India China border dispute

भारत-चीन कैसे बन गए कट्टर दुश्मन, क्या है दोनों के बीच विवादों की जड़? जानें हर मुद्दे की सच्चाई

India China border dispute: भारत और चीन जो दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले देश हैं उनेक रिश्तों में तनाव अब किसी से छुपे नहीं है। दशकों से सीमा विवाद और राजनीतिक मतभेद इन दोनों देशों के बीच समस्या बने हुए हैं। लेकिन पिछले चार सालों में हालात कुछ ज्यादा ही बिगड़ गए, खासकर जब 2020 में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में सीमा विवाद ने एक नया मोड़ लिया।

इन्ही मुद्दों के चलते भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने बीजिंग में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की। इस बैठक में मुख्य रूप से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर शांति और स्थिरता बनाए रखने, और दोनों देशों के बीच रुकी हुई बातचीत को फिर से शुरू करने पर चर्चा की गई।

यह मुलाकात खास है क्योंकि 2019 के बाद पहली बार भारत का कोई वरिष्ठ अधिकारी चीन यात्रा पर गया है। इससे पहले विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बीजिंग का दौरा किया था। लेकिन भारत और चीन के रिश्तों में तनाव सिर्फ लद्दाख तक ही सीमित नहीं है। दोनों देशों के बीच दशकों पुराना विवाद है, जो उनके रिश्तों में एक बड़ी दरार का कारण बन चुका है। तो आखिर वो कौन-कौन से विवाद हैं जिनकी वजह से भारत और चीन के रिश्ते इतने बिगड़े हुए हैं?

ब्रिटिश काल से चला आ रहा विवाद 

India China Border Dispute

भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा है, जिसे LAC (लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल) कहा जाता है। यह सीमा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है.

भारत और चीन की सीमा तीन हिस्सों में बांटी गई है – पश्चिमी सेक्टर (जम्मू कश्मीर), मिडिल सेक्टर (हिमाचल प्रदेश) और पूर्वी सेक्टर (सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश)। हालांकि, चीन इस सीमा की लंबाई को 2000 किमी ही मानता है, जबकि भारत इसे अलग तरीके से देखता है। खासकर लद्दाख में, चीन अक्साई चिन को अपनी जमीन मानता है, जबकि भारत इसे अपनी सीमा का हिस्सा मानता है। लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक कई ऐसे इलाके हैं, जहां चीन और भारत के दावे अलग-अलग हैं। इन तमाम मतभेदों के कारण दोनों देशों के बीच सीमा का पूरी तरह से निर्धारण नहीं हो पाया है।

2020 में पूर्वी लद्दाख दोनों सेनाओं के बीच हुई थी झड़प 

India China Border Dispute

साल 2020 में पूर्वी लद्दाख (east Ladhak) के गलवान (Galwan) में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी, जिसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे और कई चीनी सैनिक भी मारे गए थे। इसके बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया था। दो साल की लंबी बातचीत के बाद अब जाकर एक समझौता हुआ, जिसमें तय किया गया कि दोनों सेनाएं विवादित इलाकों, जैसे देपसांग और डेमचोक से पीछे हटेंगी। इसके बाद दोनों देशों की सेनाएं इन इलाकों से हटने लगीं। इस समझौते के तहत अब दोनों सेनाएं अप्रैल 2020 से पहले जिन जगहों पर गश्त करती थीं, वहीं गश्त कर रही हैं.

अक्साई चिन पर चीनी कब्ज़ा बना मुसीबत 

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भारत पश्चिमी सीमा पर अक्साई चिन (Aksai Chin) पर अपना अधिकार जताता है, लेकिन यह इलाका अब चीन के नियंत्रण में है। 1897 में ब्रिटिश शासन के दौरान भारत और चीन के बीच एक सीमा रेखा बनाई गई, जिसमें अक्साई चिन को भारत का हिस्सा बताया गया था, और दोनों देशों को बीच की लाइन जो दोनों देशों को अलग करती है उसको जॉनसन-आर्डाघ लाइन कहा जाता है।

1947 में भारत की आज़ादी के बाद, भारत ने इस सीमा रेखा को अपनी सीमा माना। 1962 (India-China War) में चीन ने भारत की दोनों सीमाओं पर युद्ध शुरू कर दिया। इस युद्ध के बाद, युद्धविराम के तहत चीन ने अरुणाचल से तो पीछे हटने को तैयार हो गया लेकिन अक्साई चिन पर अपना कब्जा बरकरार रखा जो आज भी जारी है।

दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है अरूणाचल प्रेदश: चीन

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चीन ने अरुणाचल प्रदेश की 90 हजार वर्ग किमी ज़मीन पर अपना दावा करता है ज्ञात हो, इस विवाद की शुरुआत करीब 110 साल पहले हुई थी। दरअसल 1914 में शिमला समझौता हुआ था, जब ब्रिटिश इंडिया के फॉरेन सेक्रेटरी हेनरी मैकमोहन थे। उन्होंने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच एक सीमा बनाई, जो 890 किलोमीटर लंबी थी और इसे मैकमोहन लाइन कहा गया। इस मैकमोहन लाइन के हिसाब से अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है।

लेकिन चीन इस मैकमोहन लाइन को मानता नहीं है। चीन के पास दो मुख्य तर्क हैं। पहला यह कि 1914 में जब यह समझौता हुआ था तो चीन वहां मौजूद नहीं था। दूसरा तर्क ये है कि अरुणाचल प्रदेश को चीन दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा मानता है, क्योंकि उसने 1950 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया था, और अब उसका कहना है कि चूंकि तिब्बत पर उसका कंट्रोल है, इसलिए अरुणाचल भी उसकी ज़मीन है।

अरूणाचल का तवांग की महत्वता 

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यूं तो चीन का दावा पूरे अरुणाचल प्रदेश (Arunanchal Pradesh) पर करता है लेकिन उसकी ख़ास नजर हमेशा तवांग जिले पर रही है। चीन तवांग (Tawang) को तिब्बत का हिस्सा मानता है और कहता है कि तवांग और तिब्बत की सांस्कृतिक समानताएं हैं। बता दें, तवांग में एक 333 साल पुराना बौद्ध मठ है, जो दुनिया भर के बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण स्थल है। इसलिए माना जाता है कि चीन तवांग को तिब्बत की तरह एक प्रमुख बौद्ध स्थल बनाना चाहता है और अपनी इस पर अपनी पकड़ बनाना चाहता है। जब दलाई लामा तवांग के इस बौद्ध मठ का दौरा करने गए थे तो चीन ने इसपर अपनी कड़ी आपत्ति जताई थी।

डोकलाम पर साथ आये भारत और भूटान 

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साल 2017 में भारत और चीन के बीच डोकलाम (Doklam Issue) को लेकर बड़ा विवाद हुआ था, जो करीब 70-80 दिन चला और फिर बातचीत से हल हुआ। विवाद तब शुरू हुआ जब भारत ने डोकलाम में चीन के सड़क बनाने के खिलाफ आपत्ति जताई। यह इलाका चीन और भूटान के बीच का विवादित क्षेत्र है, लेकिन ये सिक्किम बॉर्डर के पास स्थित है। असल में, डोकलाम एक ट्राई-जंक्शन प्वाइंट है (Doklam Tri junction), यानी यहां भारत, चीन और भूटान की सीमाएं मिलती हैं। इस वजह से यह इलाका भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।

 

 

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