हरियाणा विधानसभा: चुनाव में मनोहर लाल खट्टर से BJP क्यों कर कर रही तौबा? मोदी की रैलियों से भी हैं लापता
Haryana Election: हरियाणा विधानसभा चुनावों के नजदीक आते ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की रणनीतियों में बदलाव साफ देखने को मिल रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर से पार्टी की दूरी बढ़ती जा रही है। इसका मुख्य कारण उनके कार्यकाल में जनता की नाराजगी है, जिससे बीजेपी एंटी इनकंबेंसी के प्रभाव से बचना चाहती है।
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हाल ही में पीएम मोदी ने हरियाणा में दो बड़ी चुनावी सभाएं कीं, लेकिन इनमें से किसी भी सभा में मनोहर लाल खट्टर नजर नहीं आए। यह बात इस लिहाज से अहम है कि खट्टर करनाल से लोकसभा सांसद हैं, और उनके इलाके में पीएम का कार्यक्रम होना उनके लिए एक महत्वपूर्ण अवसर था। फिर भी, खट्टर की अनुपस्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी उनके नेतृत्व से दूरी बनाए रखना चाहती है।
बीजेपी के लिए बनते जा रहे हैं खट्टर परेशानी का सबब
खट्टर के कार्यकाल के दौरान कई मुद्दों पर जनता में असंतोष बढ़ा, जैसे कि रोजगार की कमी, किसानों की समस्याएं, और सामाजिक तनाव। ऐसे में बीजेपी यह नहीं चाहती कि चुनाव के समय खट्टर के नाम से जनता में किसी तरह की नकारात्मकता फैले। यही कारण है कि पीएम मोदी की सभाओं में खट्टर की गैरमौजूदगी को एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है।
हरियाणा में चुनावी मैदान में उतरने से पहले, बीजेपी को यह भी ध्यान रखना होगा कि समाज के विभिन्न वर्गों के साथ कैसे सामंजस्य बनाया जाए। खट्टर की उपस्थिति से यदि किसी वर्ग में नाराजगी बढ़ती है, तो पार्टी के लिए यह नुकसानदायक हो सकता है। इसलिए, पार्टी ने उनके पोस्टरों से भी उन्हें गायब रखा है, ताकि चुनाव प्रचार में सकारात्मक छवि बनी रहे।
खट्टर के बयानों ने बढ़ाई मुश्किलें
हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए एक नई परेशानी खड़ी होती नजर आ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के हालिया बयानों ने पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। एक तरफ जहां उन्होंने शंभू बॉर्डर पर किसानों के आंदोलन को “मुखौटा” करार दिया, वहीं दूसरी ओर हिसार में एक युवा के सवाल पर भड़क उठे। उस युवक ने कहा कि इस बार हिसार में बीजेपी का विधायक हारेगा, जिस पर खट्टर ने उसे सभा से बाहर निकलवाने का आदेश दे दिया। इससे बीजेपी की छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
सक्रियता में कमी का असर
केंद्र में मंत्री बनने के बाद भी खट्टर की सक्रियता में कोई कमी नहीं आई, लेकिन इसके बावजूद पार्टी के कार्यकर्ता और जनता उनसे संतुष्ट नहीं हैं। यह धारणा बनी है कि नए मुख्यमंत्री नायब सैनी के आने के बाद भी खट्टर अहम फैसले ले रहे हैं। इससे पार्टी में अंतर्विरोध और असंतोष की स्थिति उत्पन्न हुई है।
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हालांकि, मनोहर लाल खट्टर पूरी तरह चुनावी सीन से गायब नहीं हुए हैं। उन्होंने कुछ सीटों पर अपने करीबी उम्मीदवारों को समर्थन देने का फैसला किया है। ये सीटें पंजाबी, गैर-जाट और पिछड़े वोटरों की बहुलता वाली हैं। इस प्रकार, खट्टर ने अपने लिए एक खास रणनीति तैयार की है, लेकिन इससे पार्टी की समग्र स्थिति पर असर पड़ सकता है।
पोर्टल वाला मुख्यमंत्री
मनोहर लाल खट्टर को विधानसभा चुनाव से ठीक 6 महीने पहले हटाए जाने का मुख्य कारण पार्टी में उनकी बढ़ती नाराजगी थी। उन्हें “पोर्टल वाला मुख्यमंत्री” भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने कई सरकारी सेवाओं के लिए पोर्टल लॉन्च किए, जिससे आम जनता को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इसी तरह, उन्होंने सरपंचों की शक्तियों में कटौती की और भवन निर्माण से जुड़े कई नियम लागू किए, जिससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में जनता में भारी नाराजगी फैली।
खट्टर के फैसलों से हुई बीजेपी की मुश्किलें
खट्टर के फैसलों ने हरियाणा में बीजेपी के लिए कई राजनीतिक चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं। उनके कुछ प्रमुख फैसलों के कारण पार्टी को स्थानीय स्तर पर विरोध का सामना करना पड़ा है।
सरपंचों की शक्तियों में कमी
मनोहर लाल खट्टर के कुछ फैसलों ने हरियाणा की जनता को बीजेपी के खिलाफ कर दिया। खासकर, उन्होंने हरियाणा के सरपंचों की ताकत को सीमित करने के लिए कई नए नियम लागू किए। इससे गांवों में लोगों में काफी नाराजगी फैल गई।
भवन निर्माण नियमों का असर
सिर्फ सरपंचों की शक्तियों में कमी ही नहीं, बल्कि खट्टर ने भवन निर्माण से जुड़े कई नियम भी लागू किए। इन नियमों ने आम जनता को सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पर मजबूर कर दिया। इससे शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में बीजेपी की छवि पर नकारात्मक असर पड़ा।
नए सीएम को बदलने पड़े फैसले
हालांकि, अब नई सरकार ने खट्टर के कुछ विवादास्पद फैसलों को बदल दिया है और गलतियों को सुधारने की कोशिश की जा रही है। बीजेपी उन गलतियों से सबक लेकर आगे बढ़ने की योजना बना रही है, ताकि जनता का विश्वास फिर से जीत सके।