता दें कि उत्पादन की लागत तो 3 तरह से निकाला जाता है।
- A2 ने उत्पादन में आने वाले नकदी खर्च जैसे बीच, खाद्य, मजदूरी पर खर्च, ईधन और सिंचाई आदि के खर्च शामिल है।
- A2+FL में फसल पैदा करने में परिवार के सदस्यों की मेहनत की मेहनताने के रकम भी जोड़ी जाती है।
- C2 में उत्पादन की पूरी लागत शामिल होती है। जिससे जमीन का लीज रेंट और खेती से संबधित दूसरी चीजों पर लगने वाले ब्याज को भी शामिल किया जाता है।
आयोग ने C2 की लागत में ही 50 फीसदी और जोड़कर फसल पर MSP तय करने (MSP Guarantee Kanoon) की बात कही थी। संयुक्त किसान मोर्चा सभी फसलों के लिए स्वामीनाथन फॉर्मूले के तहत MSP, फसल की खरीद की कानूनी गारंटी, कर्ज माफी, बिजली दरों में रियायत और स्मार्ट मीटर नहीं होने सहित अपनी कई मांगे उठा रहा है। किसान नेताओं ने खेती, घरेलू उपयोग और दुकानों के लिए मुफ्त 300 यूनिट बिजली, व्यापक फसल बीमा और पेंशन में बढ़ोतरी कर 10,000 रुपये हर महीने करने की मांग की है। आइए समझते है कि MSP कैसे तय किया जाता है।
क्या है MSP का फॉर्मूला ?
- सरकार किसानों के लिए A2+FL फॉर्मूले के तहत MSP तय करती है।
- A2+FL में किसानों द्वारा उत्पादन के दौरान किए गए सभी भुगतानों और परिवार के मेहनताने की रकम शामिल की जाती है।
- इस तरह से सभी तरह के खर्चे से कम से कम 1.5 गुना ज्यादा MSP तय की जाती है।
MSP को अगर सरल शब्दों में समझे तो ये है कि किसान की फसल के लिए मान लीजिए कि 100 रुपये MSP तय कर दिया गया तो वह किसान फिर अपनी फसल कहीं भी बेचे उसे 100 रुपये से कम नहीं मिलेंगे। चाहे बाजार में उस फसल का भाव चाहे 50 रुपये ही क्यों न चल रहा हो।
#WATCH | Farmers’ protest | Tear gas shells fired to disperse the agitating farmers who were approaching the Police barricade.
Visuals from Shambhu Border. pic.twitter.com/AnROqRZfTQ
— ANI (@ANI) February 14, 2024
आखिर क्यों मान नहीं रही सरकार…
2024 में कृषि उपज का बाजार मूल्य 10 लाख करोड़ रुपये रहा और इसमें एमएसपी (MSP Guarantee Kanoon) के दायरे में आने वाली सभी 24 फसलें शामिल थीं। हालांकि उस साल MSP खरीद 2.5 लाख करोड़ रुपये की ही थी जो MSP के तहत खऱीद कुल उपज का सिर्फ 25% है। अगर केंद्र सरकार किसानों की गारंटी वाले कानून की मांग लेती है तो सरकारी खजाने में सालान कम से कम 10 लाख करोड़ का बोझ बढ़ जाएगा। जो किसी भी सरकार के लिए एक वित्तीय घाटा होगा। यह राशि बुनियादी ढांचे के विकास के लिए इस साल अंतरिम बजट में केंद्र सरकार के 11.11 लाख करोड़ रुपये के आवंटन के लगभग बराबर है।
यही वजह है कि सरकारी सूत्रों की तरफ से तर्क दिया जा रहा है कि MSP गारंटी कानून किसी भी तरह से देश के लिए उचित नहीं है। चाहे वह आर्थिक रूप से देखा जाए या फिर राजनीतिक रूप से। मान लीजिए कि अगर सरकार किसानों की मांगों को एक बार मान भी ले तो सरकार को हर साल 10 लाख करोड़ धन जुटाने के लिए करदाताओं पर ज्यादा बोझ डालाना पडे़गा। क्योंकि सरकार भी हमारे जैसे लोगों के टैक्स से ही देश चलाती है।
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