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12 ज्योतिर्लिंगों में गुजरात का सोमनाथ मंदिर क्यों है सबसे खास? जानिए इसकी खासियत और रोचक तथ्य!

Why is Somnath Temple of Gujarat the most special among the 12 Jyotirlingas?

Somnath Jyotirling Darshan:  दीपावली के इस खास मौके पर सोमनाथ मंदिर रंग-बिरंगी रोशनी से जगमगा रहा है। सोमनाथ मंदिर को पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है, और यह एक ऐसा स्थल है जिसे इतिहास में 14 बार लुटा गया।

मंदिर का पुनर्निर्माण 1951 में सरदार पटेल के प्रयासों से किया गया था। इस अवसर पर श्रद्धालुओं की संख्या भी काफी बढ़ गई है, और हर कोई दीपावली की खुशियों का अनुभव कर रहा है। इस बार की दीपावली का माहौल और भी खास हो गया है, जब लोग भगवान शिव के दरबार में आस्था और भक्ति के साथ आ रहे हैं।

सोमनाथ मंदिर की इस भव्य सजावट और रोशनी ने सबका मन मोह लिया है, और यहां आने वाले भक्तों के चेहरों पर खुशी की चमक साफ देखी जा सकती है।  इस मंदिर को श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व दिया जाता है, क्योंकि यहां आने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होने की मान्यता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव यहां अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते।

मंदिर का निर्माण

सोमनाथ मंदिर का निर्माण ऋग्वेद के अनुसार चंद्र देव ने करवाया था। यह मंदिर प्राचीन काल से कपिला, हिरण्या और सरस्वती नदियों के त्रिवेणी संगम पर स्थित है। यहां पूरे साल भक्तों की भीड़ रहती है।

हिंदू धर्म के शिव महापुराण के अनुसार सोमनाथ मंदिर  12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। भगवान शिव शंकर के मंदिर की ऊंचाई लगभग 155 फीट है। सोमनाथ मंदिर प्रभास पाटन में स्थित है, जो वेरावल बंदरगाह से थोड़ी दूर पर है।

मंदिर के बाहर वल्लभभाई पटेल और रानी अहिल्याबाई जैसी महान हस्तियों की मूर्तियां लगी हुई हैं। जब आप मंदिर के अंदर जाएंगे, तो आपको मंदिर के ऊपर एक बड़ा कलश दिखाई देगा, जिसका वजन करीब 10 टन है। यहां लहराती ध्वजा की ऊंचाई 27 फीट है, और इसकी परिधि एक फीट बताई जाती है।

मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही आपको चारों ओर एक विशाल आंगन दिखाई देगा। इस मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है, जिससे श्रद्धालुओं को यहां दर्शन करने में और भी आसानी होती है। सोमनाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर भी है, जो भक्तों को अपनी ओर खींचता है।

सोमनाथ मंदिर दर्शन का समय – 

सोमनाथ मंदिर (Somnath Jyotirlinga Mandir Darshan Time ) सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है। यहां दिन में तीन बार आरती का आयोजन होता है:

प्रभात आरती: सुबह 7:00 बजे

अपरान्ह आरती: दोपहर 12:00 बजे

संध्या आरती: शाम 7:00 बजे

रात 8:00 बजे से 9:00 बजे तक यहां एक लाइट एंड साउंड शो भी होता है, जो बरसात के मौसम में नहीं होता।

Why is Somnath Temple of Gujarat the most special among the 12 Jyotirlingas?

कैसे पहुंचें सोमनाथ-How To Reach Somnath Jyotirlinga

दीपावली के इस खास मौके पर शिव भक्तों के लिए एक अच्छी खबर आई है। धनतेरस के अवसर पर अहमदाबाद से केशोद के लिए नई विमान सेवा शुरू की गई है। यह सेवा सोमनाथ और गिर जंगल घूमने वाले श्रद्धालुओं के लिए बहुत फायदेमंद साबित होगी।

अहमदाबाद से केशोद की यह विमान सेवा सप्ताह में तीन दिन—मंगलवार, गुरुवार और शनिवार—उपलब्ध रहेगी। अहमदाबाद से उड़ान सुबह 10:10 बजे शुरू होगी और 10:55 बजे केशोद पहुंचेगी। वहीं, केशोद से फ्लाइट दोपहर 1:15 बजे रवाना होगी और ढाई बजे अहमदाबाद वापस लौटेगी।

श्री सोमनाथ ट्रस्ट ने यात्रियों के लिए नि:शुल्क पिकअप बस सेवा भी शुरू की है। केशोद एयरपोर्ट पर उतरते ही श्रद्धालुओं के लिए ट्रस्ट की ओर से एसी पिकअप बस उपलब्ध रहेगी। यह सेवा मुंबई-केशोद फ्लाइट में आने वाले यात्रियों के लिए भी उपलब्ध है।

इसके अलावा आप सोमनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए राजकोट से भी फ्लाइट ले सकटे हैं। आपको अगर रेल की यात्रा पसंद है तो आप ट्रेन द्वारा भी आ सकते हैं, वेरावल रेलवे स्टेशन सोमनाथ के करीब है। सड़क मार्ग से भी मंदिर पहुंचा जा सकता है, जिससे यात्री आसानी से यात्रा कर सकते हैं।

सोमनाथ मंदिर का इतिहास- Somnath Jyotirlinga Mandir History

सोमनाथ मंदिर का इतिहास बहुत ही रोचक और दुखदायी है। मध्यकाल में इस मंदिर को उसके वैभव के कारण 17 बार लूटा गया और कई बार इसे ध्वस्त किया गया। महमूद गजनवी ने इस मंदिर पर कई बार हमला किया। इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा नरेश राजा भोज ने मंदिर का पुनर्निर्माण किया। लेकिन 1297 में दिल्ली सल्तनत के गुजरात पर कब्जा करने के बाद, एक बार फिर से इस मंदिर पर हमला किया गया। 1706 में मुगल बादशाह औरंगजेब ने भी इस मंदिर को गिरा दिया। आधुनिक युग में लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से इस मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ।

सोमनाथ मंदिर की पौराणिक कहानी- Somnath Mandir Story

पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष की 27 बेटियां थीं, जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ था। चंद्र देव को राजा दक्ष की 27 कन्याओं में से केवल रोहिणी से विशेष प्रेम था। दक्ष ने चंद्रमा को समझाने का प्रयास किया, लेकिन चंद्रमा ने उनकी बात नहीं मानी, जिसके कारण दक्ष ने उन्हें श्राप दिया। इस श्राप के प्रभाव से चंद्र देव का तेज कम होने लगा। अंततः चंद्रमा ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की और शिव ने उन्हें श्राप से मुक्त कर दिया। चंद्र देव ने तब गुजरात में भगवान शिव का भव्य मंदिर बनवाया, जिसे “सोमनाथ” कहा जाता है।

सोमनाथ मंदिर पितरों के श्राद्ध, नारायण बलि और अन्य धार्मिक कर्मकांडों के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर समय भक्तों की बड़ी भीड़ लगी रहती है। मान्यता है कि जो भक्त इस मंदिर के दर्शन करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

बाण स्तंभ का अनसुलझा रहस्य

सोमनाथ मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक प्राचीन बाण स्तंभ स्थित है, जिसके बारे में कोई नहीं जानता कि इसे कब बनाया गया। लेकिन इतिहास में इसका उल्लेख 6वीं शताब्दी से मिलता है। बाण स्तंभ को एक दिशादर्शक स्तंभ माना जाता है, जिसके ऊपरी सिरे पर एक तीर (बाण) बना हुआ है, जो समुद्र की ओर इशारा करता है।

इस बाण स्तंभ पर लिखा है: “आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव, पर्यंत अबाधित ज्योतिमार्ग।” इसका मतलब है कि समुद्र के इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव तक, यानी अंटार्टिका तक, सीधी रेखा में कोई अवरोध या बाधा नहीं है। सरल भाषा में कहें तो, अगर आप सोमनाथ मंदिर के इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव की ओर एक सीधी रेखा खींचें, तो बीच में कोई पहाड़ या भूमि का टुकड़ा नहीं आएगा।

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