one nation one election meaning

वन नेशन वन इलेक्शन: क्या 2029 में 543 की बजाय 750 सीटों पर होगा चुनाव?

मोदी सरकार ने “वन नेशन, वन इलेक्शन” (One Nation One Election) प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत 2029 के लोकसभा चुनाव में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे। इसके साथ ही यह भी चर्चा है कि अगली बार लोकसभा की 543 सीटों के बजाय 750 सीटों पर चुनाव कराए जा सकते हैं। दरअसल, 2002 में हुए परिसीमन के कारण 2026 तक लोकसभा सीटें बढ़ाने पर रोक है। इसका मतलब है कि अगली जनगणना, जो 2027 में होगी, के बाद ही सीटों का पुनर्गठन किया जा सकेगा। इस तरह, आने वाले चुनावों में सीटें बढ़ने की संभावना है।

2002 में एक परिसीमन कानून के अनुसार, 2026 तक लोकसभा सीटों में वृद्धि पर रोक लगा दी गई थी। इसका मतलब है कि नई जनगणना के आधार पर ही सीटों में बदलाव किया जा सकता है। जनगणना 2027 में होने की योजना है, और यदि यह समय पर होती है, तो उसके परिणामस्वरूप 2029 में लोकसभा सीटों में वृद्धि संभव हो सकती है।

 2029 में बढ़ाई जा सकती हैं लोकसभा सीटें

 

हर 10 साल में होने वाली जनगणना 2021 में नहीं हो पाई, क्योंकि कोरोना के चलते इसे टालना पड़ा। अब यह उम्मीद की जा रही है कि जनगणना 2027 में होगी। 2002 में बने कानून के अनुसार, 2026 के बाद की जनगणना के आधार पर लोकसभा सीटों का परिसीमन होगा, यानी सीटों का निर्धारण जनसंख्या के हिसाब से होगा। जब यह कानून बनाया गया था, तब माना गया था कि 2031 की जनगणना के बाद परिसीमन होगा। लेकिन अगर 2027 में जनगणना होती है, तो फिर 2031 में फिर से परिसीमन करना जल्दबाजी होगी। इसलिए 2002 के कानून के अनुसार, 2027 की जनगणना को आधार मानकर परिसीमन किया जा सकता है, और इस आधार पर 2029 में लोकसभा सीटें बढ़ाई जा सकती हैं।

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दरअसल, 2002 के परिसीमन कानून में तय किया गया था कि लोकसभा की सीटें बिना बढ़ाए जनसंख्या के आधार पर सीटों का पुनर्विभाजन किया जाएगा। इसी के तहत 2008 में लोकसभा सीटों का परिसीमन हुआ था। 2026 तक सीटें बढ़ाने पर रोक और इसके बाद की जनगणना के आधार पर परिसीमन की शर्त के चलते माना जा रहा था कि अगला परिसीमन 2031 की जनगणना के बाद होगा। लेकिन अगर 2021 में होने वाली जनगणना 2027 में होती है, तो फिर 2031 की जनगणना का इंतजार नहीं करना पड़ेगा और परिसीमन तुरंत किया जा सकेगा।

क्या लोकसभा चुनाव 750 सीटों पर होंगे?

 

माना जा रहा है कि 2029 का लोकसभा चुनाव परिसीमन के बाद 543 की जगह लगभग 750 सीटों पर होगा। इनमें नारी शक्ति वंदन अधिनियम के तहत एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। लेकिन लोकसभा सीटें बढ़ाने में सबसे बड़ा विवाद दक्षिण के राज्यों का विरोध है। दरअसल, दक्षिण भारत में जनसंख्या वृद्धि दर उत्तर भारत के मुकाबले कम है, और अगर सीटें जनसंख्या के आधार पर तय की जाती हैं, तो दक्षिण के राज्यों का प्रतिनिधित्व कम हो सकता है, जिसे वे नहीं चाहते।

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सूत्रों के मुताबिक, केंद्र सरकार इस चिंता से वाकिफ है और परिसीमन में इन राज्यों के हितों का ध्यान रखने पर जोर दे रही है। इसके लिए जनसंख्या के आधार पर सीटों का निर्धारण करने की बजाय उत्तर और दक्षिण भारतीय राज्यों के बीच एक आनुपातिक प्रणाली पर विचार किया जा सकता है। ताकि दक्षिण के राज्यों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व प्रभावित न हो। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मौजूदा ढांचे में ही इस बात का ध्यान रखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, अंडमान और निकोबार समेत पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में कम जनसंख्या होने के बावजूद उन्हें लोकसभा में प्रतिनिधित्व दिया जाता है।

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दक्षिण राज्यों के हितों का रखा जाएगा ध्यान

 

दक्षिण में जनसंख्या वृद्धि दर को नियंत्रित करने में सफलता मिली है, जिससे वहां की सीटों की संख्या कम हो सकती है। यदि जनसंख्या के आधार पर परिसीमन किया गया, तो उत्तर के राज्यों को अधिक सीटें मिलेंगी और दक्षिण के राज्यों का प्रतिनिधित्व कम हो सकता है।

इस चिंता को ध्यान में रखते हुए, सरकार संभावित समाधान तलाशने में जुटी है। रिपोर्टों के अनुसार, एक आनुपातिक प्रणाली का फॉर्मूला निकाला जा रहा है, जिससे दक्षिण राज्यों के हितों का ध्यान रखा जा सके। यह प्रणाली सुनिश्चित करेगी कि सभी राज्यों को उनकी जनसंख्या के अनुसार उचित प्रतिनिधित्व मिले।

‘वन नेशन वन इलेक्शन’ और संभावित सीटों की वृद्धि के ये प्रस्ताव भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकते हैं। यह देखा जाना बाकी है कि क्या ये बदलाव वास्तव में लागू हो पाएंगे और इनका जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा।